सही या गलत -निर्णय आपका ! 2

153 . सही या गलत -निर्णय आपका !
कुछ लोग टीम बनाने का अर्थ बिज़नेस, स्पोर्ट्स ,राजनीति जैसे फील्ड से ही लेते है जबकि ज़िन्दगी के हर क्षेत्र में टीम मौजूद होती है - चाहे आप इसे नकारे या स्वीकारे . यहाँ तक कि ये तो आपके घर में भी मौजूद होती है , उदाहरण के तौर पर किसी शादी-शुदा घरेलु महिला की टीम में उसका पति , उसके बच्चे , उसके माँ- बाप ,उसके सास-ससुर , उसकी ननद , उसकी बहन यानि कुल मिलाकर उसके सारे रिश्तेदार , उसकी- सखिया-सहेलियां ,काम करनेवाली नौकरानी , धोबी, प्लम्बर, इलेक्ट्रीशियन, सब्जीवाला भइया , उनके बच्चों का टीचर , कबाड़ वाला यानि घर-गृहस्थी चलाने में सहायक जो भी शख्शियत जिनसे एक बार से अधिक बार व्यवहार करना पड़े उसकी टीम का हिस्सा है . दूसरी - तीसरी बार में उसे समझ में आ जाता है कि ये उसकी टीम का परमानेंट मेंबर हो सकता है या नहीं .
मेरे घर पर पेपर लेने वाला करीबन दस साल से एक ही बंदा आता है जिससे किसी भी तरह की किट- किट हमें नहीं करनी पड़ती. महीने के पहले वीक में वो अपने आप आ जाता है और मार्किट में जो भाव चल रहा है उसी हिसाब से वो हमारे घर से पेपर ले जाता है .जबकि मिसेज कपूर हर बार किसी भी कबाड़ी को बुलाती है और उन्हें हर बार उनसे रेट को ,तौल को लेकर बहस करनी पड़ती है !
कृपया टीम बनाने को हलके में न लेवे , एक अच्छी टीम बनाने के लिए पूरी मेहनत करें क्योंकि उसके बाद आपकी ज़िन्दगी सुविधाजनक और आसान होती जाएगी - टीम बनाने के चरणों के बारे में मेरी इससे पूर्व की पोस्ट देखें .
सुबोध
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152 . सही या गलत -निर्णय आपका !
टीम बनाने के तीन महत्त्वपूर्ण चरण होते है . पहला चरण है जो आप अपनी टीम से पाना चाहते है उस बारे में उन्हें सिखाना , दूसरा चरण है उन्हें सीखे हुए को करने के लिए प्रोत्साहित करना और तीसरा एवं आखिरी चरण है अपनी टीम पर भरोसा करना,अगर आप ऐसा नहीं कर पा रहे है तो आपका व्यवसाय ( आप स्वयं ) छोटे स्तर से शुरू होकर छोटे स्तर का ही रहेगा ,उसके विकास की सम्भावनाये नहीं है .
सुबोध

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151 . सही या गलत -निर्णय आपका !
ये प्रश्नचिन्ह उनकी काबिलियत पर नहीं है ,जो मेरे शिक्षक रहे है . उन्होंने मुझे वही सिखाया जो सिखाने को उनसे कहा गया और जिस तथाकथित शिक्षा को देने के लिए उन्हें पेमेंट दिया गया .कुल मिलाकर ये उनको मिलने वाली उनकी मज़दूरी भर थी और मजे की बात ये कि जिस तरह एक मज़दूर को मज़दूरी करने भर से मतलब होता है उससे मिलनेवाले नतीजे से नहीं उसी तरह मेरे शिक्षक भी उन द्वारा की गई मज़दूरी के भविष्य में मिलनेवाले परिणामों से नावाकिफ थे,उन्हें अपनी मज़दूरी की फिक्र भर थी .हकीकत में वे शिक्षक थे ही नहीं शिक्षा के नाम पर वे दिमागी मज़दूर थे या फिर कोचिंग सेंटर चलानेवाले व्यवसायी .
हाँ, मैं खुले दिल से स्वीकार करता हूँ कि कुछ एक मेरे शिक्षक ऐसे भी थे जिन्हे वाकई मेरे अच्छे भविष्य की फ़िक्र थी ,लेकिन अफ़सोस उनकी फिक्र औद्योगिक युग वाली फिक्र थी कि अच्छे से पढाई करो ,अच्छे नंबर लाओ ,कहीं ढंग की जगह नौकरी लग जाओ और एक सुकून की ज़िन्दगी गुजारो. उनकी ये चाहत ,उनका ये आशीर्वाद उपयोगिता खो चूका है उन्हें इसका एहसास ही नहीं था ,वे आनेवाले युग की तेज आंधी से नावाकिफ थे , वे इतने दूरदर्शी नहीं थे कि नयी सदी की तेज चौंधियाती रोशनी का सामना कैसे किया जाये ये मुझे बता सके ,वे मेरे गाँव के सीधे-सादे ,सच्चे लोग थे , वे इतने सीधे थे,इतने सच्चे थे ; उस पुरानी पीढ़ी की तरह जो नई बहु को आज भी आशीर्वाद में सात पूतों की माँ का आशीर्वाद देती है - उस पीढ़ी को पता ही नहीं है कि उनका आशीर्वाद नई पीढ़ी के लिए श्राप जैसा है .
मैं ये क्या लिख रहा हूँ और क्यों लिख रहा हूँ ,अपनी शुरुआती असफलता के लिए अपने शिक्षकों पर या शिक्षा नीति पर उंगली उठा रहा हूँ , क्यों ? आखिर क्यों ?
शिक्षा नीति गलत थी और है ,शिक्षक गलत थे और है लेकिन किसी के गलत होने से, या मेरे द्वारा किसी और को दोषी ठहराने से क्या मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाता हूँ ? जब बात सच के तलाश की आती है ,तो मैं अर्जुन या एकलव्य के सच को क्यों भूल जाता हूँ? वो भी औरों की तरह साधारण रह सकते थे ,लेकिन उन्होंने खुद पर मेहनत की और वे वो बन गए जिससे उनके शिक्षक का नाम अमर हो गया - गुरु द्रोणाचार्य !
सवाल सिर्फ ये नहीं है कि शिक्षा नीति गलत है या शिक्षक गलत है ,मुख्य प्रश्न ये भी पैदा होता है कि क्या छात्र सही है ? क्या शिक्षक छात्र को बनाते है ? क्लास के चालीस छात्रों में से टॉपर एक ही क्यों होता है ? क्या उस टॉपर को शिक्षक बनाते है या वो अपने दम पर टॉपर होता है ? द्रोणाचार्य किसी अर्जुन को अर्जुन बनाते है या कोई अर्जुन किसी को द्रोणाचार्य बनाता है या कोई एकलव्य बिना कुछ प्रत्यक्ष सीखे गुरु के नाम पर द्रोणाचार्य को अमर कर जाता है !!
या कहीं हकीकत ये तो नहीं कि मेरी रीढ़ की हड्डी पर पड़ा हुआ भूखे खिसियाए शिक्षक का घूँसा उसकी हद बन गया और मैंने खुद का विस्तार करकर व्यवसायी जगत की शार्कों के बीच तैरना सीख लिया लिहाजा आज मैं किसी गलत को गलत कह सकता हूँ और सही को सही - मेरे शिक्षक प्राइमरी क्लासेज को पढ़ाते-पढ़ाते प्राइमरी क्लासेज की मानसिकता को यथार्थ मान बैठे और वहीँ अटके रह गए - परियों और दैत्यों की कहानियों के बीच..
बिना औपचारिक शिक्षा के कोई बिल गेट्स बन जाता है और कोई धीरूभाई अम्बानी,और मैं हूँ कि सिर्फ दोष ढूंढता रहता हूँ-क्या जिम्मेदार होने की बजाय मैं दोषदर्शी हो गया हूँ ,ओफ़ सुबोध, ये तुम्हे कौनसी बीमारी लग गयी ,इस बीमारी से तो अधिकांश हिंदुस्तानी ग्रस्त है !!!
क्या किसी और को दोष देने से हम अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते है ? आपके लिए सवेरा आपके जागने पर होता है या आपके नींद में होने के बावजूद सूर्योदय के साथ ? ये निर्णय आप कर सकते है ,इस सवाल को किसी नेता पर ,किसी समाजसेवी पर,किसी शिक्षक पर,परिवार के मुखिया पर या अपनी जान-पहिचान के किसी समझदार काबिल इंसान के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता . ज़िन्दगी सवाल आपसे कर रही है लिहाजा जवाब भी आपको ही देना है !!
सुबोध
आभार सहित निम्न ब्लॉग से लिया गया -
http://ameerbane.blogspot.in/



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आप अगर कॉम्पिटिशन की सोच रहे है तो निश्चित ही अपनी ग्रोथ खत्म कर रहे है ,कॉम्पिटिशन की मत सोचिये बल्कि अपना बेस्ट दीजिये . अपने पैरामीटर्स इतने ऊँचे कर दीजिये कि दुसरे के लिए उन तक पहुंचना पहाड़ की चोटी पर बसेरा बनाने जैसा हो .
- सुबोध

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149 . सही या गलत -निर्णय आपका !
पार्टनरशिप से अलग होने के बाद - पार्टनरशिप चाहे वो बिज़नेस की हो या ज़िन्दगी की .......
तुम्हारे फ़्रस्ट्रेशन की वजह मैं नहीं हूँ ,मैं तो सिर्फ तुम्हारे फ्रस्ट्रेशन का शिकार हूँ .जब हम अलग हुए थे -ज़िन्दगी में एक लम्बी दूरी साथ-साथ चलने के बाद , तब तुमने ज़िन्दगी भर की उपलब्धियाँ इकट्ठी करकर दो ढेरियां लगाई थी और कहा था एक तुम चुन लो दूसरी ढेरी मेरी हुई - यानी तुम्हारी निगाहों में दोनों ही ढेरियों का मूल्य एक जैसा था . मैंने वो ढेरी चुनी जिससे मुझे लगता था कि मेरे नेचर के अनुसार ये ढेरी मेरे लिए उपयुक्त है और दूसरी ढेरी तुम्हारी हो गई ,ज़माने में जब ये बात उघड़ी तो जो मेरे वाक़िफ़कार थे उनको मेरा चुनाव बेवकूफी भरा लगा था मैंने उन्हें समझाया कि बँटबारा उन चीज़ों का हुआ है जो हम दोनों ने मिलकर जुटाई है , चीज़ें बनाने के दरमियान काबिलियत भी बनती -बिगड़ती है , और काबिलियत का बंटवारा होना मुमकिन नहीं .
तुमने ज़िन्दगी भर चीज़ें बनाई थी और मैंने चीज़ें सम्हाली थी यानि तुम्हारी काबिलियत थी चीज़ें बनाना और मेरी काबिलियत थी चीज़ें सम्हालना.तुम्हारा अहंकार उस झगडे की मुख्य वजह था जिसमे अधिकार ये था कि चूँकि चीज़ें मैंने बनाई है इसलिए ये मेरी मिलकियत है और चूँकि सालो-साल साथ में रहे थे सो नतीजे के तौर पर दोनों में बंटवारा बराबर -बराबर का हुआ , और दो ढेरियों में से एक तुम्हारी हो गई और एक मेरी और बंटवारे को आज पांच साल भी नहीं गुजरे है कि तुम फ्रस्ट्रेड हो गए हो क्योंकि जो भी तुमने बंटवारा करकर हासिल किया था या इस दरमियान जो भी नया बनाया था / है वो सारे का सारा बिखर गया है / बिखर रहा है .
जबकि मैंने, मैं स्वीकार करता हूँ हमारे बनाये सिस्टम में कोई भी मोटा बदलाव नहीं किया, नया मैंने खास कुछ नहीं बनाया लेकिन जो बनाया हुआ था उसे अपनी काबिलियत के मुताबिक सम्हाला और बने-बनाये सिस्टम की गुडविल की वजह से कस्टमर बढ़ते गए / अच्छे लोग मुझसे जुड़ते गए और मेरा शुमार सफल लोगों में होने लगा ,क्या इसमें मेरी गलती थी ? मैंने वो चुना था जिसकी काबिलियत मुझमे थी जो किसी भी बिज़नेस का / ज़िन्दगी का सेकंड पार्ट होता है लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण पार्ट होता है और तुम तो कभी भी अमूनन सेकंड पार्ट को मैनेज करने के लिए बैठे ही नहीं थे.
तुम गहराई में जाकर खुद को क्यों नहीं जांचते कि तुम्हारी हार की वजह तुम खुद हो, तुम्हारा अहंकार है ,जहाँ भाव "अहम ब्रम्हास्मि" वाला है - कि मैं ही निर्माता हूँ मैं ही सब-कुछ हूँ . तुम इस बात को क्यों नहीं समझते कि चीज़ें बनानेवाली काबिलियत से ज्यादा महत्व चीज़ें सही तरीके से सम्हालने का होता है और वो काबिलियत तुम में थी ही नहीं ,तुम्हारी हार की वजह कोई गलत ढेरी का चुनाव नहीं था बल्कि ढेरी को सम्हाल न पाने की नाक़ाबिलियत थी. मैं दावे से कह सकता हूँ कि अगर तुम दूसरी ढेरी का चुनाव भी करते तो भी तुम्हारा हारना निश्चित था क्योंकि तुम में दुसरे भाग वाली काबिलियत ही नहीं थी - जो लम्बी ग्रोथ के लिए पहली आवश्यकता होती है .
सुबोध - नवंबर २५, २०१४

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148 . सही या गलत -निर्णय आपका !
भविष्य का गरीब जानने का प्रयास करता है ,एक बुक और पढ़ लूँ ,एक वीडियो और देख लूँ,एक मुलाकात और कर लूँ ,इस प्रोजेक्ट में कहीं कोई कमी नहीं रह जाए ,ये भी जान लूँ,वो भी जान लूँ ,और इस जानने के चक्कर में हरी बत्ती लाल हो जाती है और वो जानता ही रहता है ,इसे आप सोच का लकवा भी कह सकते है कि आदमी सिर्फ और सिर्फ जानकारियां इकट्ठी करता रहता है ,ज्ञान बटोरता रहता है लेकिन जाने हुए का उपयोग नहीं करता ,एक डर,एक खौफ ,एक भय काफी कुछ जानने के बाद भी उसमे रहता है कि कहीं कुछ ऐसा तो नहीं है जिसे मैं नहीं जानता क्योंकि उसने यही सुना,समझा और सीखा है कि अज्ञान से बड़ा कोई शत्रु नहीं होता .
भविष्य का अमीर भी जानने का प्रयास करता है लेकिन वो जानता है कि बुक पढ़ने से,वीडियो देखने से या किसी से मुलाकात करने से मैं सब कुछ नहीं जान पाउँगा ,जब तक मैं खुद शुरू नहीं करूँगा कोई भी मेरी मदद नहीं कर पायेगा ,तैरना सीखने के बारे में पचासों बुक पढ़ने से या ढेरों वीडियो देखने से या किसी ओलम्पिक गोल्ड मेडलिस्ट से मुलाकात करने के बाद भी मैं तब तक तैरना नहीं सीख सकता जब तक मैं खुद को स्विमिंग पूल में नहीं उतारता हूँ , और उसे पता होता है कि जब तक दो- चार बार मैं नाक में ,मुहँ में पानी नहीं भर लूंगा तब तक मेरे तैराक बनने की संभावनाएं न के बराबर है .लिहाजा वो जीतनी शीघ्रता से जानकारियां इकट्ठी कर पाता है करता है और अपने प्रोजेक्ट को शुरू कर देता है और जैसे जैसे समस्याएं आती है वैसे-वैसे उनके समाधान निकालता रहता है .वो जानता है महत्त्वपूर्ण जानना नहीं है जाने हुए का इस्तेमाल करना है .
और जहाँ तक अमीर की बात है उसके पास पहले से ही सम्बंधित विषय पर पूरी जानकारी वाली टीम मौजूद होती है क्योंकि वो दूसरे व्यक्ति का समय खरीदते है और दूसरे व्यक्ति का पैसा इस्तेमाल करते है जो अमीरी की राह की सबसे बड़ी जरूरत होती है ( इस बारे में पोस्ट 75 पढ़ें )
सुबोध
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147 . सही या गलत -निर्णय आपका !
आनेवाले आर्थिक परिवर्तन,नए-नए आविष्कार ,टेक्नोलॉजी के चमत्कार जहाँ कुछ ठहरे हुए लोगों को भयभीत करते है वही कुछ लोगों के लिए नए अवसर ,चमकदार रोशनी, खूबसूरत सुबह की शुरुआत करते है .
जिनका दिमाग खुला है ,जिनमे लचीलापन है ,जो नया जानने,समझने और करने को तैयार है वही इस युग में पैसा बना पाएंगे अन्यथा तो सिर्फ रोटी ही कमा पाएंगे और वो भी शायद .
जितने ज्यादा बदलाव और शीघ्रता से उन बदलावों का फैलाव इस युग में हो रहा है उतना पहले कभी भी नहीं हुआ इसकी बड़ी वजह सूचना क्रांति युग है .
औद्योगिक युग के ढांचे की, तब की कुछ आवश्यकताएं आज विलासिता बन गयी है और कुछ नासमझ आज भी उन्हें ढ़ो रहे है .ये वही लोग है जो विकास के तेज परिवर्तन की आँधी को स्वीकार नहीं कर पा रहे है . कुछ इस लिए कि उन्हें अपने कम्फर्ट जोन को तोडना पड़ेगा और कुछ इस लिए कि पुराने ढांचे से जो उन्होंने पैसे के रिसाव का श्रोत बनाया था वो सूख जायेगा .वे अपने छोटे फायदे के लिए बड़े नुकसान को " हाँ " कर रहे है .
परिवर्तन जब भी होते है , अपने साथ पूँजी की, सत्ता की , सुविधाओं की बहुत बड़ी अदला-बदली भी लेकर आते है ,अगर आपने खुद को आने वाले परिवर्तन के लिए तैयार कर लिया है तो आने वाला समय आपका है ,जहाज जो बंदरगाह छोड़ चूका उसका अफ़सोस मत कीजिये ,आनेवाले समय में एक नया शिकार नजर आयेगा आप निशाना तैयार रखे . खुद को शिक्षित करें - खास तौर पर वित्तीय शिक्षा प्राप्त करें, अमीर वही बन पाएंगे जो वित्तीय तौर पर शिक्षित होंगे क्योंकि इस युग में पैसे आने के जितने रास्ते है उससे ज्यादा रास्ते पैसे के जाने के है .
- सुबोध
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अमीर यु हीं अमीर नहीं होता (४)

ख्वाइश इतनी सी
कि हालात बेहतर हो जाए
मेरा आरामदेह क्षेत्र (comfort zone ) रहे सुरक्षित
इस सोच की वजह से
कोशिशें होती है आधी-अधूरी.
शुभचिंतकों की
असफलता की फिक्र
फुला देती है हाथ-पाँव .
काम की शुरुआत
अकेले से होती है
ख़त्म २-४ पर होती है.
इस्तेमाल किये जाते है
औद्यौगिक युग के औज़ार,
पेड़ काटने के लिए कुल्हाड़ी .
हर काम /उपाय/कोशिश होते है छोटे
ज़ाहिर है सफल होने पर
सफलता भी
प्रयासों के अनुरूप ही परिणाम देगी
लिहाज़ा छोटे क़दमों की सफलता
किसी कोने में दुबकी रह जाती है
क्योंकि जो छोटा सोचते है
वो गरीब होते है .....
-
उन्हें झोंकना पड़ता है
अपना सब कुछ ,
सब कुछ माने सब कुछ -
समय,
ऊर्जा,
मेहनत,
पूँजी,
हार न मानने का ज़ज़्बा ,
काबिलियत.
नकारना होता है
समाज/दोस्तों का खौफ,
मज़ा आरामदेह क्षेत्र का.
शुरुआत होती है अकेले से
लेकिन जोड़ लेते है
पूरी टीम ,पूरा नेटवर्क.
इस्तेमाल किये जाते है
आधुनिक युग के औज़ार,
पेड़ काटने के लिए इलेक्ट्रिक आरी .
हार उनके दिमाग में
मौत की तरह होती है
लिहाज़ा तैयार होते है कई
वैकल्पिक रास्ते.
हारेंगे तो
शुरुआत करेंगे नए सिरे से.
जीतेंगे तो जश्न मनाएंगे....
और वो मानते है जश्न
क्योंकि जो बड़ा सोचते है
वो अमीर होते है .
सुबोध- ३० मई, २०१४
आभार सहित निम्न ब्लॉग से लिया गया है-
http://subodhchamkeelepal.blogspot.in/

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145 . सही या गलत -निर्णय आपका !

अगर आप गलती करते हो और अपनी गलती को समझ नहीं पाते हो तो उसे बर्बादी की शुरुवात समझो और अगर अपनी गलती को समझ लेते हो ,स्वीकार कर लेते हो तो उसे फला हुआ आशीर्वाद मानो क्योंकि आपके दिल ने , आपके दिमाग ने आपको इतनी शक्ति दी है कि आप अपनी गलती स्वीकार कर पा रहे हो .ध्यान रहे सुधार हमेशा स्वीकार के बाद होता है ,अब आपके अच्छे दिन शुरू हो गए है कि आप गलतियों को स्वीकारने लगे है ,जिम्मेदारी लेने लगे है .

अगर आप कोई उपलब्धि हासिल कर लेते हो तो आप नई ऊंचाइयां पाने जा रहे हो क्योंकि उस फार्मूले को समझना जिससे उपलब्धियां हासिल होती है बहुत बड़ी उपलब्धि है ,उसे बार -बार दोहराया जा सकता है बिलकुल वैसे ही जैसे कि पहला लाख बनाने का फार्मूला समझने के बाद अमीर बनना उतना मुश्किल नहीं रह जाता जितना पहला लाख बनाना था.

आप हारे या जीते ,एक बार की हार या जीत से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता ,फर्क इस बात से पड़ता है कि आपने अपनी हार से या जीत से सीखा क्या है और फर्क इससे पड़ता है कि आपने अपनी हार को जीत में बदलना सीखा है या नहीं और फर्क इससे पड़ता कि आपने अपनी जीत का फार्मूला बराबर याद करकर उसे बार-बार दोहराया है या नहीं !!! 
क्योंकि हार कर जीतना और उस जीत को बार-बार दोहराना ही आपको आपकी सपनो की दुनिया की सैर करवाएगा - सतरंगी सपनो की दुनिया की सैर !!! 

आइये शुरू करें क्योंकि डरकर ठहरने से ज्यादा या सोच के लकवे से ग्रस्त होकर जीने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण शुरुआत करना है, शुरू करे उस एक अंजानी दुनिया को खंगालना जो अनछुए-अनचीन्हे उपलब्धियों भरे संसार तक ले जाती है और वहां पूरी तरह सही होने का प्रेशर अपने ऊपर नहीं रखे , अगर गलती होती है तो उसे स्वीकार करे ,सुधार करे, हार को जीत में बदले और जीत को दुबारा जीत में और फिर एक और जीत में .....
लम्बी से लम्बी दूरी तय करना मुश्किल नहीं होता, मुश्किल पहला कदम उठाना होता है !!!!
-सुबोध
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144 . सही या गलत -निर्णय आपका !

तुम्हारा डर तुम्हारे विश्लेषण की वजह से पैदा होता है ,तुम जो जीवन का ,जीवन में होने वाली भविष्य की घटनाओं का विश्लेषण करते हो ,उनके होने का अंदाजा लगाते हो वही तुम्हे भयभीत करता है ,हालाँकि तुम्हारे अंदाज़े ,तुम्हारे विश्लेषण अधिकांश बार गलत होते है ,तुम वर्त्तमान में सिर्फ साँसे लेते हो जीते भविष्य में हो कि ये होगा ,ये नहीं होगा. तुम दिन भर भविष्य की सोचते हो , वर्तमान को जीना जब शुरू कर दोगे तो तुम्हारा डर ख़त्म हो  जायेगा .
तुम्हारा अधिकार सिर्फ कर्म पर है और यही वो कार्य है जो तुम वर्त्तमान में कर सकते हो ,फल पर तुम्हारा अनुमान हो सकता है अधिकार नहीं है . क्योंकि फल पाना  बहुत से अन्य कारको पर निर्भर करता है . 
आइये इसे एक उदाहरण से समझे .
आप पहाड़ी सड़क से पैदल गुजर रहे है , करीबन पच्चीस फुट दूर सड़क के बाई तरफ आप एक साँप को देखते है और आप रुक जाते है , अब यही से आपका दिमाग भविष्य का अंदाजा लगाने लगता है कि अगर मैं रोड से गुजरा और साँप ने मुझे काट लिया तो ? यहाँ पास में कोई अस्पताल भी नहीं है यहाँ से शहर 10  किलोमीटर दूर है ,मैं वहां कैसे पहुंचूंगा  ,वहां डॉक्टर नहीं मिला तो ? अगर मिल भी गया तो सरकारी अस्पताल  में मुझे हाथोहाथ नहीं देखा तो ? घर पर मेरे पेरेंट्स  को पता चलेगा तो ? मुझे देखने कौन- कौन आएगा , विनय से पिछले हफ्ते झगड़ा हो गया था क्या वो भी मुझे देखने आएगा ?
आप इस तरह की ढेरों बातें सोच रहे है उनका विश्लेषण कर रहे है ,परेशान हो रहे है तभी वहां से एक पहाड़ी गुजरता है और पूछता है " बाबूजी क्या हुआ ?"
आप इशारे से साँप को दिखाते है .
वो देखता है और हँसते हुए जवाब देता है 
"बाबूजी, सर्दी के शुरूआती दिन है साँप धुप सेंकने आया है ,लेकिन डरिये मत हर साँप ज़हरीला नहीं होता ये दो मुंहा साँप  है इसमें ज़हर नहीं होता ."
वह आपका हाथ पकड़ता है और खुद साँप की तरफ होकर आपको सड़क पार करवा देता है .
अब आप खुद इस घटना का विश्लेषण कीजिये . 
हम ज़िन्दगी में इसी तरह के ढेरों साँपों  से हर रोज़ खुद को घेर लेते है - कभी परीक्षा रुपी साँप,कभी बॉस रुपी साँप,कभी पैसे रुपी साँप यानि कुछ भी करने से पहले हम एक साँप का सामना करते है और ढेरों असम्बद्ध सवालों को सोचते है जवाब तैयार करते है ,विश्लेषण करते है - सिर्फ भविष्य को जीते है और वर्त्तमान में होकर भी वर्त्तमान  को कहीं पीछे छोड़ देते है .
अगर आप वर्त्तमान को जीते तो साँप को वहां से हटाने के लिए उस पर पत्थर फेंक सकते थे, या सड़क के दुसरे छोर से गुजर सकते थे ,या किसी टहनी को , लकड़ी को अपने बचाव के लिए  हथियार के तौर पर साथ लेकर चलते और भी कई रास्ते हो सकते थे लेकिन आप तो घटनाओं का विश्लेषण  करने लगे और फल के तौर पर खुद को साँप का काटा हुआ मान लिया  जबकि हो सकता था कि साँप आपकी पदचाप सुनकर खुद ही सड़क से हट जाता .  
यानि यहाँ आप उन चीज़ों को  लेकर परेशान थे  जिनकी भविष्य में होने की  संभावना मात्र  थी   लेकिन इस संभावना में आप इस कदर डूब गए कि अपने वर्त्तमान में जो आप कर सकते थे  वो भी आपने नहीं किया .
अमूनन हर गरीब , असफल, हारा हुआ इंसान वही होता है  वो साँप देखकर रूक जाता है और हर अमीर ,हर सफल,हर विजेता इंसान वही होता है जो साँप को देखकर डरता है लेकिन उस डर से वह रूकता नहीं है क्योंकि वो जानता है डर भविष्य के विश्लेषण में है जबकि हमारे हाथ में आज है ,हमारा वर्त्तमान है !

" डर के आगे जीत है " बच्चा-बच्चा इस वाक्य से, मोटिवेशनल वाक्य से वाकिफ है लेकिन चूँकि वो बच्चा है इसलिए इस वाक्य के अनुरूप व्यवहार नहीं कर पाता. आपने  भी इस वाक्य को ढेरों बार सुना है लेकिन आप तो बच्चे नहीं है ,आप बड़ों की तरह इस डर से आगे क्यों नहीं जाते ?
अमीर और गरीब में सबसे बड़ा फर्क यही है की गरीब  डर देखकर रूक जाता है जबकि अमीर डर कर रूकता नहीं है बल्कि डर का सामना करता है, उसे प्रबंधित करता है .
सुबोध 

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143 . सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरी पोस्ट 137 से आगे -
किसी प्रोडक्ट की सेल क्लोज करने से पहले प्रोडक्ट की खासियतों  के बारे में बताया जाता है ,इसे प्रोडक्ट का प्रचार करना भी कहते है. कुछ लोग प्रचार से चिढ़ते है जो सफलता की राह में एक बड़ी बाधा है .प्रचार से चिढना या सेल से बचने की कोशिश करना आपको मुनाफे से दूर करता है और  इस  तरह  की हरकतें अमूनन गरीब  लोग करते  है.अगर  आप  प्रचार करने और  सेल करने से बच  रहे  है तो  खुद की कीमत  कैसे  बढ़ाएंगे? ऐसी स्थिति में अगर आप किसी  कंपनी में कर्मचारी है तो कोई दूसरा एम्प्लोयी अपनी खासियतें बता कर आपसे आगे निकल जायेगा और अगर आप व्यापारी है तो  बिना अपने प्रोडक्ट की खासियत बताये लोगों की निगाहों में कैसे आएंगे ?  
पुरानी कहावत है "लोग उसकी सुनते है जो बोलता है" तो बोलिए - अपनी ,अपने प्रोडक्ट की खासियतें बताइये .
लोगों को कई कारणों से प्रचार करने या बेचने में समस्या महसूस होती है ,आइये उन्हें समझे -
1 . आपका दिमाग आपका स्टोररूम है इस स्टोररूम में आपके साथ जो भी गुजरा हो वो आप चाहे या न चाहे अलग-अलग रिलेटेड फाइल में जाकर फाइल होता रहता है .और जब उस घटना या वाक्यात के जैसा या मिलता जुलता दुबारा आपके सामने आता है तो आपके दिमाग का स्टोररूम उससे सम्बंधित फाइल आपको पकड़ा देता है कि देखो ऐसा तुम्हारे साथ पहले भी हुआ है और उसका ये परिणाम रहा था . ये सारी क्रियाएँ स्वाभाविक सी है और हम सब इस बारे में अनुभवी है .
हो सकता है आपके साथ अतीत में कुछ बुरा हुआ हो ,जब किसी ने जबरन आपको कोई सामान बेचा हो  जो आपको आपके अनुसार पूरा मूल्य नहीं दे पाया हो या बेचने वाले ने गलत तरीके से प्रचार किया हो और आप खुद को ठगा गया महसूस करते हो  या बेचने वाले ने सामान खरीदने के लिए इतना ज्यादा आपको परेशान किया हो कि आपको सेल्स के नाम से ही चिढ़ होती हो .इसलिए आप आज सेल्स को अच्छा नहीं समझते . ये आपके व्यक्तिगत अनुभव हो सकते है या सामूहिक अनुभव भी हो सकते है  .
कृपया ये ध्यान रखे आपके साथ अतीत में जो हुआ है वो एक  हादसा था और हादसों को पकड़ कर रखने से ज़िन्दगी में डर,नफरत ,निराशा और दर्द के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होता ,ज़िन्दगी आगे बढ़ने के लिए होती है और कल का सच आज भी सच हो ये ज़रूरी नहीं . 

2 . हो सकता है आपने कभी कोई सामान बेचने की कोशिश की हो ,जिसके बारे में आपको खुद को पूरी जानकारी नहीं थी और संभावित खरीददार ने आपको नकार दिया हो ,उसने आपको इस तरह के तर्क दिये हो जिनका आप जवाब नहीं दे पाये हो या आपको बुरी तरह से फटकारा  गया हो, अपमानित किया गया हो और उस हादसे को आप अभी तक नहीं भूला पाये हो,आप उस काम के लिए ग्लानि महसूस करते हो उससे उबर  नहीं पाये हो .
 कृपया ध्यान देवे अपनी एक बार की असफलता या अस्वीकृति को ज़िन्दगी भर मत ढोयें, वो एक बार का बोझ अभी तक आपको उबरने नहीं दे रहा है उस बोझ को काँधे से , दिमाग से उतार फेंक दीजिये वो बोझ सिर्फ हाथी के  पैरों की कमजोर बेड़ी है- हाथी की ताकत से कही बहुत कमजोर उसे समझिए और कंडीशनिंग की प्रदूषित दुनिया से बाहर आकर खुली हवा में सांस लीजिये . 

3- अमूनन हम सबको ये सिखाया जाता है कि अपनी खुद की या खुद की वस्तुओं की तारीफ़ नहीं करनी चाहिए ,ये "अपने मुँह मियां मिट्ठू बनना" कहलाता है और बार बार दी गई हिदायतें ,सिखाया गया एटीकेट हमारी आदत  बन जाता है लिहाजा हम अपनी या अपनी वस्तुओं की तारीफ़ करना सभ्यता  के अनुकूल नहीं मानते ,ये संस्कार हमे सेल्स से दूर कर देते है,प्रचार से दूर कर देते है .
कृपया ध्यान देवे ये संस्कार आदिम युग के ज़माने के है जब आबादी इतनी कम थी कि लोग स्वयं एक-दूसरे के बारें में जानते थे तब उन्हें अपने बारे में बताना अपनी बड़ाई करना था , हम सदियों से उन संस्कारों को ढोये जा रहे है जो अपनी उपयोगिता खो चुके है , बल्कि यही बेवकूफी भरे संस्कार ,एटीकेट हमारी ग्रोथ में रुकावट बन गए है . हम अपने बारे में लोगों को बताते नहीं है यहाँ तक कि हमारा पडोसी भी हमारे बारें में नहीं जानता . जब तक आप अपनी या अपने प्रोडक्ट की खासियत या काबिलियत लोगों तक पहुंचाएंगे नहीं और लोगों को पता नहीं चलेगा आपकी उन्नति के मार्ग प्रशस्त नहीं होंगे ये समझ लीजिये और याद कीजिये उस पुरानी कहावत को कि "जो दिखता है वो बिकता है " तो खुद को ,अपने प्रोडक्ट को दिखाइए ,एक्सप्लेन या एडवर्टाइज  करने के नए-नए तरीके अपनाइये . 

4  . हो सकता हो आपमें सुपेरिओरिटी  काम्प्लेक्स हो कि मैं जब बेहतरीन हूँ ,मेरा प्रोडक्ट जब बहुत अच्छा है तो मुझे प्रचार की क्या ज़रुरत है लोग मुझ तक अपने-आप ढूंढते हुए आएंगे,उन्हें आना चाहिए .ये एक तरह नजरिया होता है जिसमे उच्चता की भावना प्रबल होती है इतनी प्रबल कि  उन्हें लगता है प्रचार करना मेरी शान के खिलाफ ही नहीं है बल्कि मेरा अपमान है . उन्हें लगता है कि मैं इतना खास हूँ या मेरा प्रोडक्ट इतना ज़बरदस्त है कि लोगों को किसी तरह खोज कर मेरे पास आना चाहिए . यह अहंकार का ही दूसरा रूप होता है .
जो लोग इस तरह से सोचते है या जिनकी ये मानसिकता बन गयी है जिन्होंने अपने दिमाग के दरवाज़े बंद कर लिए है उनके बारे में तय है कि ये अपने कम्फर्ट जोन में है और उनकी उन्नति की सम्भावनाये सीमित है .इस तरह की सोच उन्हें दिवालियेपन  की और धकेल रही है क्योंकि इस युग में अच्छे प्रोडक्ट्स की भरमार है और जिनके पास प्रोडक्ट है वे सुनियोजित तरीके से प्रचार के माध्यम से अपनी  पैठ ग्राहकों तक बना रहे है और आप इस घमंड में है कि मेरे बेहतरीन प्रोडक्ट की जानकारी करते हुए, ढूंढते हुए  लोग मुझ तक चला कर आएंगे .
पुराने ज़माने की कहावत कि ":बेहतर प्रोडक्ट बनाइये दुनिया आपका दरवाज़ा खटखाएगी " आज अधूरी हो गई है इसमें ये शब्द और जोड़ दीजिये तो ये पूरी हो जाएगी और ये आज का इसका वर्जन इस युग के अनुसार ज्यादा सटीक है  "बशर्ते आप दुनिया को इसके बारे में बताये  " सुपेरिओरिटी काम्प्लेक्स वालों को पुरानी कहावत याद है आधी कहावत कृपया उन्हें पूरी कहावत याद करनी चाहिए
"बेहतर प्रोडक्ट बनाइये दुनिया आपका दरवाज़ा खटखाएगी,बशर्ते आप दुनिया को इसके बारे में बताये  "

5  . हो सकता है आपकी कंडीशनिंग ऐसी हुई हो जिसमे आपको सेल्समेन  के बारे में कुछ गलत बातें बताई गई हो  ,आपके दिमाग में उनकी गलत छवि बनायीं गई हो और इसके लिए बहुत से उदाहरण बताये गए हो,दिखाए गए हो .
एक गलत तरीके की कंडीशनिंग से छुटकारा पाने के तरीके मेरी पुरानी पोस्ट्स में बताये गए है कृपया उन्हें देखे . 

ध्यान देवे अमीर लोग हमेशा बहुत अच्छे प्रचारक होते है ये अपनी खासियतों को,अपनी सेवाओं को,अपने प्रोडक्ट को  बेहतरीन पैकेजिंग में पेश करते है .ये इतने जोश और उत्साह से ये सब करते है कि उनकी मार्किट वैल्यू हमेशा बढ़ती रहती है . उनकी अमीरी का महत्वपूर्ण राज उनकी सेल्स की काबिलियत है !!
सुबोध 
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142 . सही या गलत -निर्णय आपका !

व्यवसाय चलाने के लिए टेक्नोलॉजी और व्यवहारिकता दोनों की ज़रुरत होती है .
लोगों से मिलना- जुलना सीखिये ,उनसे व्यवहार करना सीखिये व्यवहारिक बनिये , व्यवहार मार्किट में बिकनेवाली वस्तु नहीं है कि ज़रुरत हुई और जाकर खरीद लाये .
टेक्नोलॉजी और टेक्नीशियन आप फिर भी मार्किट से खरीद सकते है , ये मार्किट में मिलते है !
ध्यान देवे किसी एम्प्लोयी को उसकी किसी स्किल के कारण चुना जाता है और व्यवहारिक न होने की वजह से निकाल दिया जाता है. आप अपनी स्किल की वजह से जॉब पा सकते है मगर उस जॉब को बरक़रार रखने के लिए आपमें व्यवहारिकता होनी चाहिए .स्किल आपको जॉब दिला सकती है लेकिन वो व्यवहारिकता है जो आपको जॉब में टिका सकती है .
अगर आप बिजनेसमैन है तो आपके बिज़नेस पर भी यही फंडा लागू होता है - आपकी सफलता आपकी व्यवहारिकता में है .
- सुबोध
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141 . सही या गलत -निर्णय आपका !




बहुत से लोगों के पास बहुत सी बेहतरीन आइडियाज होती है लेकिन वो उनके दिमाग में होती है और वही दफ़्न हो जाती है वो उनकी महान आईडिया इस लायक नहीं बन पाती कि लाखो-करोडो पैदा कर सके ,इसकी मुख्य वजह ये है कि जिनकेदिमाग में ये आईडिया आती है वो खुद को बहुत ही साधारण मानते है उस आईडिया पर गंभीरता से विचार और कार्य नहीं करते ,उन्हें खुद को इसकी सफलता पर संदेह रहता है . 
उनका अधूरापन उनका दुश्मन बन जाता है ,कोई और उसी आईडिया पर काम करता है और पैसों का ढेर लगा लेता है लेकिन उनकी छोटेपन की कंडीशनिंग उनका पीछा नहीं छोड़ती ,उन्हें लगता है कि ग्रेट आईडिया सिर्फ ग्रेट लोगों के ही दिमाग में आ सकते है हम जैसे साधारण लोग साधारण पैदा होते है ,साधारणता में गुजारा करते है और साधारणता में ही गुजर जाते है .
वे इस बात को नहीं समझ पाते कि विचारों पर किसी का भी एकाधिकार नहीं होता . प्रकृति ने किसी भी व्यक्ति के साथ किसी किस्म का भेद-भाव नहीं किया , सबको बराबर धूप ,बराबर पानी ,बराबर हवा, बराबर खुशबु, बराबर वक्त ,बराबर अँधेरा ,बराबर रोशनी, बराबर निराशा ,बराबर आशा,बराबर एहसास कहने का अर्थ हर चीज़ बराबर -बराबर दी है ,व्यक्ति ने अपने बैरियर्स खुद बनाये है . 

एक गरीब को लगता है कि मैं झुग्गी-झोपड़ी में रहता हूँ ,मेरे यहाँ रोशनी कम आती है ,जबकि अमीरों के बंगले में भरपूर रोशनी होती है ये उसकी सोच उसका दायरा बन जाती है और वो इस सोच को अपने दुर्भाग्य से जोड़ लेता है ,अपनी,अपने पेरेंट्स की नाकामी से जोड़ लेता है ;धीरे-धीरे यही सोच बड़ी होती जाती है ,ज़िन्दगी के दूसरे क्षेत्र में भी छाने लगती है और प्रकृति ने जिस" बराबर इंसान" को पैदा किया था वो खुद को छोटा मानने लगता है ,छोटा हो जाता है ! लिहाजा उसके दिमाग में आनेवाली महान आईडिया भी उसको बेवकूफी लगती है .

कुछ लोग झुग्गी-झोपड़ी में रहते है,जहाँ रोशनी कम आती है लेकिन वे कम रोशनी को नहीं देखते ,देखते है कि झुग्गी-झोपड़ी से निकलने के बाद रोशनी का कोई फर्क नहीं रह जाता वे प्रकृति को धन्यवाद देते है और दूसरी नियामतें जो प्रकृति ने उन्हें दी है उन पर ध्यान केंद्रित करते है और उन नियामतों की ताकत के बल पर कुछ ऐसा कर गुजरते है जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाता है ,वे किसी भी तरह के बैरियर्स से खुद को आज़ाद रखते है !
ध्यान रखे हारने वाले के लिए बहाने बहुत होते है और जीतने वाले के लिए रास्ते बहुत होते है !!!
सुबोध
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Photo: 141 . सही या गलत -निर्णय आपका !बहुत से लोगों के पास बहुत सी बेहतरीन आइडियाज होती है लेकिन वो उनके दिमाग में होती है और वही दफ़्न हो जाती है वो उनकी महान आईडिया इस लायक नहीं बन पाती  कि लाखो-करोडो पैदा कर सके ,इसकी मुख्य वजह ये है कि जिनके दिमाग में ये आईडिया आती है वो खुद को बहुत ही साधारण मानते है उस आईडिया पर गंभीरता से विचार और कार्य नहीं करते ,उन्हें खुद को इसकी सफलता पर संदेह रहता है .  उनका  अधूरापन उनका  दुश्मन बन जाता है ,कोई और उसी आईडिया पर काम करता है और पैसों का ढेर लगा लेता है लेकिन उनकी छोटेपन की कंडीशनिंग उनका पीछा नहीं छोड़ती ,उन्हें लगता है कि ग्रेट आईडिया सिर्फ ग्रेट लोगों के ही दिमाग में आ सकते है हम जैसे साधारण लोग साधारण पैदा होते है ,साधारणता में गुजारा करते है और साधारणता में ही  गुजर जाते है .वे इस बात को नहीं समझ पाते कि विचारों पर किसी का भी एकाधिकार नहीं होता . प्रकृति ने किसी भी व्यक्ति के साथ किसी किस्म का भेद-भाव नहीं किया , सबको बराबर धूप ,बराबर पानी ,बराबर हवा, बराबर खुशबु, बराबर वक्त ,बराबर अँधेरा ,बराबर रोशनी, बराबर निराशा ,बराबर आशा,बराबर एहसास कहने का अर्थ हर चीज़ बराबर -बराबर दी है ,व्यक्ति ने अपने बैरियर्स खुद बनाये है . एक गरीब को लगता है कि मैं झुग्गी-झोपड़ी  में रहता हूँ ,मेरे यहाँ रोशनी कम आती है ,जबकि अमीरों के बंगले में भरपूर रोशनी होती है ये उसकी सोच उसका  दायरा बन जाती है और वो इस सोच को अपने दुर्भाग्य से जोड़ लेता है ,अपनी,अपने पेरेंट्स की नाकामी से जोड़ लेता है ;धीरे-धीरे यही सोच बड़ी होती जाती है ,ज़िन्दगी के दूसरे क्षेत्र में भी छाने लगती है और प्रकृति ने जिस" बराबर इंसान" को पैदा किया था वो खुद  को छोटा मानने लगता है ,छोटा हो जाता है ! लिहाजा उसके दिमाग में आनेवाली महान आईडिया भी उसको बेवकूफी लगती है . कुछ लोग झुग्गी-झोपड़ी में रहते है,जहाँ रोशनी कम आती है लेकिन वे कम रोशनी को नहीं देखते ,देखते है कि झुग्गी-झोपड़ी से निकलने के बाद रोशनी का कोई फर्क नहीं रह जाता वे प्रकृति को धन्यवाद देते है  और दूसरी नियामतें जो प्रकृति ने उन्हें दी है उन पर ध्यान केंद्रित करते है और उन नियामतों की ताकत के बल पर कुछ ऐसा कर गुजरते है जो दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाता है ,वे किसी भी तरह के बैरियर्स से खुद को आज़ाद रखते है !ध्यान रखे हारने वाले के लिए बहाने बहुत होते है और जीतने वाले के लिए  रास्ते बहुत होते है !!!सुबोध  www.saralservices.com

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

140 . सही या गलत -निर्णय आपका !

           बड़ी अजीब सी सोच होती है लोगों की , उन्हें सफलता चाहिए होती है लेकिन उन्हें सफलता का शॉर्टकट चाहिए .अब उन्हें कौन समझाये और कैसे समझाये कि  कुछ चीज़ों का शॉर्टकट नहीं होता उन चीज़ों को अगर आप  शॉर्टकट से पा भी लेंगे  तो वे लम्बे वक्त तक टिकेगी नहीं . जैसे वो शॉर्टकट से आई है उसी तरह वो चली भी जाएगी ,बिना नींव के पहली बात छोटे-मोटे टेंट टाइप के मकान बन सकते है एक बड़ी और शानदार बिल्डिंग के लिए तो आपको नींव की ज़रुरत होगी .और दूसरी बात ज़िन्दगी का तूफ़ान ,एक विपरीत परिस्थिति आपकी टेंट टाइप की हैसियत को सुखहाली से  बदहाली में बदल देगी इसलिए आप एक नींव बनाये और नींव तो नींव होती है फिर वो चाहे मकान की हो ,आपकी शिक्षा की हो,आपकी अमीरी की हो  या फिर आपकी किसी अन्य सफलता की हो .
       अगर आपने अपनी नींव को मज़बूत बनाया है तो पहली बात आप सेफ है और दूसरी बात अगर किसी  हादसे के कारण आप बर्बाद भी हो जाते है तो आप दुबारा खड़े हो पाएंगे -फीनिक्स की तरह . क्योंकि नींव बनाने के दरम्यान आपने सीखा होता है कि रुकावटों से पार कैसे पाया जाता है जबकि शॉर्टकट में तो आप ज़िन्दगी की ऊंच-नीच से वाकिफ ही नहीं हो पाते .आपने सिर्फ पहाड़ की चोटी देखी है ,चढ़ाई के दौरान आनेवाली दिक्कतों को न देखा है ,न समझा है ,न महसूस किया है और न ही जीया है तो अगर चोटी से जिस दिन आप  लुढक गए उस दिन आपका  क्या होगा ? हर बार तो ज़िन्दगी शॉर्टकट से आपको  चोटी पर नहीं पहुंचा सकती है - हर दिन सट्टेबाज़ों का नहीं होता,जुआरियों का नहीं होता ,लाटरी जीतने वालों  का नहीं होता .
        अगर आपको अपनी सफलता को स्थायित्व देना है तो आपको उस लम्बे प्रोसेस से गुजरना ही होगा जहाँ आप चीज़ों को बनाना सीखते है (बना कर पाई हुई चीज़ आपको ज्यादा संतुष्टि देती है-- आपको अपनी पहली ख़रीदी गई फ्रीज़ की, गाड़ी की मनस्थिति आज भी याद होगी ! ) सम्हालना सीखते है ,बढ़ाना सीखते है . अगर आपने तुक्के में कोई  सफलता पाई है तो पहली बात आप उस सफलता को पचा नहीं पाएंगे आपको उल्टी ( vomiting  ) हो जाएगी और खुदा न खास्ता आपने उसे पचा लिया तो दूसरी बात आप उसे बढ़ा नहीं पाएंगे क्योंकि बढ़ाने में जो काबिलियत चाहिए वो काबिलियत तो आपमें है ही नहीं .तो बेहतर है रास्ता वो चुनिए जिसमे स्थायित्व हो बेशक वो चाहे लम्बा ही क्यों न हो क्योंकि उस रास्ते में हो सकता आप परेशान हो जाए,आपको जगह-जगह चोट लगे, आप चलते-चलते थक जाये,प्यास से आपका गला सूखे,भूख से आतें कुलबुलाये ,आपकी सांस फूल जाये ,हज़ार मुसीबतें आपको मिले लेकिन उस रास्ते से गुजरने के बाद आप जो पाएंगे वो स्थायी होगा और रास्ते के बीच झेली हुई मुसीबतें आपको ताकत,होंसला और सकारात्मक सोच देगी जिसका कोई भी जोड़ नहीं होता,जो खुद में अनमोल है ! 
- सुबोध 

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139 . सही या गलत -निर्णय आपका !

कुछ लोग अपनी टीम पर ,जिसे उन्होंने खुद बनाया है -उसी टीम पर भरोसा नहीं कर पाते !

अगर आप भी उन लोगों में से है तो खुद से एक सवाल करें कि आपको भरोसा अपनी टीम पर नहीं है या खुद पर नहीं है ,कृपया जवाब बड़ी ईमानदारी से देवे .

जवाब चाहे जो हो दोनों ही स्थितियों में दोषी आप है ,इसकी जिम्मेदारी लेवे और अपेक्षित सुधार करें .
बड़े सपने पैरों में बेड़ी के अलावा कुछ भी नहीं है अगर आप बड़े स्तर पर सोचते नहीं है,बड़े प्रयास नहीं करते है और बड़े प्रयास करने के लिए एक जिम्मेदार टीम नहीं बना पाते है .

ये ध्यान रखे अगर छोटी सफलता पानी है तो मुमकिन है आप अकेले अपने दम पर पा सके लेकिन बड़ी सफलता के लिए आपको एक समर्पित टीम बनानी ही होगी !!
सुबोध

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138 . सही या गलत -निर्णय आपका !

सफलता चाहना किसी सपने का प्रारंभिक स्तर है, यह एक बीज है और बीज की उपयोगिता कुछ भी नहीं होती अगर उसे बीजा न जाए . बीज को बीजना पहली आवश्यकता है उसके बाद उसे खाद देना ,पानी देना उसकी सम्हाल  करना दूसरी आवश्यकता है जिसे आप कह सकते है कि सपने पूरे करने के लिए एक प्लानिंग के तहत कार्य करना या सपनो तक पहुंचने के लिए पुल का निर्माण  करना और जहाँ आप कार्य करना शुरू कर देते है वहां चाहना ( चाहत )  अगले स्तर पर पहुँच जाती है जिसे मैं चुनना ( चुनाव ) कहूँगा  हकीकत में यही  वो कदम है जहाँ से सफलता आपकी तरफ आकर्षित होना शुरू करती है !
कुछ विचारक सपने को सफलता का पहला स्तर मानते है जबकि मेरा सोचना यह है कि सपने देखना एक भिखारी स्तर के अलावा कुछ भी नहीं है अगर उन्हें कार्य रूप में परिणित नहीं किया जाता .मेरी निगाह में जब आप सपनों पर गंभीर होकर एक प्लानिंग करते है और उस प्लानिंग के तहत कार्य करना शुरू करते है तभी आप सपने साकार करने की तरफ बढ़ते है.सपने देखना एक सकारात्मक कदम है लेकिन उन देखे हुए सपनों पर कार्य न करना आपको शेखचिल्ली बनाता है और इस तरह के लोग समाज में कितना आदर  पाते है ये आप आये दिन देखते है .

सफलता का चुनाव करना महत्वपूर्ण बन जाता है क्योंकि यही से आपका नजरिया बदलना शुरू हो जाता है आप सफलता  के अगले स्तर में प्रवेश कर जाते है जिसे समर्पण कहते है . उस स्थिति में आपका दिल,दिमाग और जिस्म शिद्दत से सफलता पाने में जुट जाता है ,रोम-रोम सफलता पुकारता है , कण-कण में सफलता ,पल-पल में सफलता ,चारों और सफलता,सिर्फ सफलता ...यह एक नशे की तरह होता है जहाँ आपको सफलता के अलावा कुछ भी नज़र नहीं आता ,ज़िन्दगी में आपकी प्राथमिकताएं बदल जाती है उन दिनों आप अपने परिवार को भूल जाते है ,खाना - पीना भूल जाते है ,सोना- जागना भूल जाते है ,सारे शौक ,सारे मौज -मजे भूल जाते है आप सब कुछ भूल जाते है सिवाय उस लक्ष्य के ;जब आप ऐसी स्थिति में होते है  तो ऐसी स्थिति को "लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन "कहा जा सकता है कि अब आप उस स्थिति में पहुँच गए है जहाँ से आप सफलता को आकर्षित कर पा रहे है ( इस स्थिति की कल्पना कीजिये ,लिखे गए शब्दों ,वाक्यों में डूब जाइये ,इन्हे महसूस कीजिये अगर आप इस स्थिति को महसूस नहीं कर पा रहे है ,इस स्थिति से नहीं गुजरे है तो निश्चित ही आप एक असफल व्यक्ति है और सफलता पाने के लिए आपको पूर्णतः ऐसी ही स्थिति चाहिए जब आप आप न रहे लक्ष्य बन जाए !!)
सफलता आपको पार्क में टहलते हुए मिल जायेगी या सोचने से,सपने देखने से ,बातें करने से,गप्पबाज़ी करने से मिल जायेगी ऐसा सोचना खुद को धोखा देने के अलावा कुछ भी नहीं है ,अगर आपको सफलता चाहिए तो आपको वो सब करना पड़ेगा जिससे सफलता आपकी तरफ खींची चली आये ,आपकी तरफ आकर्षित हो .आप आलू बोकर आम की फसल पाने की सोचे तो आप चाहे जितनी सकारात्मक सोच वाले हो आलू आम नहीं बन जायेंगे . आलू बोये है तो आपको आलू ही मिलेंगे . अगर आपको आम पाने हो तो आलू बोना बेवकूफी है. इसी तरह से आपको सफलता पानी है तो आपको सफलता के बीज बोने  पड़ेंगे  ,अमीरी पानी है तो अमीरी के बीज बोने पड़ेंगे !!!
-सुबोध 

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137 . सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरी पोस्ट 136  से आगे -
जब तक आप को यह पता न हो कि आप जो कर रहे है उस करने का कोई एक अलग अर्थ भी है तब तक आप उस अलग अर्थ का कोई सदुपयोग नहीं कर पाएंगे . आपका एक गरीबदोस्त अपनी बातचीत में किसी  प्रोडक्ट की खासियत के बारे में बात करता है  तो ज़ाहिर सी बात है वो सेल्समैनशिप वाला कार्य करके भी उसका कोई आर्थिक फायदा नहीं उठा पाता है क्योंकि उसकी नज़र में वो सेल्समेन वाला कार्य नहीं कर रहा है  यानि उसे पता ही नहीं है कि वो जो कर रहा है उसका एक अलग अर्थ भी है .
गरीबों के साथ यही होता है कि उन्हें पता ही नहीं होता कि वे जो कर रहे है उसका कोई व्यावसायिकउपयोग भी हो सकता है जिससे उन्हें आर्थिक लाभ मिल सकता है ,अगर उन्हें इसका पता होता तो वे अपनी सेल्समेनशिप वाली क्वालिटी को बेहतर करते और अच्छा मुनाफा हासिल करते .
 जैसे अगर मैं कोई बुक रेफेर करता हूँ तो इनडायरेक्टली  ये उस बुक की मार्केटिंग है ,उस बुक को बिकवाता हूँ तो ये सेल्स क्लोज करना है , अधिकतर कंपनियां सेल क्लोज करने पर आपको कुछ हिस्सा मार्जिन में से देती है चूँकि गरीब को पहली बात तो ये पता नहीं होती कि वो मार्केटिंग कर रहा है और दूसरी बात ये कि उसे सेल क्लोज करना नहीं आता . जब वो पहली बात में ही क्लियर नहीं है तो दूसरी बात वाली क्वालिटी खुद में डेवेलप कहाँ करेगा ! और जब तक सेल क्लोज नहीं करेगा उसकी जेब में कुछ आएगा भी नहीं .  
गरीब सिर्फ मार्केटिंग  करते है ,सेल क्लोज नहीं करते लिहाजा उन्हें अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता .
अमीरों की स्थिति कुछ अलग होती है -उन्हें पता होता है कि हम किसी प्रोडक्ट की तारीफ़ करते है तो उसका मतलब क्या होता है लिहाजा वो सेल्स को सीरियसली लेते है और सेल क्लोज करना भी सीखते है . संसार के सारे अमीर खुद में एक बहुत अच्छे सेल्समन भी होते है मेरी जानकारी में कोई भी अमीर ऐसा नहीं है जो खुद में एक अच्छा सेल्समेन नहीं हो . कृपया सेल्स को हलके या अधूरे सन्दर्भ में न लेवे , यह संसार के सबसे बड़े सब्जेक्ट में से एक है लेकिन इसकी डिटेल में जाना मेरी इस पोस्ट का विषय नहीं है .
ध्यान रखे संसार के सबसे टफ कार्यों में से एक सेल क्लोज करना है और इसकी इम्पोर्टेंस ये है कि संसार में सबसे ज्यादा पेमेंट इसी कैटगरी वालों को मिलता है.  अमीर बनने के लिए ये निहायत ज़रूरी है कि आप सेल्स के बारे में सीखे,समझे,जाने और करें .
सुबोध
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136 . सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरी पोस्ट 48 " बेचना आना चाहिए" के बारे में थी .

अमीर बेचने के तरीके जानते है ,अहमियत समझते है जबकि गरीब बेचने को  तकरीबन नापसंद करते है ,इसे हेय दृष्टि से देखते है !

पहली बात ये समझे कि बेचना क्या होता है ,अमूनन गरीबों को" बेचने" के बारे में अधूरी जानकारी होती है .

कोई भी ऐसी कार्यवाही जिसकी वजह से कोई भी वस्तु के पक्ष में वातावरण का निर्माण हो रहा हो वो कार्यवाही बेचने का एक हिस्सा है !

आप T . V . में ढेरों ऐड देखते है ,वो किसी वस्तु के पक्ष में वातावरण का निर्माण भर है - लेकिन सेल्स का एक पार्ट है - कई विद्वानो की अलग-अलग परिभाषाएं है , अगर आपको बेचने के बारे में उलझन चाहिए तो उन्हें पढ़िए और सीधी सी समझ चाहिए तो उपरोक्त बात समझिए . 

इस समझ के मुताबिक आप अगर किसी की भी तारीफ़ करते है तो Indirecty  उसकी मार्केटिंग कर रहे होते है , बेचने का हिस्सा हो जाते है .
अगर आप किसी को देखकर हंस रहे है तो आप अपनी मार्केटिंग कर रहे होते है ! अगर आप किसी Social Site पर खुद को update कर रहे है तो भी अपनी मार्केटिंग कर रहे होते है ,अगर आप अपनी Girlfriend  के साथ Dating कर रहे है तो अपनी मोहब्बत की Marketing कर रहे है - इसी बात को आप खुद अलग-अलग तरीके से समझ लेवे ,और जब समझ जावे तो मुझे बताये कि आपकी जानकारी में कोई एक ऐसा शख्स है जो बेचने का काम नहीं कर रहा है ? 
यानि संसार का हर शख्स कुछ न कुछ बेच रहा है ,कोई भी इस बेचने से अछूता नहीं है ! एक भिखारी से लेकर किसी मुल्क का प्रधानमंत्री तक,एक शिक्षक से लेकर एक विद्यार्थी तक, एक नौकर से लेकर मालिक तक , एक पिता से लेकर पुत्र तक  हर शख्स Salesman  है ,हर शख्स मार्केटिंग कर रहा है !!

गरीबों को बेचने के बारे में अधूरी जानकारी होती है - वो हर पल हर घडी कुछ न कुछ बेच रहे होते है लेकिन उन्हें ये पता ही नहीं होता है कि वे बेच रहे है !!
वे खुद को जिस जॉब में है उस जॉब का कर्मचारी मानते है जबकि हकीकत में वे अपनी सेवाएं बेच रहे होते है ,वे पेड़ के उस हिस्से को देख पाते है जो ज़मीन से ऊपर है ,ज़मीन के नीचे के हिस्से को उनकी नज़रें देख नहीं पाती और दिमाग शब्दों के दायरे में कैद होकर रह जाता है ,शब्दों के वास्तविक अर्थ तक पहुँच ही नहीं पाता !
वे शब्द खतरनाक होते है जिनका आप हर रोज़ इस्तेमाल करते है लेकिन उनका अर्थ नहीं जानते है ऐसे शब्द आपकी ज़िन्दगी को बर्बाद कर सकते है !! गरीबों के साथ यही हो रहा है , वे सेल्समेन होकर भी खुद को सेल्स से बाहर मान रहे है और खुश हो रहे है !! अगर उन्हें शब्दों का सही अर्थ पता होता और पता होता कि वे बहुत अच्छे सेल्समेन है तो आज उनकी स्थिति कुछ अलग होती !!!
Post  लम्बी हो गई है बाकी अगली पोस्ट में 
-सुबोध 
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135 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आप पहली बार नया काम करते है तो अमूनन वो मुश्किल ही होता है लेकिन उसके बाद जब उसे दुबारा करेंगे  तो वो उतना मुश्किल नहीं लगेगा  और उसी कार्य को  फिर किया तो ? 
कोई भी कार्य लगातार  दोहराने से आसान हो जाता है, जब ये आसान हो जाता है तो इसे करना सुखद  हो जाता है .और मानव स्वाभाव के अनुसार  सुखद कार्यों को वो बार-बार करना चाहता है और जब इसे बार-बार किया जाता है तो ये कार्य करना आदत  बन जाता है - उस स्थिति में वो कार्य उसके कम्फर्ट जोन ( Comfort Zone ) के दायरे में आ जाता है .
मुझे याद है मैं 10  साल पहले तक सिस्टम पर काम किया करता था ,जब पहली बार लैपटॉप लिया था तो लैपटॉप में  माउस न होने की वजह से बहुत दिक्कत होती थी ,उस दिक्कत से बचने के लिए मैंने एडिशनल माउस तक मंगवा लिया था ,लेकिन फिर धीरे-धीरे अभ्यास से बिना माउस से ही लैपटॉप पर काम करने लगा और आज मेरे लिए सिस्टम से ज्यादा लैपटॉप पर काम करना आरामदेह  है , यानि मेरा" टफ जोन "आज "कम्फर्ट जोन" में बदल गया है 
आपके पास खुद के इसी तरह के ढेरों उदहारण होंगे कि आपने अपने उस बैरियर को तोडा है जो आपका टफ जोन था , अगर वो बैरियर आप नहीं तोड़ते तो आप कहाँ होते ?
हमेशा ध्यान रखे बाहर कोई भी मुश्किल उतनी मुश्किल नहीं होती जितनी आपके दिमाग में होती है , जब आप उस काम को करने जाएंगे जिसे आप कठिन मानते है तो वो उतना कठिन नहीं होगा जितना कठिन आपके दिमाग के स्टोर रूम में पड़ी फाइलों ने आपको बताया है और अगर आपके अनुमान से वो ज्यादा कठिन है तो आपने अपनी 2 किलोमीटर की दौड़ को सीधे  ही 6  किलोमीटर के स्तर पर पहुँचाने की कोशिश की है !! ऐसी स्थिति में मैं आपको यही कहूँगा कि कृपया खुद को टफ जोन में धकेलिये ,पहाड़ के ऊपर से धक्का मत दीजिये ; खुद को मोटीवेट ( Motivate ) कीजिये न कि खुद के प्रति निष्ठुर बनिये !!! 
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134 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आपका आरामदेह दायरा क्या है ? आपका कम्फर्ट जोन क्या है ?
मान लेते है अभी आप डेली  2  किलोमीटर दौड़ते है और आप  डेली 4  किलोमीटर दौड़ना चाहते है .
2 किलोमीटर या इससे कम दौड़ना आपके लिए आपका कम्फर्ट जोन है क्योंकि इतना आप डेली दौड़ते है और इतना दौड़ने में न आपकी साँस फूलती है, न आपकी पिंडलियों में दर्द होता है और न ही आपको अतिरिक्त थकान महसूस होती है . जबकि 2  किलोमीटर से ज्यादा दौड़ने में आपको दिक्कत महसूस होती है तो 2  किलोमीटर से ज्यादा दौड़ना आपके लिए "कठिन क्षेत्र"  , "मुश्किल क्षेत्र"  " टफ जोन " है.

 इसका मतलब ये हुआ कि जब भी आप अपने 4 किलोमीटर दौड़ने के लक्ष्य को पाने के लिए 2 किलोमीटर से अधिक दौड़ेंगे आपको पूरे रास्ते मुश्किल यात्रा करनी होगी ,आप जब भी 2  किलोमीटर से अधिक दौड़ेंगे आपकी साँस फूलेगी,आपकी पिंडलियों में दर्द होगा ,आपको अतिरिक्त थकान महसूस होगी ,आप हाँफने लगेंगे ,आपके माथे पर पसीना नज़र आने लगेगा .
ये कम्फर्ट जोन जीवन के हर क्षेत्र में होता है , आप अपनी सीमा रेखा में है तो ये आपका कम्फर्ट जोन है खुद को सीमा रेखा से बाहर धकेलना मुश्किल क्षेत्र है .
गरीब और मध्यम वर्गीय मानसिकता के लोग  अपनी ज़िन्दगी को आरामदेह बनाना चाहते है , लिहाजा वो खुद को आरामदेह बना लेते है वे 2  किलोमीटर दौड़ने में ही आरामदेह महसूस करते है .  .  इस आरामदेह क्षेत्र का चुनाव उन्हें ज्यादा आत्मसंतुष्ट, ज्यादा सुरक्षित,ज्यादा तरोताज़ा महसूस करवाता  है .लेकिन ये आरामदेह दायरा उनके विकास को रोक देता है , उन्हें जानना और समझना चाहिए कि  2  किलोमीटर से अधिक दौड़ने पर उनके फेफड़े अधिक सक्रिय होंगे, पुराने तंतु टूटकर नए सिरे से अधिक मजबूत बनेंगे , वे पहले से ज्यादा ऑक्सीजन का उपयोग करेंगे ,उनका शारीरिक और मानसिक विकास पहले से ज्यादा होगा . वे अपनी अज्ञानता की वजह से जड़ों में काम नहीं करते ,जड़ो को मजबूत और स्वस्थ्य बनाने की बजाय पेड़ों की पत्तियों को पानी डाल -डाल कर साफ़ करते रहते है और  खुश होते रहते है.
दरअसल आप अपना विकास अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आकर ही कर सकते है , अपने कम्फर्ट जोन में रहकर जो आप हासिल कर सकते है वो तो कर ही रहे है अगर आपको उस से अधिक चाहिए तो आपको 2  किलोमीटर से अधिक दौड़ना पड़ेगा . 
अमीर लोग हर बार अपने कम्फर्ट जोन को तोड़ते रहते है 2  किलोमीटर से 4   किलोमीटर 4  किलोमीटर से 6  किलोमीटर . वे वाकई कुछ अतिरिक्त नहीं करते सिवाय अपने कम्फर्ट जोन को हर बार तोड़ते रहने के....
उनकी अमीरी का एक राज ये भी है !!!!

सुबोध
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133 . सही या गलत -निर्णय आपका !

अगर आप अपनी ज़िन्दगी को मुश्किल बनाना चाहते है तो आसान कामों का चुनाव कीजिये और अगर आप अपनी ज़िन्दगी को आसान बनाना चाहते है तो मुश्किल कामों का चुनाव कीजिये .

जिस रास्ते पर भीड़ चलती है वो रास्ता आसान होता जाता है क्योंकि उस रास्ते पर चलने के लिएलैंडमार्क्स मौजूद होते है और बड़ी उपलब्धियां आसान रास्तों पर नहीं होती क्योंकि उस रास्ते की हरियाली तो भीड़ पहले ही कुचल चुकी  है ,उस रास्ते के सारे फूल पहले ही तोड़ लिए गये है ,ख़ूबसूरत नज़ारे पहले ही बर्बाद कर दिये गये  है !!!

बड़ी उपलब्धियां, हरियाली ,खूबसूरती,महक उन रास्तों पर होती है जो अनजान होते है ,ज़िन्दगी में कुछ हासिल करने का,नया और बेहतरीन पाने का  रोमांच भी उन्ही रास्तों पर होता है जहाँ पगडंडियां भी नहीं बनी होती है ,खुद के दम पर सब कुछ बनाना होता है . वो बनाना ही आपको अपने कम्फर्ट जोन से बाहर धकेलता है ;एक मेंढक को बाज़ बनने की ताकत देता है .

याद रखे आपका कम्फर्ट जोन ही आपका वेल्थ जोन होता है !कृपया गरीबी को भाग्य का खेल मत मानिये इसे कम्फर्ट जोन का चुनाव मानिये !!
- सुबोध 

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132 . सही या गलत -निर्णय आपका !

ज़िन्दगी में आपको आगे बढ़ने से कौन रोक रहा है ? आपके पैरों में ज़ंज़ीर डालने वाला कौन है ? मुकाबले में खड़े हुए बिना ही आपकी हार की घोषणा करने वाला कौन है ? वो कौन है जो इस बहुतायतवाले संसार में आपको अवसरों की कमी है ऐसा कह रहा है ? जो उत्साह के माहौल में भी आपको हताश, निराश  कर देता है वो कौन है ? क्या आपने कभी जानने की कोशिश की ?
मेरे पुरानी पोस्ट पढ़े , उनमे मैंने कई  वजह बताई है जो आपकी इस स्थिति  की वजह है . 
मैंने बार-बार लिखा है आप जैसे भी है उसके जिम्मेदार सिर्फ आप ही है ,कोई अन्य नहीं . किसी दुसरे को  दोषी ठहराना सुधार के रास्ते को बंद करना है .क्योंकि सुधार हमेशा जिम्मेदारी को स्वीकारने से होता है !!
मेरी  पोस्ट 129 ,130 ,131   लक्ष्य के बारे में है , ईमानदारी से बताएं क्या आपने उन पोस्ट में बताये गए तरीकों पर अमल किया है ?

नहीं किया, अच्छा किया, करना भी नहीं चाहिए  क्योंकि हर आदमी का सच अलग होता है ,ये ज़रूरी नहीं मेरा सच आपका भी सच हो लेकिन कृपया ये बताये कि आप दूसरे के सच को स्वीकार नहीं रहे है ,खुद के सच में दम नहीं है तो आप करना क्या चाहते है ? 
यानि आप  अनिर्णय की स्थिति में है या नकारात्मक भावों को अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाये हुए है . कृपया  ये समझ लेवें जब तक आप इनके खिलाफ खड़े होने की हिम्मत खुद में पैदा नहीं करते ,आपकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो सकता . उन सपनो की कोई कीमत नहीं होती जिसे देखने के बाद आपको नींद आ जाये , वो सपने साकार भी नहीं होते !! तो अपनी इच्छाओं में वो आग पैदा करें जो आपमें ऊर्जा भर दे ,आपके सारे नकारात्मक  भावों को जला कर राख  कर दे .तभी आपके लक्ष्यों की सार्थकता है .
सुबोध

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131 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आप कुछ पाने का लक्ष्य बनाते है -
*धन की एक निश्चित ,सही-सही मात्रा  सोचते है .( जितनी ज्यादा डिटेल में जा सकते है जाए )
**उसे किस काम के द्वारा  पाएंगे.( जितनी ज्यादा डिटेल में जा सकते है  जाए ) 
 ***उसे पाने की क्या कीमत आप चुकाएंगे ये भी ज्ञात कर लेते है .( जितनी ज्यादा डिटेल में जा सकते है  जाए )
****और एक कटऑफ डेट भी चुन लेते है .( जितनी ज्यादा डिटेल तैयार कर सकते है करें )
ये आपका लक्ष्य तैयार हो गया !!
चारों   मुख्य  बातों के आगे मैंने रिमार्क में डिटेल देने के बारे में भी लिखा है - आप जितनी ज्यादा डिटेल देंगे उतना ही ज्यादा आपका विज़न क्लियर होता जायेगा . 
दस साल में मैंने एक करोड़ रूपया कमाना है - ये लक्ष्य हो सकता है लेकिन इसमें डिटेल नहीं है लिहाजा ये आपको स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं दे पाता है ,पहले साल आपने क्या कमाना है बल्कि पहले महीने या पहले वीक ... लब्बोलुबाब ये है कि जितनी ज्यादा डिटेल उतना स्पष्ट लक्ष्य . 
चारों  पॉइंट के साथ अपनी जितनी ज्यादा डिटेल तैयार कर सकते है करे उसके बिना प्रोपेरली वर्क प्लान संभव नहीं है और डिटेल न होने पर  आपको खुद की सफलता / असफलता को जांचने का मौका नहीं मिलेगा . लिहाजा खुद को मोटीवेट रखने के लिए आपके पास पूरी डिटेल होनी चाहिए .
अगर आप वाकई सीरियस है तो लक्ष्य अपनी खुद की लिखावट  में तैयार करें ! मैं खुद की लिखावट के लिए इसलिए कह रहा हूँ कि ये आपका खुद के प्रति कमिटमेंट है  और हाँ ,मेरी इस बात को हलके में न लेवे !!!!

बधाई हो ! आप अमीरी के रास्ते पर चल पड़े है !!
-सुबोध
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130. सही या गलत -निर्णय आपका !

जब लक्ष्य बनाने की बात आती है तो ज्यादातर लोग इसे मजाक में लेते है !!

उन्हें लक्ष्य की आवश्यकता और अहमियत समझ में नहीं आती , उन्हें लक्ष्य बनाना गैरजरूरी और बोझिल लगता है .

वे जैसा कि मैंने अपनी पोस्ट 113 ( http://saralservices.blogspot.in/2014/08/110_23.html ) में लिखा है चाहना,चुनना और समर्पण में फर्क ही नहीं कर पाते .

उन्हें ये अंदाजा ही नहीं होता कि हमे अपनी जीत किस स्तर पर जाकर स्वीकार करनी है  ? वे निशानाकहाँ साध रहे है ? 
तीन वक्त की रोटी पर ,गाड़ी पर , बंगले पर ?
वे लाख रुपये साल का कमाना चाहते है या महीने का या दस लाख महीने का या एक करोड़ महीने का ? 

उनके दिमाग में कोई स्पष्ट खाका नहीं होता कि किस स्तर को पाने के लिए उन्हें क्या कीमत चुकानी होगी ?

आर्थिक स्वतंत्रता का लक्ष्य बनाना तो बहुत दूर की बात है ,उन्हें तो ये समझ में ही नहीं आता कि ऐसा कोई कांसेप्ट होता है और उसे हासिल किया जा सकता है.
वे दौड़ते रहते है , प्रयास करते रहते है ,ज़िन्दगी रूपी प्लेग्राउंड में उस फुटबॉल को लेकर जिसके लिए उनकी निगाहों में कोई गोल पोस्ट नहीं है - उन्होंने बनाया नहीं है !!!! (http://saralservices.blogspot.in/2014/09/129.html)

ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार से चलती है वो आपको कुछ न कुछ बनाएगी जरूर .अगर आपने लक्ष्य बना रखा है तो आप उसके अनुरूप बनेंगे और अगर लक्ष्य नहीं बनाया है तो आप वो बनेंगे जो शायद आप बनना नहीं चाहें . जब कुछ न कुछ बनना ही है तो  क्यों न वो बने जो बनना  चाहते है !!!! 
सुबोध
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129. सही या गलत -निर्णय आपका !

ज़िन्दगी में लक्ष्य  तय किये बिना शुरुआत  करना वैसा ही है जैसा फुटबॉल खेलते वक्त गोल पोस्ट का पता न होना ,वो  बड़ी ही हास्यास्पद स्थिति होती है जब एक फुटबॉल खिलाडी के पास फुटबॉल हो लेकिन उसे ये पता न हो कि गोल कहाँ करना है . अगर आप फुटबॉल मैच के दर्शक हो तो क्या ऐसी टीम को सपोर्ट करेंगे जिसके खिलाडी को ये भी पता नहीं हो कि गोल कहाँ करना है ? अगर नहीं तो क्यों ?

आपको शायद पढ़कर अच्छा नहीं लगे लेकिन हकीकत और  दुःख  की बात ये है कि संसार के अधिकांश लोग  इसी वर्णित खिलाडी  की नुमाइंदगी करते है !! 

ऐसा  पत्र  जिसमे बहुत अच्छी-अच्छी ज्ञान भरी बातें लिखी हो लेकिन जिसके लिफाफे  पर पता नहीं लिखा हो वो बिना पता लिखा हुआ लिफाफा पोस्टमैन कहाँ डिलीवरी करेगा ? संसार में बहुत से ऐसे लोग होते है जिन्हे बहुत कुछ पता होता है, ज्ञान का भण्डार होते है, जिनके दिमाग में कूट-कूट कर नए-नए आइडियाज भरे होते है लेकिन वो कहीं नहीं पहुंचते ,क्यों नहीं पहुंचते क्या कभी आपने सोचा ?
अब गौर कीजियेगा - उनके लिफाफे पर लक्ष्य रूपी पता नहीं लिखा होता !!!!! .
गरीबी की बड़ी वजहों में से एक लक्ष्य का निर्धारण न करना  है .
सुबोध 
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128. सही या गलत -निर्णय आपका !



अमीर मानसिकता के लोगों को अपनी कार्यक्षमता पर भरोसा होता है लिहाजा वे अपने प्रदर्शन ( Result ) के आधार पर पेमेंट माँगते है , जबकि गरीब मानसिकता के लोग समय के आधार पर पेमेंट माँगते है .
-सुबोध
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127. सही या गलत -निर्णय आपका !

आज़ादी, स्वतंत्रता जैसे शब्दों की गहराई में जाए तो समझ में आता है कि जिसे हम आज़ादी कहते है वो अपने अंदर एक जिम्मेदारी समेटे है .आपको खुश होने की आज़ादी तब है जब आप खुश होने के लिए किये जानेवाले कार्यों की जिम्मेदारी लेते है . आपको अपनी संतान को संतान कहने की आज़ादी  तब है जब आप उनके भरण- पोषण की जिम्मेदारी लेते है . आपको अपनी बीमारी से आज़ादी तब मिलती है जब आप डॉक्टर द्वारा दी गई हिदायतों को जिम्मेदारी से पूरा करते है . आपको दोस्त को दोस्त कहने की  आज़ादी  तब है जब आप दोस्ती नामक लफ्ज़ के साथ जुडी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते है .
                 आपके जीवन के हर पहलु के साथ आज़ादी जुडी हुई है और उस आज़ादी के साथ एकजिम्मेदारी भी . वो आपके जिम्मेदारी से किये गए कार्यों का परिणाम  है कि कई तरह के  दुखों से,अभावों  से आपको आज़ादी मिली है ,और आप एक सुविधापूर्ण जीवन जी पा रहे है .
            आपके एक कलीग को इन्क्रीमेंट मिलता है दुसरे को नहीं ,आपने सोचा क्यों होता है ऐसा ?
             आपके साथ खेला-कूदा बड़ा हुआ एक दोस्त आज पैसे में खेलता है और दूसरा दो वक्त की रोटी भी ढंग से नहीं जुटा पाता ,  क्यों?
           मजाक  की बात ये है कि अधिकांश लोग जिम्मेदारी नामक लफ्ज़ से दूर भागते है, जहाँ तक होता है इससे बचते है .
           आज़ादी का एक अर्थ जैसा कि मैंने ऊपर बताया  जिम्मेदारी है उसी के अनुसार गुलामी का अर्थ गैर-जिम्मेदारी हो जाता है .
          मुझे शायद ये बताने की जरूरत नहीं है कि आज़ादी और गुलामी  में से आपको किसका चुनाव करना चाहिए , क्यों करना चाहिए और मेरे इस वाक्य का सही अर्थ क्या है !
- सुबोध 

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126. सही या गलत -निर्णय आपका !

वित्तीय बुद्धि आपको यह सिखाती है कि शांत पड़े तालाब  में तरंगे कैसे पैदा की जाए , जब स्थिति सामान्य हो या मार्किट तेजी में हो तो कोई भी पैसा बना सकता है ( हालाँकि ऐसा होता नहीं है लेकिन लोग ऐसा मानते है ) परन्तु जब मार्किट मंदी में  हो तब पैसा कैसे बनाया जाए . छुपे हुए अवसर को कैसे पहचाना जाए ?  समस्या को किस तरह अवसर में बदला जाए ? जब आपके पास पैसा न हो तब भी मार्किट में सौदे कैसे किये जाए, मार्किट से पैसे कैसे उगाहे जाए ? 
                       यानी ये शिक्षा ,ये बुद्धि आपके दिमाग के उस भाग को सक्रिय करती है जो वित्त से सम्बंधित है और अमूनन काम में ना लेने की वजह से कोमा में चला जाता है ..
                       सबसे महत्वपूर्ण  दक्षता  जो आपको चाहिए वो है अंको को पढ़ना और समझना यानि वित्तीय साक्षरता . लोग अंको को पढ़ना जानते है , उन्हें समझना नहीं जानते , जब किसी शब्द के साथ अंक जुड़ते है तो शब्द बदलने के साथ ही अंको के मायने भी बदल जाते है अंको के साथ ग्रॉस प्रॉफिट की बजाय नेट प्रॉफिट लिखा है तो पूरा का पूरा सन्दर्भ ही बदल जाता है यानी अगर  शब्दों के अर्थ और अंको की समझ आपको नहीं है तो उसे जानना ही आपके लिए वित्तीय बुद्धि हासिल करने का पहला कदम है . अगर आपको संपत्ति   और दायित्व   का अर्थ नहीं पता है तो अकादमिक रूप से शिक्षित होकर भी  आप वित्तीय रूप से अशिक्षित है . 
दूसरा कदम  धन से धन कैसे बनाया जाता है  , कम धन से किस तरह के सौदे करने चाहिए, उन्हें करने के  तरीके क्या है यानि कम धन से पैसा  कैसे बनाया जाता है और कई मर्तबा तो बिना धन के धन कैसे बनाया जाता है ये जानने के साथ-साथ निवेश को समझना  है.निवेश के कई इस्ट्रुमेंट्स होते है ,लोग निवेश का अर्थ   शेयर मार्किट , बैंक की जमा , प्रॉपर्टी, गोल्ड वगैरह ही मानते ,जानते है !!
                           तीसरे कदम में बाज़ार को समझना , वर्त्तमान में कितनी मांग है भविष्य में कितनी हो सकती है, पुर्ति  कितनी है भविष्य में किस तरह से पुर्ति  होगी, कितनी शॉर्टेज  रहेगी ये सब आकलन करना और इस आकलन से मार्किट में उतरने की स्ट्रैटेजी तैयार करना है इसी में ये भी ध्यान रखना है कि नई  टेक्नोलॉजी भविष्य में वर्तमान के मार्किट पर क्या और कितना प्रभाव डाल सकती है, प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करना / समझना ,नए लांच होने वाले प्रोडक्ट पर स्टडी रखना , अपने कॉम्पिटिटर की जानकारी रखना ये सब है. 
                       चौथे कदम में आपको कानून की जानकारी होनी चाहिए , जो व्यवसाय कर रहे है उस व्यवसाय में कौन -कौन से डिपार्टमेंट से क्लियरेंस आपको चाहिए , कॉर्पोरेट,स्टेट और नेशनल लॉ के बारे में जानकारी के साथ-साथ एकाउंटिंग की जानकारी भी आपको होनी चाहिए , ये ध्यान रखे वित्तीय रूप से शिक्षित व्यक्ति कानूनों का सम्मान करते है ,कानून तोड़ने जैसे पचड़े में पड़ने की बजाय वे कानून के दायरे में रहते हुए काम करते है . चूँकि उन्हें कानूनों की पूरी जानकारी होती है ,कानून में  मौजूद छिद्रो की भी .इन्ही छिद्रों का इस्तेमाल करकर वे अतिरिक्त पैसा पैदा करते है .
सुबोध

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125. सही या गलत -निर्णय आपका !

                       अमीर और गरीब के बीच जो सबसे महत्त्वपूर्ण फर्क है वो है विचार का - विचार के चुनाव का !!!
                       कोई भी विचार आपके दिमाग में नकारों  की तरह  नहीं रहता - वो आपके दिमाग में रहने का कुछ न कुछ असर आप पर छोड़ता ही है ,अच्छा या बुरा , खर्च या निवेश, सफलता या असफलता , मजबूती या कमजोरी ., इसलिए अपने दिमाग में किसी भी विचार को आप सोच समझ कर ठहरने देवे . 
                     मैं वापिस आपको याद दिला दूँ - विचार भावनाओ की ओर ले जाते है - भावनाएं कार्य की ओर और कार्य परिणामों की ओर . लिहाजा एक गलत विचार आपको बुरा परिणाम देगा और एक अच्छा विचार आपको सही परिणाम देगा . 
                   अब जब आप विचार-भावना-कार्य-परिणाम का आपसी सम्बन्ध समझ लेते है तो अपने दिमाग में उन्ही तरीके के विचारों को आश्रय देवे जिस तरह के विचारों को अमीर देते है , जब आप उनकी तरह सोचना, समझना और करना सीख जाते है तो उन्ही की तरह बन भी जायेंगे ....
- सुबोध 

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124. सही या गलत -निर्णय आपका !

जब आप ये समझ लेते है कि बाहर वही आता है जो अंदर होता है यानी फल जड़ो के अनुरूप लगते है तो अपने छोटे, खट्टे,बदबूदार फलों को लेकर परेशान न होवें, जो उग चुके है, उन्हें आप नहीं बदल सकते . लेकिन हाँ, अगर आप जमीन की खुदाई करते है खाद -पानी डालते है पेड़ की जड़े मजबूत,स्वस्थ्य कर पाते है तो आगे से पेड़ पर  लगने वाले फलों को बदल सकते है उन्हें  बड़े,मीठे और महक वाले बना सकते है  .
   अगर आप अपनी बाहरी दुनिया को बदलना चाहते है आपको पहले अपनी अंदरुनी दुनिया बदलनी होगी , बाहरी दुनिया तो सिर्फ परिणाम है ये तो यह बताती है कि आपके अंदर क्या चल रहा है .मैं आपको वापिस याद दिला  दूँ आप जिस दुनिया में रहते है वो कारण और परिणाम पर आधारित है .
  आपके साथ जो भी हो रहा हो अच्छा या बुरा , लाभदायक या नुकसान दायक , सकारात्मक या नकारात्मक ये आपके आतंरिक संसार का परिणाम है . इसलिए कभी आपको अपने बाहर के परिणामो से हताशा हो तो कृपया अपने अंदर झांक लेवे . 
 अमीर लोग बचत  को आदत बनाते है इसलिए उन्हें अपनी बाहरी स्थिति का शीघ्र पता चल जाता है ,उस स्थिति में वे अपनी आतंरिक स्थिति में वांछित सुधार  कर लेते है जबकि गरीबों के लिए बचत एक उत्सव होता है इसलिए उन्हें अपनी बाहरी स्थिति का पता बहुत बाद में चलता है , पता चलने के बावजूद भी चूँकि उन्हें बाहरी स्थितियों  का आतंरिक स्थितियों से सम्बन्ध पता  नहीं होता लिहाजा वे  भाग्य ,मंदी ,अर्थव्यवस्था जैसी बातों का रोना रोते है , उनकी यही अज्ञानता उन्हें भारी पड़ती है .  
- सुबोध
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123. सही या गलत -निर्णय आपका !

संसार के अधिकांश लोग पैसे के मामले में " खुद " को जिम्मेदार मानने की  बजाय  "भाग्य"  को जिम्मेदार मानते है लिहाजा गैर जिम्मेदार लोगों के हिस्से में जो आ सकता है वही उनके हिस्से में आता है . पैसे को वे कंट्रोल नहीं करते बल्कि पैसा  उनकी कंडीशनिंग के अनुसार उन्हें कंट्रोल करता है . 

वे जीवन को  गंभीरता से लेने की बजाय बड़े ही हलके स्तर पर लेते है -साधारण तरीके से सोचते है ,साधारण  तरीके के प्रयास करते है और सिर्फ वही देखते है जो उन्हें नज़रों से दिखाई देता है .नज़रों से इतर भी कुछ हो सकता है उन्हें ये समझ में नहीं आता. उन्हें पेड़ दिखाई देता है जड़े नहीं , उन्हें सुन्दर भवन दिखाई देता है, नींव नहीं .वे सिर्फ बाहरी तत्व देखते है उन्हें आतंरिक तत्वों की  समझ ही नहीं होती . 

 और जिन्हे आतंरिक तत्वों की महत्ता ज्ञात होती है  ,जो इन्हे विकसित करने पर मेहनत करते है वे उस श्रेणी में आ जाते है जिन्हे लोग अमीर कहते है. आपने कुछ अमीरों को विपरीत परिस्थितियों में बर्बाद होते देखा होगा लेकिन शीघ्र ही वे दुबारा पहले वाली स्थिति में पहुँच जाते है उसकी मुख्य वजह होती है उनकी आतंरिक तत्वों की शक्ति , वे सब कुछ गँवा देते है लेकिन सफलता के मूल तत्व को नहीं गवांते  और इसी वजह से वे दुबारा अमीर बनने में सफल हो जाते है .

ये ध्यान रखें बाहरी तत्वों से ज्यादा महत्वपूर्ण  आतंरिक तत्व होते है , अगर अमीर बनना है तो अपने आतंरिक तत्वों को विकसित करने पर मेहनत करें. 

इस पोस्ट को बराबर समझने के लिए मेरी पोस्ट 120 .121  और 122  पढ़ें 
सुबोध
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122. सही या गलत -निर्णय आपका !

जब आप ये जान लेते है कि सफलता के लिए बाह्य तत्वों से  ज्यादा  आतंरिक तत्व  जिम्मेदार है  तब आप ये भी जान लेते है कि सफलता को साधने के लिए, सम्हालने के लिए शरीर की मजबूती से ज्यादा वैचारिक और भावनात्मक मजबूती जरूरी है .
 इस बात को समझने के बाद जब लोगों को आप हारते देखे , बदकिस्मती का रोना रोते देखे, धोखेबाज़ पार्टनर या अर्थव्यवस्था की मंदी या नई टेक्नोलॉजी के  आविर्भाव में पुरानी का बर्बाद होना सुने तो असली वजह समझ जाए कि समस्या कहीं बाहर नहीं उनके अंदर है .- उनकी जड़ों में है , उस दो लीटर माप के बर्तन में है जिसमे डेंट आ गया है और अब डेंट आने की वजह से उस बर्तन में  दो लीटर दूध नहीं आ सकता . 
 ज्यादतर लोगों के पास ढेर सारा पैसा बनाने के बावजूद उनमे पैसा  सम्हालने की क्षमता ही नहीं होती मेरी पोस्ट 4 ,5  और 6 देखें  .  याद रखे पैसा कभी भी अकेला नहीं आता , हमेशा अपने साथ चुनौतीलेकर आता है कि आओ मुझ पर सवारी करो, मुझे साधो ,अगर आप उसको साध पाये, उस पर सवारी कर पाये तो वो आपका पालतू होगा अन्यथा आपके मन को, विचारों को चोट पहुंचा कर आपसे दूर चला जायेगा ,आपके माथे पर असफलता का ठप्पा लगा जायेगा . 
तो अमीर बनने के लिए पहली बात मानसिक रूप से खुद को तैयार करें .दूसरी बात पैसे को सम्हालने के लिए खुद को तैयार करें ,पैसे के साथ आने वाली चुनौतियों का सामना करना सीखें यानि कुल मिलाकर  अगर आपको तीन लीटर दूध चाहिए तो बर्तन दो लीटर क्षमता वाला  नहीं चलेगा .. पहले बर्तन बड़ा करें तब ज्यादा दूध लेवे .
ये पोस्ट 121  का हिस्सा है ,इस पोस्ट को बराबर समझने के लिए पोस्ट 121 भी  पढ़ें .
-सुबोध

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121 . सही या गलत -निर्णय आपका !

हम  दो पहलुओं वाली दुनिया में रहते है  - सिक्के की तरह दो पह्लु  -अंदर और बाहर, ऊपर और नीचे , दायाँ और बायाँ, प्रकाश और अँधकार , सर्दी और गर्मी .

जैसाकि  मैंने  अपनी पुरानी पोस्ट 52  में बताया था "पैसा होना वित्त के क्षेत्र में सफलता का प्रतीक है ." इस सफलता के भी दो पहलु होते है - आतंरिक और बाहरी.   

आंतरिक पह्लु   को कई तत्व तय करते है जिनमे महत्वपूर्ण आपकी कंडीशनिंग, आपका चरित्र , आपकी सोच ,आपका विश्वास , आपकी लगन  है . 

बाहरी पह्लु को तय करने वाले  तत्वों में आपका व्यावसायिक ज्ञान , कार्य कुशलता , व्यवहारिकता , धन का प्रबंधन  आदि शामिल है .

जो दिखता है लोग उसे ही सच मानते है . लोग किसी पेड़ के फल को महत्त्वपूर्ण मानते है  जबकि महत्त्वपूर्ण जड़े होती है ,फल तो जड़ों की मजबूती,जड़ों की ताकत ,जड़ों के स्वास्थ्य   का परिणाम भर है .

बाहरी तत्वों की मजबूती महत्त्वपूर्ण है ,लेकिन अंदरूनी तत्वों की मजबूती उस से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है .कमजोर जड़ो से अच्छे फल की उम्मीद करना दिवास्वप्न के अतिरिक्त कुछ नहीं है .
आपने गौर किया होगा कुछ लोगों के पास ढेर सारा पैसा आ जाता है लेकिन सारा पैसा जल्दी ही ख़त्म भी हो जाता  है . कुछ लोगों के पास बड़े अच्छे अवसर होते है, वे एक धमाकेदार शुरूआत करते है लेकिन जल्दी ही चुके  हुए में शामिल हो जाते है .क्या आपने कभी इसका विश्लेषण करने का प्रयास किया ,अगर नहीं किया है तो हर असफलता के मूल तत्व तक पहुँचने का प्रयास करें , आप बहुत कुछ नया पाएंगे नया सीखेंगे !!!!
- सुबोध
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120 . सही या गलत -निर्णय आपका !

हर व्यक्ति की एक क्षमता होती है ,उसी क्षमता के अनुसार वो कार्य कर पाता है ,उसी क्षमता के अनुसार वो जीवन के हर क्षेत्र में प्रदर्शन कर पाता है , करता है . 
जैसे आप जिम जाते है ,कितनी वर्जिश कर पाते है ये आपकी क्षमता पर निर्भर करता है , कितना आप वजन उठा सकते है, कितना रन कर सकते है , कितना आप खा सकते है , कितना आप गा सकते है, कितना हंस सकते है ,कितना रो सकते है , कितना लिख सकते है, कितना पढ़ सकते है ये सब आपकी क्षमता पर निर्भर करता है  आपको शायद सुनकर झटका लगे कि पैसा सम्हालना भी आपकी क्षमता पर ही  निर्भर करता है . 

  इस साधारण सी लगने वाली बात को ढंग से समझे , क्या दो लीटर क्षमता के बर्तन में दो लीटर से ज्यादा दूध आ सकता है ? अगर नहीं तो जितनी पैसा सम्हालने की क्षमता है उस से ज्यादा पैसा आने पर क्या होगा ? वही होगा जो दो लीटर के बर्तन में दो लीटर से ज्यादा दूध डालने पर होता है !!!


 एक लॉटरी विजेता जिसे लाखों की लॉटरी निकल आती है , एक स्पोर्ट्स चैंपियन जिसे लाखों का इनाम मिलता है अंततः कहाँ होते है ? इन पर किये गए बार-बार के शोध के बाद पता चलता है कि इनमे से अधिकांश अपनी पुरानी वित्तीय स्थिति में पहुँच गए - उस पुरानी वित्तीय स्थिति में ,जितनी उनकी वित्त को सम्हालने की क्षमता थी , जो उनका कम्फर्ट जोन था . 


      लोगों के पास जितनी क्षमता होती है उसी के मुताबिक वे पैसा सम्हाल पाते  है ये वित्त के क्षेत्र में एक साधारण सा सिद्धांत है .  जो अपनी वर्त्तमान आर्थिक या वित्तीय स्थिति से खुश नहीं है उनके लिए खुशखबरी ये है कि इस क्षमता को प्रयास से बढ़ाया जा सकता है . आपकी लगातार की कोशिशे आपको आपके कम्फर्ट जोन से बाहर धकेलती है ,क्षमता के दायरे को बढाती है . 

इस बात को समझने के बाद भी अगर आप ये कहते है कि "पैसा ज्यादा आये तो सही, हम सम्हाल लेंगे "तो मेरा जवाब होगा आप अभी भी समस्या को  दूरबीन के गलत सिरे से देख रहे है . समस्या ये नहीं कि पैसा कम आ रहा है बल्कि समस्या ये है कि आपकी क्षमता इतनी नहीं है  कि आप ज्यादा पैसे को सम्हाल सकें  . दो लीटर क्षमता वाले बर्तन में दो लीटर से ज्यादा दूध नहीं आ सकता ,अगर आपको दो लीटर से ज्यादा दूध चाहिए तो आपको अपना बर्तन बड़ा करना होगा . पैसे के मामले में भी यही सच है .
- सुबोध

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119 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                      पैसा  ज़िन्दगी का अहम हिस्सा होता है , जिसे नकारना संभव नहीं है . जो पैसे की अहमियत नकारने का प्रयास करते है वो सिर्फ शुतुरमुर्ग  हो सकते है और उनका इस आर्थिक युग में क़त्ल होना तय है .

                     जब आप पैसे का प्रबंध करना शुरू कर देते है तो आपके हाथ में स्वतः निर्णय लेने और उन्हें क्रियान्वित करने के अधिकार आ जाते है ,कल तक जो पैसा आपकी कंडीशनिंग ( पोस्ट 91,92 और 96 देखें) के अनुसार खुद कार्य कर रहा था वो अब आपकी प्लानिंग ( पोस्ट  112 ,114 ,115 ,116  ,117 और 118 ) के अनुसार कार्य करेगा . ध्यान रखें अधिकार हमेशा जिम्मेदारिया उठाने पर मिलते है तो इन अधिकारों का सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए आपको स्वयं को सचेत और सक्रिय रखना पड़ेगा . जैसा कि मेरी पोस्ट 69  में  मैंने पैसे और वित्तीय बुद्धि के सम्बन्धो पर बताया था , जब आप अपने पैसे को प्रबंधित करने लगते है तो आप अपने कदम वित्तीय बुद्धि हासिल करने की तरफ बढ़ाने लगते है , जैसे-जैसे आप अपने पैसे को प्रबंधित करते जायेंगे आप निपुणता पाते जायेंगे .
  
         चूँकि अब आप के पास जीवन के हर क्षेत्र के लिए अलग-अलग खाते है जिनमे आप निश्चित प्रतिशत के अनुसार बचा रहे है तो किसी भी क्षेत्र में आप कमजोर, अव्यवस्थित नहीं है , आपकी वित्तीय स्थिति धीरे-धीरे संतुलित ,सुव्यवस्थित होती जा रही है जो आपको आत्मविश्वास दे रही है ,नई तरह की सफलता की ओर बढ़ा रही है ,आपके साथ-साथ आपका पैसा बोलने लगता है जो आपको आज  वित्तीय संतुलन दे रहा है और अगर आप खुद को व्यवस्थित रख पाते है तो अंततः वित्तीय स्वतंत्रता दिलाएगा. 


              जब आप संसार के सबसे जंगली घोड़े की सवारी करना सीख जाते है तो फिर  चाहे पहाड़ हो, मैदान हो या घाटियाँ आप हर जगह निर्भय हो जाते है ठीक यही बात पैसे के साथ लागू होती है.  जीवन में पैसे से  जंगली कुछ  नहीं हो सकता - जब ये होता है तो  इंसान पागल हो जाता  है और जब ये नहीं होता तो भी पागल हो जाता है अगर आपने इसे साधना सीख लिया तो आप संसार के उन  चंदसौभाग्यशाली  लोगों में होंगे जो जवानी के बाद बुढ़ापे में भी अपने परिवार के साथ हंसी-ख़ुशी से रहते है और जिनके  जीवन के सारे क्षेत्र हवा में बातें करते  है. अगर आपने इसे साधना नहीं सीखा है तो  आप संसार के उन अधिकांश दुर्भाग्यशाली लोगों में होंगे  जिन्हे जवानी के बाद बुढ़ापे में भी मजबूरी में काम करना  पड़ता है ,अपने  सम्मान को खोते हुए अपने परिवार के साथ रहना  पड़ता है  या वृद्धाश्रम में अपनी मौत का इंतज़ार  करना पड़ता है . ये आप पर है कि आप अपना शुमार चंद लोगों में करवाना चाहते है या अधिकांश लोगों में . 
- सुबोध
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118 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                        रोटी,कपडा और मकान  किसी व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताएं मानी जाती है . मैं इनमें  एक आवश्यकता और जोडूंगा और वो है संवाद की - कम्युनिकेशन की ,जिसने इंसान को इंसान बनाया, मानवीय बनाया. इन आवश्यकताओं के अलावा आपकी जो भी ज़रूरतें पोस्ट 112 ,114 ,115 ,116 एवं 117  में छुटी है वे सब आवश्यक खाते में जायेगी . इस खाते में आपको अपनी कमाई का 50 % प्रतिशत तक खर्च करना है .इस खाते के  बारें में इस पोस्ट में  मैं ज्यादा कुछ नहीं लिखूंगा क्योंकि पोस्ट बहुत लम्बी हो जाएगी और शायद यही तो एक खाता है जो सबको व्यवस्थित करना आता है , इस व्यवस्थित से मेरा मतलब क़र्ज़ लेकर आवश्यकताएं पूरी करने से नहीं है .
                     जैसा कि मैंने अपनी पोस्ट 114  में  आपको बताया था कि अपनी ज़रुरत के अनुसार आप किसी भी खाते में कम या ज्यादा कर सकते है ,हर खाते के रोल को, उपयोगिता को  मैंने संक्षेप में आपको बता दिया है ,ये रोल ,उपयोगिता अपनी ज़रुरत के अनुसार  आप डिटेल में जाकर समझे , पेपरवर्क करें ,फिर फाइनल करें कि किस खाते में कितना प्रतिशत आपने डालना है . 
                      एक बात का ध्यान रखे अगर आप अपने लॉन की घास व्यवस्थित नहीं करते है तो वो बेतरतीब तरीके से बढ़कर आपकी लॉन की खूबसूरती बिगाड़ देती है यही बात पैसे को लेकर भी है ,अगर आप इसे व्यवस्थित,प्रबंधित  नहीं करेंगे तो ये आपकी ज़िन्दगी की ख़ूबसूरती को बिगाड़ देगा.  या तो आप इसे नियंत्रित करें  नहीं तो आपकी कंडीशनिंग के अनुसार यह आपको नियंत्रित कर लेगा .
                       हो सकता है कुछ लोगों को ये झंझट का काम लगे ,उन्हें लगे इन  सब से उनकी   स्वतंत्रता, उनकी आज़ादी  बाधित होगी,सीमित होगी - तो उनको मेरा जवाब है इस से आपकी आज़ादी बाधित नहीं होती बल्कि पैसे का सही तरीके से प्रबंध करने से आपको अंततः वित्तीय स्वतंत्रता मिल जाएगी जिस से आपको दुबारा मजबूरी में  काम करने की  ज़रुरत नहीं होगी- और मेरी नज़र में असली स्वतंत्रता , असली आज़ादी यही होती है . 
- सुबोध 
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117 . सही या गलत -निर्णय आपका !

आप  प्रसन्न  कब होते है ?
आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि ख़ुशी या तो पाने में होती है या देने में . 
पाने का अर्थ उपभोग से भी है और संग्रह ( वस्तु का मालिकाना हक़ पाना ) से भी , और देने का अर्थ मदद करने से है, दान करने से है .
पाने वाले पक्ष से आप अच्छी तरह वाकिफ है मेरी पहले की पोस्ट्स में ढेरों बार इस पर लिखा जा चूका है लिहाजा उसके बारे में कुछ न लिख कर मैं दुसरे " देने " वाले पक्ष पर लिख रहा हूँ . देने में , मदद करने में एक संतुष्टि का भाव है . किसी बुजुर्ग महिला को आप सड़क पार करवाने के बाद संतुष्टि महसूस करते है ,ये देना है ,मदद करना है .इस से आपका आतंरिक संसार ( विचार, भावना एवं अध्यात्म का मिला जुला रूप ) संतुष्ट होता है , रिलैक्स्ड होता है ,एनेर्जिक होता है . 
देने का भाव आपको मानवीयता के उस उच्च स्तर पर ले जाता है , जहाँ आप महामानव हो जाते है . किसी एनजीओ ,किसी चाइल्ड वेलफेयर , किसी अनाथालय को जब आप दान देते है तो आपकी भावनाएं आपको मजबूती देती है ,एक अजीब सी ताकत देती है . 
  ध्यान रखे कोई भी व्यक्ति सिर्फ लेता नहीं है ,बदले में कुछ न कुछ आपको लौटाता है और ये उसका लौटाना ही आपका पुरुस्कार है - एक बच्चे को जब आप प्यार करते है ,उसके गाल पर हाथ फेरते है तो बदले में वो बच्चा आपको अपनी मुस्कान लौटाता है . हो सकता है आप भौतिकतावादी हो और आशीष ,शुभकामनाओ, मुस्कान  वगैरह की जुबान न समझते हो ,इनमेँ  यकीन न करते हो तो आप इतना समझ लेवे कि देने से  आपके अंतर को संतुष्टि मिलती है और संतुष्टि एक बेहतरीन उत्पादक टूल  होती है .
          रिश्तेदार,दोस्त,परिचित ज़िन्दगी में अपनी अहमियत रखते है उनके लिए दिल में हमेशा एकसॉफ्ट-कार्नर होता है अगर वे कभी  आपसे उधार लेते है ,मदद चाहते है ,सहायता चाहते है तो उन्हें मना कर पाना काफी तकलीफदेह होता है और अंदर से एक अजीब से गिल्ट का नकारात्मक  भाव पैदा करता है , इस अपराधबोध से बचने के लिए आपको व्यवस्थित होना चाहिए . अपनी कमाई में से हमेशा किसी अवांछित परिस्थिति के लिए बचा कर रखना चाहिए .
तो कुल मिलाकर कहना ये है कि अपनी कमाई का 10  %  आप दान और सहायता खाते में डालिये .
- सुबोध 

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ये पोस्ट मेरी पोस्ट 112, 114, 115 ,116  का हिस्सा है , मेरी पुरानी या ताज़ा पोस्ट पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक पर जाएँ .

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116 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                  इंसान सम्पूर्णतावादी होता है , इसका मतलब क्या होता है ?
 

                 अगर आपके खाने में नमक न हो या मीठे में शक्कर न हो  ? आपकी ज़िन्दगी में सिर्फ कमाना ही हो खर्च करना न हो ? सिर्फ व्यस्तता हो मनोरंजन न हो ? क्या ये अधूरापन नहीं ? जब बात पैसे के प्रबंधन की आती है तो अमीर मानसिकता एक संतुलन बना कर चलती है . वह मनोरंजन खाते में 10 % डालती है . इस 10 % को उसे इसी महीने खर्च करना होता  है .
   
               एक तरफ तो ज्यादा से ज्यादा कमाने का ,  बचाने का लक्ष्य   है और दूसरी तरफ  10 % उड़ाने का.  इसका क्या अर्थ है ?यही सम्पूर्णतावादी होना है .

             पहली स्थिति में -आप अपने जीवन के एक हिस्से को लम्बे समय तक अधूरा रखते है तो या तो वो सो जायेगा या विद्रोह करेगा . एक आदमी बचत करता है ,कंजूसी करता है , खर्चो को टालता जाता है और और लम्बे समय तक ऐसा ही करता है तो ये उसकी आदत बन जाती है ऐसी स्थिति में उसके मस्तिष्क का पैसे को लेकर तार्किक और जिम्मेदार हिस्सा संतुष्ट हो जाता है लेकिन मस्तिष्क का दूसरा हिस्सा जो मनोरंजन प्रधान है , सुकून चाहता है , नियंत्रण मुक्त होना चाहता है उसका क्या ? पैसे बचाने के अनुशासन को लेकर एक दिन वो हिस्सा  परेशान हो जायेगा और बचाये हुए सारे पैसे अतार्किक तरीके से बर्बाद कर देगा या फिर वो मनोरंजन प्रधान हिस्सा हमेशा के लिए सो जायेगा - क्योंकि पैसा बचाना आदत जो हो गई है !!!

                     दूसरी स्थिति में -अगर आप  खर्च करेंगे ,खर्च करेंगे और खर्च करेंगे  तो कभी भी अमीरनहीं बन पाएंगे आपके मस्तिष्क का पैसे के लिए जिम्मेदार हिस्सा आपको अपराध बोध  करवाने लगेगा ,आप आनंद की चीज़ों में भी आनंद की बजाय तनाव महसूस करेंगे . और इस तनाव को दूर करने के लिए फिर से कुछ खर्च करेंगे जिससे और ज्यादा तनाव पैदा होगा , इस चक्र से निकलने का तरीका यही है कि आप पैसे का उचित प्रबंधन सीखें . 
                    आपका ये मनोरंजन खाता आपके मस्तिष्क के आनंद वाले हिस्से को संतुष्ट करने के लिए है ,एनेर्जिक करने के लिए है , रिफ्रेश करने के लिए है , मनोरंजन करने के बाद जब ये काम पर लौटता है तो दुगनी गति से उत्पादक हो जाने के लिए है . 

                   अमीर मानसिकता "या ये" अथवा "या ये " नहीं चुनती बल्कि दोनों एक साथ चुनती है क्योंकि वो सम्पूर्णतावादी होती है .

(यह पोस्ट मेरी पहले की पोस्ट  112,114  एवं 115 की कड़ी है - इसे बराबर समझने के लिए पूर्व की दोनों पोस्ट भी पढ़ें )

-सुबोध 

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115 . सही या गलत -निर्णय आपका !

          अमूनन पढाई छोड़ने के बाद आम आदमी का शिक्षा से कोई ताल्लुक नहीं रह जाता , आम आदमी   इस बात को भूल जाता   है कि उनकी  असली संपत्ति उनका  दिमाग है जहाँ चुनाव की बात आती है ( पोस्ट 77  और 78  देखें ) तो वो  दिमाग की बजाय शरीर को प्राथमिकता देगा , शिक्षा की बजाय मनोरंजन को प्राथमिकता देगा .कोई अच्छा सेमिनार अटेंड करने की बजाय वो किसी थिएटर में मूवी देखेगा , अच्छे मोटिवेशनल ऑडियो सुनने की बजाय फ़िल्मी गाने सुनेगा , कोई बिज़नेस चैनल देखने की बजाय कोई एंटरटेनमेंट चैनल देखेगा , इसी तरह पढ़ने के मामले में वो वाहियात से जासूसी या सामाजिक नावेल या सड़कों पर मिलनेवाली तीसरे दर्जे की कोई मैगजीन पढ़ेगा ,अखबार में वो हत्या,बलात्कार,चोरी,डकैती जैसी  ख़बरें पढ़ेगा  बजाय कुछ गंभीर या अच्छा पढ़ने के . 
  एक आम भारतीय अपने दिमाग को किसी तरह की अच्छी तरह खुराक देने की बजाय शरीर को बेहतरीन से बेहतरीन देता है असल में उसे अपनी असली एकलौती संपत्ति की अहमियत ही पता नहीं होती और उसे ये भी पता नहीं होता कि अमीरी या गरीबी भगवान की  दी हुई नहीं होती बल्कि ये व्यक्ति का खुद का चुनाव होता है जिसका दरवाज़ा "दिमाग" खोलता है .
  तो अपनी कमाई में से 10 %  शिक्षा खाते (  पोस्ट 114  देखें ) में डालिये और  बच्चो की शिक्षा के साथ - साथ खुद को शिक्षित कीजिये  , शिक्षा का महत्व समझिए , कोई अच्छी बुक खरीदिए कोई अच्छा सेमिनार अटेंड कीजिये ,अपने मतलब के विषय की कोई क्लास ज्वाइन  कीजिये , कोई अच्छा ऑडियो या वीडियो खरीदिए , कोई मोटिवेशनल मूवी देख कर आइये . और ये ध्यान रखियेगा कि शिक्षा का उम्र से कोई ताल्लुक नहीं होता , जितना ज्यादा आप पढ़ेंगे ,देखेंगे उतने ही ज्यादा नए तरीके से सोचना और समझना  सीखेंगे , कल तक आपने जो सीखा था वो पुराना हो गया है , सुचना क्रांति के युग में ( पोस्ट 71   देखें ) खुद को अपडेट जो नहीं रख पाते है वो या तो ख़त्म हो जाते है या पिछड़ जाते है .
- सुबोध
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114 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                             गरीब मानसिकता के लोग ये सोचते है कि आमदनी ही सब कुछ है , वे मानते है कि अमीर वही हो सकता है जो ढेर सारा पैसा कमाता है , मेरा कहना ये है कि ये अमीरी  आमदनी का मामला न होकर पैसे के सुव्यवस्थित प्रबंधन का मामला है .अगर आप अलग-अलग खातों के अनुसार अपने पैसे को बाँट देते है और स्ट्रिक्टली फॉलो करते है  तो कम आमदनी के बावजूद आप आर्थिक दृष्टि से समपन्न और स्वतंत्र हो सकते है .
आइये इस बंटवारे को समझ लेवे 
10 % वित्तीय स्वतंत्रता खाता 
10  % दीर्धावधि  बचत खाता 
10  % शिक्षा खाता 
10  % मनोरंजन खाता 
10  % दान खाता , सहायता खाता 
50  % आवश्यक खाता 
   जैसे ही आपके पास पैसे आते है सबसे पहले आप उसमे से 10 % वित्तीय स्वतंत्रता खाते में डालें (पोस्ट 112  देखें ) .  इसे निहायत ज़रूरी समझे - वित्तीय स्वतंत्रता के लिए इतना ज्यादा ज़रूरी  जितना आपके ज़िंदा रहने के लिए आपका  सांस लेना ज़रूरी है  (पोस्ट 108  देखें )
अब बाकी के बचे हुए पैसे को आप अपनी ज़रुरत के अनुसार दुबारा कम - ज्यादा कर सकते है , लेकिन ये करने से पहले बेहतर है इन खातों का रोल आप समझ लेवे .
          किसी भी खाते को ख़त्म न करें क्योंकि इंसान सम्पूर्णतावादी होता है , किसी एक हिस्से को अधूरा रख कर आप उस हिस्से की या तो  गलत कंडीशनिंग कर रहे होते है या खुद को अधूरा रख रहे होते है - अमीर मानसिकता सम्पूर्णतावादी होती है किसी भी क्षेत्र में खुद को अधूरा नहीं रखती और आपको भी यही करना है .

दीर्धावधि बचत खाते का रोल ये है कि आप अपने भविष्य में पड़ने वाले मोटे खर्चे के लिए थोड़ी-थोड़ी बचत करते जाते है और लगातार बचत करते -करते ये  बचत इतनी बड़ी बन जाती है कि निर्धारित  कार्य किया जा सके , जैसे आपने फ्रिज लेना है, एयर कंडीशनर लेना है ,गाड़ी लेनी है , मकान लेना है , बच्चो की शादी करनी है , इस तरह के भविष्य में आने वाले खर्चे इसी खाते से निकाले जायेंगे , इस खाते के लिए कोई भी प्रतिशत निर्धारित करने से पहले अपने भविष्य में किये जाने वाले खर्चे की रूप-रेखा पहले तैयार कर लेवे .जैसे आपने 2 साल बाद 3 लाख की गाड़ी लेनी है , 5  साल बाद  20  लाख का फ्लैट लेना है आपकी सैलरी 50  हज़ार रूपया महीना है,   आपकी सैलरी  कितनी बढ़ेगी और खरीदी जाने वाली वस्तुएं तब किस कीमत पर होगी इसका भी हिसाब लगाएं , फिर आपको खुद निर्धारित करना है कि सैलरी का कितना % दीर्धावधि  खाते में डालना है .
- सुबोध
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113 . सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर यु हीं अमीर नहीं होता ( ३ )

 

आसान नहीं है

दायरे को तोडना
जो आरामदायक  क्षेत्र (comfort zone) है तुम्हारा
तब्दिल हो गया है आदत में .
-
चाहत तुम्हारी अमीर बनने की
कुछ नहीं भिखारी स्तर के अतिरिक्त .

-
चुनाव तुम्हारा अमीर बनने का
शामिल किये है अपने में
शर्तों का पुलिंदा ,
बेहतर है चाहत से
लेकिन सर्वश्रेष्ठ नहीं
क्योंकि तुम्हारी शर्तें
सुरक्षा देगी आदतों को .

-
समर्पण तुम्हारा अमीर बनने का
बनाएगा तुम्हें अमीर
क्योंकि यहाँ तुम कर रहे हो वो सब
जो ज़रूरी है अमीर बनने के लिए.
त्याग सारे आरामदायक   क्षेत्र का
बिना रुके,बिना थके.
केंद्रित प्रयास,
ज़ज़्बा सब कुछ झोंक देने का,
विशेषज्ञता आत्मविश्वास से भरी,
मानसिकता अमीरों वाली,
कोई अगर,कोई मगर
कोई बहाना, कोई शायद नहीं .
सिर्फ समर्पण,
और समर्पण
और विकल्परहित समर्पण
ज़िन्दगी के आखिरी  लम्हों तक....


सुबोध- मई २९, २०१४ 

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112 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                      मेरी पोस्ट 103 .106 .107 .108 .109 .110   में मैंने पैसे की बचत को लेकर विस्तार से लिखा है , इन सारी पोस्ट्स के बाद  सवाल ये आता है कि इस 10 % पैसे को मैनेज कैसे किया जाए . . आपकी सारी कमाई जो टैक्स कटने के बाद आपके घर में आती है सबसे पहले उस कमाई का 10 % आप अलग करें , उस पैसे के लिए आप एक अलग बैंक अकाउंट खोले . इस खाते का नाम आप वित्तीय स्वतंत्रता खाता रखे . यह खाता  सिर्फ निवेश करने और रेजिड्यूअल इनकम ( पोस्ट 56  देखें ) के श्रोत बनाने के लिए ही इस्तेमाल करना है , जब आप  निवेश और रेजिड्यूअल इनकम जैसे शब्दों से प्रायोगिक स्तर पर हकीकत में वाकिफ होते है ( पोस्ट 60  देखें ) सुचना के अलग अलग श्रोत से जुड़ते है - तो आप एक बिलकुल ही नई तरह की शब्दावली सीखते है .एक बिलकुल ही नया और विशाल कैनवास आपकी नज़रों के सामने होता है यहाँ आपको ठहरने और सीखने की ज़रुरत होगी खुद को संतुलित और व्यवस्थित करने की ज़रुरत होगी  ,ये ध्यान रखे आप संसार का सबसे कठिन काम करने जा रहे है - आप फाइनेंसियल एजुकेशन नामक तीसरी शिक्षा पद्धति सीखने जा रहे है -- खुद को बधाई दीजिये !!!!
                    कई तरह के फाइनेंसियल इंस्ट्रूमेंट्स होते है उन को जानिए, सीखिये, समझिए लेकिन खुद के लिए निष्ठुर मत बनिए , खुद को वक्त दीजिये .आपको एक प्रोसेस से ( पोस्ट 42 देखें ) गुजरना होगा जो कि प्रकृति का नियम है उसे नकारने का प्रयास न करें .
                         यह खाता आपके लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी होगा,जिसे आप हर महीने चेक कर सकते है इस अंडे का नाम रेजिड्यूअल इनकम( निष्क्रिय आमदनी ) है.  शर्त सिर्फ ये है कि आप अपनी ज़रुरत के लिए मुर्गी को  क़त्ल न करें . ये ध्यान रखें आपके अंदर अभी भी एक गरीब मानसिकता वाला कीटाणु जिन्दा है जो किसी भी विपरीत परिस्थिति में सबसे पहले अपनी बचत का इस्तेमाल करता है .
                           हर महीने इस खाते में  अपनी कमाई का 10 % जोड़ते रहिये और इस से पैदा होनेवाली   कमाई को भी इसीमे बढ़ाते रहिये ,आपने इस खाते को कभी इस्तेमाल नहीं करना है ,इस खाते में आपने निवेश करना है सिर्फ निवेश , अपने रिटायर होने तक आप इसमें निवेश करें .आप जब रिटायर  होगे तब इससे पैदा होने  वाली कमाई को आप इस्तेमाल कर सकते है उस स्थिति में भी आप मूल रकम को छूकर मुर्गी को कमजोर करने का प्रयास नहीं करेंगे क्योंकि कमजोर मुर्गी से कमजोर अंडे मिलते है. और इस तरह से पैसा हमेशा बढ़ता रहेगा और आपको कभी भी गरीबों वाली स्थिति से दो-चार नहीं होना पड़ेगा .
- सुबोध
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111 . सही या गलत -निर्णय आपका !

मेरी पोस्ट  105 पर कुछ सवाल आये थे ,उसका जवाब--
मनीषजी , अंकुरजी 
1) मेरी पोस्ट 86 , 88 और 105 देखें ,समझे .
2) कोई भी काम सोचने और शुरू करने से पहले अपनी टीम से राय करें ,उससे डिस्कस करें .
 3) क्षेत्र के विशेषज्ञ से राय करें उसकी कंसल्टेंसी चार्ज उसे देवे , आपके पसंदीदा क्षेत्र पर वो एक विस्तृत सर्वे करकर आपको जो प्रोजेक्ट रिपोर्ट देगा आप उसे बराबर समझे उसके साथ एक प्रॉपर डिस्कस करें एक-एक पॉइंट पर स्पष्टीकरण  ले तभी काम शुरू करें , मैं इसे बेवकूफी के अलावा कुछ नहीं मानता कि आप कोई भी ऐसा फील्ड चुन  लेवे जिसमे आपका कोई दोस्त ,आपका कोई रिश्तेदार पैसा बनाने में सफल हो गया . ये ध्यान रखें हर व्यक्ति की अपनी-अपनी अलग विशेषता होती है ,हो सकता है उनमे जो क्वालिटी है वो आपमें नहीं हो.हर क्षेत्र में सफलता के लिए अलग-अलग क्वालिटी की ज़रुरत होती है .
4) विशेषज्ञ से रिपोर्ट आने के बाद और उससे डिस्कस  करने के बाद आप अपने लिए एक टू डू लिस्ट  बनाये ,जिसमे आप अपने जिम्मे क्या रखेंगे और अपनी टीम के जिम्मे क्या ,इसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार करें , जब ये रिपोर्ट बन जाए तब आप देखे क़ि आपके जिम्मे आये हुए काम आप सफलता पूर्वक कर पाएंगे और कर पाएंगे तो कितने प्रतिशत सफलता मिल पायेगी-- इस पॉइंट को बराबर समझे और पूरी ईमानदारी से इसका जवाब देवे , इस मोड़ पर आकर आपका अवचेतन मन आपको इशारा कर देगा कि ये प्रोजेक्ट आपको करना चाहिए या नहीं- अवचेतन मन की आवाज़ को बराबर समझे जो बेहतरीन तर्क आपके पास अपने प्रोजेक्ट को लेकर हो उन्हें  सोचे समझे और तब निर्णय करें ,अगर निर्णय हाँ में हो तो अपनी टीम के साथ बैठे और डिटेल में उस से भी चर्चा करें , अगर निर्णय ना में हो तो अपनी जिम्मेदारियां भी उनके साथ डिस्कस करें हो सकता है आपकी टीम में वे जिम्मेदारियां कोई  उठाने को तैयार हो जाएँ - यानी पूरी तरह तसल्ली होने के बाद ही प्रोजेक्ट पर काम शुरू करें . ये ध्यान रखे पैसा बड़ी मुश्किल से इकठ्ठा होता है , और ज़िन्दगी आपको खुद को साबित करने का मौका दे रही है उसे हल्के में ना लेवे ,वैसे कहा ये भी जाता है कि ज़िन्दगी में  रिटेक नहीं होते . सो पैसे की कदर करते हुए ही कोई निर्णय लेवे .
5) आज परिवर्तन इतने ज्यादा हो रहे है उन्हें निगाह में रखे और तभी कोई लाइन चुने मेरी 71 नंबर की पोस्ट देखे , सोचे और समझे कि  कल के स्टार प्रोडक्ट्स आज अपनी अहमियत खो चुके है, क़ल तक सिंगल प्रोडक्ट सिंगल यूज़  का ज़माना था आज मल्टी टास्किंग प्रोडक्ट्स का ज़माना है , कल तक आम आदमी के हाथ में पहने जाने वाली घड़ी और हर टूरिस्ट के हाथ में जरूरी समझा जाने वाला कैमरा मोबाइल में सिमट गया है.
 6) सबसे पहले ये देखें कि आपकी मानसिकता एम्प्लोयी वाली है या बिजनेसमैन वाली , दोनों की अलग अलग विशेषता होती है और दोनों ही एक-दूसरे की सोच को आसानी से नहीं अपना सकते . मालिक की एक दिन की छुट्टी पर झल्लाहट   और एम्प्लोयी की खुशियों के उदाहरण आपके आस-पास बिखरे हुए है उन्हें गौर करें और समझे . एक मज़दूर से बात करें और एक मालिक से दोनों से बात करने के बाद आप सोचे क़ि आप खुद को सोच-समझ के मामले में किस के नज़दीक पाते है अगर आप को लगता है कि मज़दूर सही है तो बिज़नेस करने से पहले अपनी मानसिकता सुधारने की कोशिश करें .
ये पोस्ट एक जवाब के तौर पर लिखी गई है इसलिए प्रोपरली  मैंने एडिट नहीं की है ,अगर कहीं अस्पष्ट हो रहा हूँ तो जानकारी देवे.  शुभकामनाये .
- सुबोध
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110 . सही या गलत -निर्णय आपका !

      पैसा हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है , यह कड़ी मेहनत अमीर मानसिकता  के लिए अस्थायी होती है और गरीब मानसिकता  के लिए स्थायी . इसकी वजह ये है कि कड़ी मेहनत से कमाए हुए पैसे को लेकर दोनों के दृष्टिकोण अलग-अलग होते है - एक इसलिए कमाता है कि पैसे जमा कर सके और दूसरा इसलिए कि अच्छी ज़िन्दगी जी सके ,एक का दृष्टिकोण बड़ी खुशिया हासिल करने पर होता है और दूसरा बड़ी खुशियों के लिए छोटी-छोटी खुशिया नकार नहीं सकता ,एक आनेवाले कल को देखता है और दूसरा आज में जीता है . और अंततः होता ये है कि एक के पास कुछ पैसे जुड़ जाते है और दुसरे के पास नहीं जुड़ते .
                    असली खेल यही से शुरू होता है -- पैसा ऊर्जा का एक रूप है ,जिस तरह काम ऊर्जा का एक रूप है . गरीब मानसिकता काम से ऊर्जा यानि पैसा पैदा करती है  जबकि अमीर मानसिकता पैसे से ऊर्जा यानि पैसा पैदा करती है ,सीधे शब्दों में कहुँ तो गरीब मानसिकता अब भी अपनी कड़ी मेहनत से पैसा पैदा करती है जबकि अमीर मानसिकता अपने इकट्ठे किये हुए पैसे के दम पर एम्प्लोयी रखती है जो उसके लिए कड़ी मेहनत करकर पैसा पैदा करता है यानि उसका पैसा उसके लिए पैसा पैदा करता है  और यहीं से खेल दिलचस्प  होना शुरू हो जाता है . अमीर मानसिकता अब भी जी-तोड़ मेहनत करती है पैसा बचाती है और बचे हुए पैसे के दम पर  एम्प्लाइज की संख्या बढाती जाती है और उसके  द्वारा पैसे के दम पर  करवाई हुई कड़ी मेहनत  ढेर सारा पैसा पैदा करने लगती  है लेकिन गरीब मानसिकता द्वारा की हुई कड़ी मेहनत ढेर सारा पैसा  पैदा नहीं कर पाती नतीजतन अमीर मानसिकता अमीर बन जाती है और गरीब मानसिकता गरीब  रह जाती है .
                    ये साधारण सी बात गरीब मानसिकता की समझ में नहीं आती कि शुरू में सारा खेल साधारण से त्याग का है ,अपनी इच्छाओं का,छोटी-छोटी   खुशियों का,अपनी सुविधाओं के त्याग का, जो आगे जाकर दिमागी तिकड़म का,बुद्धि कौशलता का और अमीरी का खेल बन जाता है . और गरीब मानसिकता के लोग हारे हुए खिसियाए खिलाडी की तरह जीते हुए खिलाडी में कमियाँ निकालते है अपनी इतर अच्छी क्वालिटीज की बात करते है , गालियों और हाथापाई पर उतर आते है ,सब कुछ करते है - एक अच्छे खिलाडी की तरह अपनी हार स्वीकार कर कर नए सिरे से जीत के लिए जुटने के अलावा.  नतीजे में जो होना चाहिए वही होता है कड़ी मेहनत गरीब मानसिकता के लिए स्थायी बन जाती है और अमीर मानसिकता के लिए अस्थायी.
- सुबोध
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109 . सही या गलत -निर्णय आपका !

              पैसे के प्रबंधन के बारे में जब गरीबों से बात की जाती है तो उनका जो जवाब होता है वो ये होता है कि " जब मेरे पास बहुत सारा पैसा होगा तब मैं पैसे का प्रबंध करना शुरू  करूँगा ."
                         अगर आप गहराई में जाए तो आप समझ पाएंगे कि उनके लिए पैसे का प्रबंधन एक समस्या के अलावा कुछ भी नहीं है , अमूनन ये तत्काल संतुष्टि वाली श्रेणी के लोग है  ( पोस्ट ९७ देखें) और ये लोग पैसे का प्रबंध करने की बजाय   उसे खर्च करने वाले होते है , ये प्रबंध  नामक समस्या को  एक गलत नंबर के चश्मे से देखते है . 
                     पहली बात  आप के पास पैसा तब होगा जब आप उसका प्रबंध करना शुरू करोगे  ये तो कहना ही गलत है कि मेरे पास पैसा ज्यादा होगा तो मैं इसका प्रबध करूँगा , ये कहना तो बिलकुल ऐसा ही है कि  एक कमजोर आदमी  ये कहे   कि मेरे मस्सल्स मजबूत हो जायेंगे तो मैं जिम ज्वाइन करूँगा  , जबकि हकीकत ये है कि जिम ज्वाइन करने से उसके  मस्सल्स मजबूत होंगे. परिणाम हमेशा मेहनत करने के बाद मिलते है ,मेहनत करने से पहले परिणाम  चाहना  एक अच्छे चुटकुले के अलावा क्या है ?
                  दूसरी बात - प्रकृति का एक साधारण सा नियम है  " दिया उसे जाता है जिसकी सम्हालने की क्षमता होती है " अगर आप 100 - 200  रुपये भी नहीं सम्हाल पा रहे हो तो चिंता न करें प्रकृति के इस साधारण से नियम की अवहेलना नहीं होगी और आपको हज़ारों - लाखों रुपये नहीं दिए जायेंगे क्योंकि प्रकृति जानती है कि ये कमजोर प्राणी है इसकी क्षमता छोटी चीज़ों को सम्हालने की नहीं है तो ये बड़ी कैसे सम्हालेगा .धन्यवाद प्रकृति, तुम बड़ी दयालु हो . 
               तीसरी बात - एक प्रोसेस होता है उस से गुजर कर ही आप किसी काबिल बनते है ,बिना उस प्रोसेस से गुजरे किसी भी तरह की सफलता पाना और उस सफलता को बरकरार रख पाना संभव नहीं होता और वो प्रोसेस है  " बनाना-बिगाड़ना-फिर से बनाना " (पोस्ट 42  देखें ) जिंदगी में सीढ़ियां नहीं होती जो सीधी ऊपर जाती है ,यहाँ तो पर्वतों के साथ मैदान और खाइयां  होती है और हर पथिक को ,हाँ हर पथिक को इन्ही टेढ़े -मेढ़े अनगढ़  रास्तों से गुजरना होता है तब वो बांछित  को हासिल कर पाता है  .
               अगर आप ये समझते है कि पैसा आएगा और आता रहेगा और ढेर सारा हो जायेगा तो मैं इसका प्रबंध करना शुरू करूँगा तो मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है कि  "भगवान करें  ऐसा ही हो ",लेकिन मैं भी जानता हूँ और मेरा भगवान भी कि ये एक शुभकामना के अलावा कुछ नहीं है .
- सुबोध

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मेरी पुरानी पोस्ट्स देखने के लिए कृपया इस  लिंक पर करें -
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108 . सही या गलत -निर्णय आपका !

             जब गरीबों से पैसे के प्रबंधन की बात की जाती है तो आम तौर पर उनका जवाब होता है कि मेरे पास इतने पैसे है ही नहीं कि उनका प्रबंधन करूँ ,मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुटा पाता हूँ .

                   उनको जो  सलाह हो सकती  है वो ये है कि ऐसी हालत में भी उनको अपनी कमाई का 10 % हिस्सा  अपने भविष्य के लिए अलग से निकाल कर रख देना चाहिए .बाकी बचे  90 % में गुजारा करना चाहिए , एक महीने में  वे 90 % में गुजारा करना सीख जायेंगे और अगर उन्होंने अपनी इच्छाओं पर एक महीने तक  कंट्रोल कर लिया तो वे आगे भी कर सकते है . बात इच्छाओं को मारने की नहीं है बल्कि  बात पैसे के प्रबंधन की आदत की है, उस आदत की  जिस से अमीरी का दरवाज़ा खुलता है .

                कुछ गरीब कह सकते है कि 10 % निकालने के बाद हमें भूखा सोना पड़ेगा ,मेरा जवाब होगा- हाँ , आप भूखे सो जाइये और इस कहावत को याद कीजिये " भूखा पेट चिल्लाता है " और ये चिल्लाहट आपको अतिरिक्त पैदा करने को मजबूर करेगी , अतिरिक्त सोचने को मजबूर करेगी ,आपके कम्फर्ट जोन को तोड़ने को आपको विवश करेगी आपको नया कुछ करने को मजबूर करेगी ,दिमाग और जिस्म में लगी जंग हटाएगी .

                बात कुल मिलाकर पैसे के प्रबंधन की आदत की है जैसा कि मैंने अपनी पहले की पोस्ट में लिखा था बचत को उत्सव नहीं आदत बनाइये .
-सुबोध
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107. सही या गलत -निर्णय आपका !



                  मालिक वो होता है ,जो हासिल चीज़ों को सुव्यवस्थित तरीके से प्रबंधित करता है ,जो अपनी चीज़ों को बराबर प्रबंधित नहीं करते , वे जल्दी ही उन चीज़ों को या तो नष्ट हो जाने देते है या अपना मालिकाना हक़ खो देते है ,पैसा  इस साधारण से  सिद्धांत  का अपवाद नहीं है .
                  वित्तीय सफलता ( अमीर ) और वित्तीय असफलता (गरीब ) के बीच का सबसे बड़ा फर्क पैसे के प्रबंधन का होता है .
                 अमीर लोग पैसे का प्रबंधन करने में माहिर होते है और उसकी वजह मैंने अपनी पोस्ट 103  और  106  में बताई थी .
               गरीब लोगों द्वारा  पैसे का प्रबंधन न करना उनकी आधी-अधूरी सोच का नतीजा हो सकता  है या फिर उनकी गलत  कंडीशनिंग इसकी वजह हो सकती है - गलत कंडीशनिंग से छुटकारा पाने का तरीका वे  मेरी पोस्ट 96  में देख सकते है ,और सोच विकसित करने के लिए उन्हें खुद पर कठिन मेहनत करनी पड़ेगी, उनकी सहायता सिर्फ ये हो सकती है वे  मेरी सारी पोस्ट देखे और समझे , इसके अलावा भी मार्किट में बहुत कुछ उपलब्ध है - करना तो उन्हें खुद ही पड़ेगा .

- सुबोध
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106. सही या गलत -निर्णय आपका !

हकीकत में अमीर गरीबों से ज्यादा स्मार्ट नहीं होते है. बस उनकी पैसे से सम्बंधित आदतें गरीबों से अलग और पैसे को बढ़ाने में मददगार होती है  जो मूल रूप से उनकी अतीत की कंडीशनिंग से जुडी होती है .

                                       गरीबों के लिए बचत या निवेश उत्सव की तरह होते है जबकि अमीरों के लिए हर रोज़ किये जानेवाले  कामों की तरह एक आदत.और ये आदत होना ही उन्हें परफेक्शन देता है जो गरीबों के हिस्से में नहीं आती .

                         अगर आप पैसे का उचित प्रबंधन नहीं करते है तो दो बातें हो सकती है ,पहली आपके दिमाग में इसकी प्रोग्रामिंग ही नहीं हुई है और दूसरी शायद आप ये जानते ही नहीं है कि पैसे का सही और उचित प्रबंधन कैसे किया जाता है .पहली बात आपकी कंडीशनिंग से जुडी है(इसके लिए  मेरी पोस्ट 91 ,92 ,96  देखें )और दूसरी आपकी शिक्षा से जुडी है ( मेरी पुरानी पोस्ट पढ़े ).

                      
                        दुर्भाग्य से स्कूलों  में मनी मैनेजमेंट नाम का कोई सब्जेक्ट नहीं होता है ,आपकी स्कूल का मुझे नहीं पता ,मेरी स्कूल में नहीं था.  हमारे किसी भी  स्कूल टीचर ने हमें कभी भी पैसे के बारे में नहीं सिखाया अगर हम उनसे कभी पैसे के बारे में पूछ भी लेते थे तो उनका हमेशा यही जवाब होता था कि अपने सब्जेक्ट को बराबर याद करो तुम अभी इस बारे में सीखने के लिए बहुत छोटे  हो - और स्कूल क्या कॉलेज छोड़ने तक हम छोटे ही रहे ,बाहर की दुनिया ने हमे कब बड़ा बनाया पता ही नहीं चला ,हाँ,किस खूबसूरती से हमारे टीचर्स  ने हमसे अपनी गरीबी और पैसे की नासमझी छुपाई ये अब समझ में आता है .
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105. सही या गलत -निर्णय आपका !

एक सवाल
Ratan Arjun
Aug 9th, 2:07pm
Dear sir, mane job chod kr do bar apna kam suru kiya lakin dono bar asaflta mili . m construction line m hu or m ab kuch nya krna chahta hu . pls mujhe koi rasta btao sir..


मेरा जवाब

रतनजी,
दो बार की असफलता के बाद भी आप तीसरी बार कोशिश करना चाहते है ,आपके जज्बे और सोच को सलाम !
कंस्ट्रक्सन लाइन में आप क्या करते है ,ये आपने स्पष्ट नहीं किया ,अगर आप स्पष्ट करते तो शायद में बेहतर तरीके से जवाब दे पाता.
सर , आप मेरे पुराने पाठक है और मेँ ये मानकर चल रहा हूँ कि आपने मेरी सारी पोस्ट पढ़ी और समझी है ,अगर हो सके तो उन्हें दुबारा पढ़  लेवे, कुछ चीज़े जितनी ज्यादा बार रिपीट की जाती है उनके बारे मेँ आपका  दृष्टिकोण  उतना ही ज्यादा  साफ़-सुथरा होता जाता है .
मैं ये मानकर चल रहा हूँ कि दो बार की असफलता ने आपको बहुत कुछ सिखाया होगा ,ध्यान रखियेगा वे असफलताएँ नहीं है वे आपकी आर्थिक आज़ादी की बैकबोन है और ताउम्र आपकी बेस्ट टीचर रहेगी .
सर, कोई  नया व्यवसाय शुरू करने से पहले इन बातों का  ध्यान रखे -   
 1)अपने शौक को -उस शौक को जिसे आप जूनून की हद तक चाहते है ,व्यवसाय बनाने की कोशिश करें ,अगर आप ऐसा कर पाते है तो ये आपकी ग्रोथ को क्वांटम लीप दे देगा क्योंकि तब आप बिना थके घंटो कार्य कर पाएंगे , नये - नये आइडिया के साथ. 
2) कोई भी व्यवसाय चुने तो कोशिश करें ऐसा व्यवसाय चुनने की जिसमे कई तरीके से कमाने के मौके हो .
3) जिस से आम आदमी जुड़ सके,जो उनकी ज़रुरत का हो ऐसे व्यवसाय को करें .
4) सुचना क्रांति युग में बहुत से व्यवसाय अगर अपडेट नहीं किये जाते है तो उनकी ज़िन्दगी  3 -4  साल की ही होती है , अगर आप ढीले-ढाले या टालू राम  नेचर के  हो तो ऐसे किसी भी व्यवसाय में नहीं उतरे , बाकि अगर ऐसे नेचर के हो तो मेरे ख्याल से आपको व्यवसाय ही नहीं करना चाहिए , इस मानसिकता के लोगों के लिए तो जॉब ही  ठीक रहता है ,क्योंकि व्यवसाय में मिलने वाला  पुरूस्कार आपको आपके प्रदर्शन के आधार पर दिया जाता है, व्यवसाय में दिए गए समय के आधार पर नहीं दिया जाता.  
5) जिस व्यवसाय में विकास की सम्भावनाये न हो , जिसका मार्किट सिमट रहा हो ,जो धारा के विपरीत हो ऐसा व्यवसाय न करें .
6 ) जिस व्यवसाय में मार्जिन बहुत कम हो ,ऐसा व्यवसाय न करें , क्योंकि मार्जिन कम होने का एक अर्थ ये होता है कि यहाँ कम्पीटीशन ज्यादा है . और आप नये होने की वजह से बहुत से ऐसे हथकंडो से वाकिफ ही नहीं होंगे जिनकी वजह से कॉस्टिंग कम करकर मार्किट   में माल डाला जा सके . ये ध्यान रखे पुराना व्यवसायी अपनी गुडविल की वजह से हल्का माल भी मार्किट में उतारता है तो उस पर उंगली नहीं उठती जबकि आप नये होने की वजह से लाइम लाइट में रहेंगे और आपकी कोई भी गलती आपको मार्किट में टिकने नहीं देगी . 
7) ऐसा व्यवसाय शुरू करें जिसमे  शुरू में आपको अपना पैसा कम से कम लगाना पड़े ,अगर शुरू में ही आपने अपना पूरा पैसा लगा दिया और व्यवसाय नहीं चला तो किसी दुसरे व्यवसाय के लिए आपके पास डाउन पेमेंट भी नहीं बचेगा .
जो कुछ भी जब भी शुरू करें अपनी टीम से और इस क्षेत्र के विशेषज्ञ से जरूर राय करें ,अगर उसे पेमेंट देना पड़े तो देवे , कंसल्टेंसी के पैसे बचाने की कोशिश करना मेरी निगाह में बेवकूफी है .
कोई भी नया व्यवसाय शुरू करने के लिए इतनी ज्यादा बातें है कि एक पोस्ट में सब कुछ कवर करना संभव नहीं है .
बाकि किसी और पोस्ट में ,
शुभकामनाएं .
-सुबोध
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104. सही या गलत -निर्णय आपका !


अमीर यु हीं अमीर नहीं होता ( २)

दायरा
जो बनाते है आप
निर्भर है उसकी उपलब्धि
आपके समर्पण पर ...
-
दायरा
मेंढक का
होता है तालाब,
और
बाज़ का
आकाश,
सरहदों से आज़ाद आकाश .
-
मेंढक
जब सोचता है
बाज़ बनने की,
रोकती है उसे
उसकी मानसिकता,
जहाँ मौजूद है
फ़ेहरिश्त खतरों की .
-
त्याग है
आरामदेह दायरे का,
ख़ौफ है
अपनी वास्तविकता बदलने का ,
मेहनत है
अपनी काबिलियत के विस्तार की,
और जहाँ ज़रूरत है
एकाग्रता की ,
साहस की,
विशेषज्ञता की ,
शत प्रतिशत प्रयास की ,
और सबसे बड़ी
बाज़ की मानसिकता की.
.-
और देखकर
इस फ़ेहरिश्त को
कुछ मेंढक
मेंढक रह जाते है
और कुछ मेंढक
बाज़ बन जाते है .
-
अपना-अपना दायरा है
चाहत का,
चुनाव का,
समर्पण का.
क्योंकि
दायरा
जो बनाते है आप
निर्भर है उसकी उपलब्धि
आपके समर्पण पर ..

सुबोध- २२ मई , २०१४

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Photo: अमीर यु हीं अमीर नहीं होता ( २)दायराजो बनाते है आपनिर्भर है उसकी उपलब्धिआपके समर्पण पर ...-दायरामेंढक काहोता है तालाब,औरबाज़ काआकाश,सरहदों से आज़ाद आकाश .-मेंढकजब सोचता हैबाज़ बनने की,रोकती है उसेउसकी मानसिकता,जहाँ मौजूद हैफ़ेहरिश्त खतरों की .-त्याग हैआरामदेह दायरे का,ख़ौफ हैअपनी वास्तविकता बदलने का ,मेहनत हैअपनी काबिलियत के विस्तार की,और जहाँ ज़रूरत हैएकाग्रता की ,साहस की,विशेषज्ञता की ,शत प्रतिशत प्रयास  की ,और सबसे बड़ीबाज़ की मानसिकता की..-और देखकरइस फ़ेहरिश्त कोकुछ मेंढकमेंढक रह जाते हैऔर कुछ मेंढकबाज़ बन जाते है .-अपना-अपना दायरा हैचाहत का,चुनाव का,समर्पण का.क्योंकिदायराजो बनाते है आपनिर्भर है उसकी उपलब्धिआपके समर्पण पर ..सुबोध-  २२ मई , २०१४

 

 

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103 . सही या गलत -निर्णय आपका !

                   गरीब मानसिकता के लोग एक रुपये को सिर्फ एक रूपया मानते है जिसके बदले में वे लोग कोई चीज़ खरीदकर तत्काल संतुष्टि चाहते है उनकी निगाह में ये ऐसा गेहूँ है जिसकी  रोटी बननी है और उसे खाना है   जबकि अमीर मानसिकता के लोग इसे एक रूपया नहीं मानते , वे इसे ऐसा योद्धा मानते है जिसके दम पर उन्हें वित्तीय स्वतंत्रता हासिल होगी .उनके लिए ये गेहूँ एक बीज है जिसे बोकर वे ढेरों गेहूँ  पाएंगे -और उन ढेरों गेहुंओं  को बोकर और ढेरों गेहूँ पाएंगे- चक्रवृद्धि व्याज की तरह. 
  

                                      गरीब मानसिकता  एक रुपये की कीमत आज में देखती  है जबकि अमीर मानसिकता उस एक रुपये की कीमत आज में नहीं कल में देखती  है - और ये कल में देखना ही उसे निवेश करने को उत्साहित करता है . 
                        सिर्फ एक हलकी  सी कैलकुलेशन करें कि आज के  25  रुपयेकी  कीमत  20  साल बाद 10 % सालाना वृद्धि  के बाद क्या होगी ? संभवतः आपका डेरी मिल्क या आइसक्रीम खाने का नजरिया बदल जाए. .... या तो आप खाएंगे या नहीं खाएंगे और दोनों ही स्थितियों में जो तर्क देंगे उन तर्कों को बड़े गौर से सुने और समझे . ये तर्क, तर्क नहीं है बल्कि आपकी मानसिकता है जो आपके  25  रुपये का  भविष्य निर्धारित करेगी .......और आपके 250 ,2500 ,25000 ,250000 ,2500000 ,25000000  का भी .
-सुबोध 

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102 . सही या गलत -निर्णय आपका !

हम सभी में दो भावनाएँ होती हैं डर और लालच . 
पैसा न होने के डर से हमे कार्य करने की प्रेरणा मिलती है और पैसा हाथ में आने के बाद लालच की भावना जाग जाती है ,ये भी हमारे पास होना चाहिए और वो भी . लालच -इसे इच्छा भी कह सकते है, का कहीं कोई अंत नहीं होता , सो आदमी एक चक्र में फंस जाता है पैसा कमाओ इच्छाएं पूरी करो और कमाओ और इच्छाएं पूरी करो और कमाओ --- ये चक्र कहीं रुकता नहीं है .इसे पढ़े-लिखे लोग कोल्हू का बैल, रेट रेस  कहते है कि सब कुछ किया लेकिन अंततः वही के वही रह गए - कमाने से बिल चुकाने तक .
 वित्तीय स्वतंत्रता आपको इस रेट रेस से आज़ादी दिलाती है .
- सुबोध
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101. सही या गलत -निर्णय आपका !




ताकि कल जीत सकूँ ....

हाँ, मैं स्वीकार करता हूँ
अपनी हार ...
लेता हूँ पूरी जिम्मेदारी ...
नहीं देता किसी को भी दोष
तरफदारी नहीं करूँगा खुद की
कि मैं सही था
वक़्त गलत हो गया
नहीं करूँगा बेवजह की शिकायत
और ये सब कर रहा हूँ सिर्फ इसलिए
कि कल मेरी कोई हार न हो ...
...
मैं करता हूँ स्वीकार
मुझमे नहीं था वो जज़्बा
कि जीत होती मेरी
संपूर्ण समर्पण से ही हासिल होता है लक्ष्य ......
--
मैं करता रहा शिकायत
कमियों की, खामियों की
भूल गया हासिल को
और सारा ध्यान रहा
कमियों,खामियों पर
कहते है
जिसके बारे में
शिद्दत से सोचते हो
वही मिलता है
सो मुझे 
कमियाँ और  खामियाँ  मिल गयी
करता अगर प्रयास
लगा कर जान की बाज़ी
इन्हे दूर करने का
तो निश्चित ही
अलग होता परिणाम
-
मेरा पूरा प्रयास था
बचूं हार से
शायद इसी लिए हार गया
क्योंकि
मेरे अवचेतन में लक्ष्य
हार से बचना भर था
जीत का तो कहीं ज़िक्र भी न था .
हाँ, में स्वीकार करता हूँ
अपनी हार
लेता हूँ पूरी जिम्मेदारी
ताकि कल जीत सकूँ ....

सुबोध- २१, मई २०१४
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