Wednesday, February 4, 2015

कविता

तुम जो गलत बताते हो मुझे
कभी पहन कर देखो मेरे जूते
और चलो उतनी दूर
चला हूँ जितनी दूर मैं
तब शायद तुम समझ सको
मेरी कमजोरियां , मेरी मजबूरियां
बड़ा आसान है तुम्हारे लिए
खुद के जूते पहन कर सफर तय करना
खुद को सही और मजबूत साबित करना
मेरा सही या गलत होना मैं नहीं
तय करते है मेरे जूते
या तुम्हारा चश्मा
जो तुमने पहना है अपनी आँखों पर .
सुबोध- जनवरी २८, २०१५

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