कुछ सम्बन्ध ऐसे भी होते है जिन्हे हम दिल और दिमाग से लगाये बैठे होते है जिन पर हमे गुमान होता है ,गौरव होता है उन संबंधों की कलई तब खुलती है जब आप तकलीफ में होते है. हम उस बेवक़ूफ़ बंदरिया से कुछ भी अलग नहीं होते जिसका छाती से चिपका हुआ बच्चा किसी सक्रमण से ग्रसित होकर मरा हुआ उसके सीने से चिपका रहता है और वो अपने सीने से उसे चिपकाये रहती है शायद उसे पता ही नहीं चलता कि ये बच्चा अब ज़िंदा नहीं है या उसे ये वहम रहता है कि ये वापिस ज़िंदा हो जायेगा या वो उस बच्चे के प्यार में इतनी पागल होती है या.....
इन पंक्त्तियों को लिखते वक्त हमारे दिल और दिमाग में दर्द की लहरें हैं या जैसे किसी ने बुरी तरह आँतड़िया निचोड़ दी है -एक दर्द और सूनेपन का एहसास !! इन पंक्त्तियों का अर्थ वहीं समझ सकता है जिसने अपने सम्बन्धो की टूटन को झेला है , कब कोई इतना दूर चला गया , कब इतने विरोध पैदा हो गए , कब स्वार्थ के पहाड़ इतने विशाल हो गए कि सम्बद्ध बौने हो गए इसका एहसास ही नहीं हुआ !!!!
आज हमारे दर्द की सर्द ठिठुरन में हम उन संबंधों में गर्माहट तलाश रहे हैं , जो सम्बन्ध रहे नहीं - उनके लिए ये ऐसा बोझ है जिसे ढोना समझदारी नहीं है , वो इतने समझदार हो गए और हम सम्बन्धो को ढोने वाले छोटे इंसान रह गए उफ़ , ये क्या हो गया ,कब हो गया सोच रहा हूँ कि उनकी महानता के सामने हम इतने नगण्य कैसे रह गए और हमे कहीं कोई जवाब नहीं मिल रहा , स्पष्टीकरण बेमानी हो जाते है ,और गुजरे हुए हलके फुल्के लम्हे दर्द के दरिया में छोड़ जाते है .
शायद सम्बद्ध खोना उतना दर्दीला नहीं है जितना विश्वास खोना या उस अहम को ठोकर लगना कि उन्होंने हमे उन लम्हों में छोड़ा जब हमें उनकी दरकार थी , उनके स्वार्थ हमारे त्याग से बड़े जो हो गए . निसंदेह वे बड़े समझदार थे जो फल रहित पेड़ के साये से दूर हो गए - उनकी निगाहों में हम फल देनेवाले पेड़ की जगह चुके हुए - ठूंठ हो गए थे. यानि कूल मिलाकर वे संबंधों में एक व्यापार की तलाश कर रहे थे और खुद को WIN और हमें LOOSE की स्थिति में रख रहे थे जबकि संबंधों का पैमाना हमेशा WIN - WIN होता है .
हम बेवकूफों की तरह जी रहे है और खुद को उन संबंधों की निरर्थकता आज भी नहीं समझा पा रहे है ,पता नहीं किस उम्मीद की डोर हमें थामे हुई है -उस बंदरियां की तरह !!! काश हम थोड़े समझदार होते थोड़ी दुनियादारी हमे भी आती !!!!
सुबोध, ७ फरवरी ,२०१५
No comments:
Post a Comment