ज़िंदगी – एक नज़रिया


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72. सही या गलत -निर्णय आपका ! 

शारीरिक रूप से मेहनत करने वालों  को कम भुगतान मिलता है ये बात अतीत में भी सच थी और आज भी सच है .सच्चाई ये है कि कड़ी मेहनत करनेवाले अमीर नहीं बनते . अगर आप अमीर बनना चाहते है तो आपको कुछ अलग करने की ज़रुरत है - भीड़ जो कर रही है और करने के बदले जो पा रही है उस से आप  वाकिफ है- आफ्टरऑल आप भी अब तक उस भीड़ का हिस्सा रहे है .आप को संसार का सबसे कठिन काम "सोचना" करना पड़ेगा- भीड़ के पीछे-पीछे चलने की बजाय सोचे कि मैं इन सबसे अलग किस तरह हूँ, जो कि इनसे अलग कुछ पाना चाहता हूँ. अपने उस गुण की तलाश कीजिये जो आपको अमीरों की श्रेणी में ला खड़ा करता है -सबसे अलग हट कर सोचने का गुण .इतना ध्यान रखें सिस्टम के लिए काम करने वाले गरीब होते है जबकि सिस्टम बनाने वाले अमीर होते है.
-सुबोध 


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71. सही या गलत -निर्णय आपका !



सुचना क्रांति युग में कड़ी मेहनत का अर्थ वो नहीं है जो कृषि युग और औद्योगिक युग में था. सुचना क्रांति युग में कड़ी मेहनत का अर्थ जानकारी हासिल करना,सीखना और तत्काल अमल में लाना है,क्योंकि कल ये बासी अख़बार हो जानी है और कम्पटीशन के दौर में कल इसमें मार्जिन भी नहीं बचेगा. कोई कितनी जल्दी सूचनाएं इकट्ठी करकर कार्यरूप में परिणित कर सकता है इसी पर उसका अमीर बनना निर्भर है ." knowledge is power " का सही अर्थ सिर्फ ज्ञान हासिल करना नहीं हैये अधूरी जानकारी है - ज्ञान में कोई शक्ति नहीं होती- उसे कार्यरूप में परिणित करना ही शक्ति है. अमीर मानसिकता वाला व्यक्ति इस बात को जानता है सो वो अमीर बनता है, गरीब मानसिकता वाला व्यक्ति इस बात को नहीं जानता इसलिए वो विद्वान बनता है- जीता-जागता इनसाइक्लोपीडिया .

सुबोध


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70.  सही या गलत -निर्णय आपका !

असफलता ज़िन्दगी में हर एक को मिलती है ये उनकी मानसिकता पर निर्भर  है कि वो अपनी असफलता पर कैसी प्रतिक्रिया करते है .गरीब मानसिकता के लोग एक बार की असफलता से इतने ज्यादा बौखला जाते है कि असफलता का सामना करना सीखने के बजाय  अपनी पूरी ज़िन्दगी आधे पेट और अधनंगे रहकर गुजार देते है जबकि अमीर मानसिकता के लोग असफलता की राख से फीनिक्स की तरह दुबारा ज़िंदा होते है,और नई ऊचाईयां हासिल करते है .
यहाँ समस्या असफलता नहीं है बल्कि अज्ञान  है - असफलता को मैनेज करने का अज्ञान. असफलता से पैदा होने  वाली टूटन,निराशा,हताशा,आलोचना आदि नकारात्मक  भावों को मैनेज करने का अज्ञान .ध्यान रखे खतरनाक वो नहीं होता जिसे आप जानते है बल्कि वो होता है जिसे आप नहीं जानते .

- सुबोध 


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69. सही या गलत -निर्णय आपका !



जिसमे जितनी कम वित्तीय बुद्धि होती है उसे पैसा बनाने के लिए उतने ही ज्यादा पैसे की जरूरत होती है,और जिसकी वित्तीय बुद्धि जितनी ज्यादा होती है उसे पैसा बनाने के लिए उसी अनुपात में कम पैसे की जरूरत होती है.
 
-सुबोध




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68. सही या गलत -निर्णय आपका !

गरीब वो बनता है जो उसे ज़िन्दगी बनाती है  जबकि अमीर अपनी ज़िन्दगी खुद बनाता है .सिर्फ एक शब्द दोनों की पूरी ज़िन्दगी बदल देता है और वो शब्द है ज़िम्मेदारी .गरीब अपनी ज़िन्दगी बनाने की जिम्मेदारी दूसरों पर छोड़ता है उन दूसरों पर जिन्हे उसकी खासियतों  , कमजोरियों का पूरी तरह इल्म नहीं होता. वे लोग अपनी खासियतों , कमजोरियों और सपनों  को मद्देनज़र रख कर प्लानिंग करते है और गरीब मानसिकता ग्रस्त व्यक्ति सिर्फ कठपुतली की तरह (डेमो पीस) उनकी प्लानिंग पर काम करता है यानि मस्तिष्क किसी और का , शरीर किसी और का - नतीजा एक प्रॉपर कॉम्बिनेशन के अभाव में असफलता. (कितने बच्चे डॉक्टर ,वकील,सी.ए., आई .ए.अस . वगैरह नहीं बन पाते क्योंकि मस्तिष्क/सपना उनका नहीं किसी मोटिवेटर का होता है वो तो सिर्फ बलि के बकरे होते है ! त्याग की प्रतिमूर्ति होते है !! )  जबकि अमीर अपनी ज़िन्दगी बनाने की ज़िम्मेदारी खुद लेता है- अपनी कमजोरियों और खासियतों को पूरी तरह समझते हुए . ध्यान रखें आप आज जो कुछ भी है उसकी वजह आप है सिर्फ आप और कल जो कुछ भी होंगे उसकी वजह भी आप ही होंगे.
-सुबोध



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67. सही या गलत -निर्णय आपका !

बीज को अगर संदूक में रखा जायेगा तो या तो सड़ जायेगा या गल जायेगा .अगर वही बीज उचित मिटटी, खाद,हवा,पानी,धूप के संपर्क में आएगा तो अंकुरित होगा,पौधा बनेगा पेड़ बनेगा और फल देगा. यह आप पर है कि आप बीज का क्या करते है . यह इंसान की खुशनसीबी है कि ऊपरवाले  ने हर इंसान को बीज दिए है .मेरा बीज से तात्पर्य विचार से है .अपने विचारों में भविष्य की संभावनाएं तलाशिये - उनमें सुधार कीजिये और उन्हें जमीन पर उतारिये- ध्यान रखें विचार पर किसी भी जात का, धर्म का ,शिक्षा का,उम्र का,रंग का,वर्ग का आधिपत्य नहीं होता .अमीर मानसिकता और गरीब मानसिकता में फर्क यही होता है कि अमीर मानसिकता विचार को कार्यरूप में परिणित करती है जबकि गरीब मानसिकता  "बराबर प्लान कर रहा हूँ ","विचार में सुधार कर कर रहा हूँ ","संभावनाएं पूरी तरह खंगाल रहा हूँ" ,"इस बारे में पूरी स्टडी कर रहा हूँ","तैयारी कर रहा हूँ" कहता रहता है .यहाँ तक कि उस विचार की उपयोगिता ही ख़त्म हो जाती है .
-सुबोध



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66. सही या गलत -निर्णय आपका !

वो गरीब होता है जिसे सारे सवालों के जवाब आते है यानि उसे लगता है कि उसे सब कुछ पता है और वो नया जानना,सीखना छोड़ देता है.यह ज्ञान के प्रति एक तरह का दुराग्रह होता है जो उन्हें ब्रह्माण्ड का केंद्रबिंदु बना देता है-इस भावना के साथ कि मुझसे ज्यादा इस विषय में कोई नहीं जानता , में सर्वज्ञ हूँ- घमंड की पराकाष्टा तक .  अमीर वो होता है जो हमेशा सवालों के नए जवाब ढूंढता रहता है और खुद को अपडेट करता रहता है .वो जानता है कि किसी भी सवाल के कई उत्तर होते है और कोई भी उत्तर आखिरी उत्तर नहीं होता है ,उत्तर हमेशा परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते है यानी वो हमेशा सीखता रहता है और बढ़ता रहता है .अमीर बनने के लिए व्यक्तित्व में हठधर्मिता की नहीं विनम्रता की जरूरत होती है .
-सुबोध





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65.सपने छोटे क्यों ?

छोटी सोच वाले
छोटे सपने देखते है
और सिर्फ देखते है.......
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बड़े सपने देखने पर
शुभचिंतक हो जाते है दहशतज़दा
वे ढूंढते है
बड़ी समस्याओं के लिए
छोटे-छोटे समाधान.
-
नहीं समझ पाते
कि सपने
देखने से नहीं
बल्कि पूरे होते है
सुव्यवस्थित प्रयास से ,
नहीं समझ पाते
कि वे इस किनारे पर है
दुसरे पर उनके सपने
और बीच में समस्याओं की नदी .
-
उन्हें सिर्फ बनाना है एक पुल
इस किनारे से उस किनारे तक
उन्हें पुल बनाने का
जुटाना है सामान
पैदा करनी है काबिलियत
उसके बाद
सपने उनके होंगे.
हाँ, जो भी देखे होंगे,
चाहे बड़े हो या छोटे.
तो छोटे क्यों ?
सुबोध- १४ मई,२०१४
















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64. सही या गलत -निर्णय आपका !


जब भी आपके हाथ में पैसे आते है,आप उस पैसे के साथ क्या करते है ये निर्णय ही आपको अमीर या गरीब बनाता है .अमीर बिलम्ब से संतुष्टि पाने में यकीन करता है अगर उसे बड़ी ख़ुशी की सम्भावना नज़र आये तोऐसी स्थिति में वो उस पैसे को खर्च करने की बजाय कही इन्वेस्ट करता है और अगर तत्काल उसे ऐसी कोई सम्भावना नज़र न आये तो उस पैसे को सेव करता है ,सम्भाल कर रखता है. जबकि गरीब  को तत्काल संतुष्टि चाहिए होती है,अपनी छोटी-छोटी खुशियों से उसे इतना प्यार होता है कि उन्हें पूरा करने के लिए वो अपनी बड़ी खुशियों को दांव पर लगा देता है. आपके पास हमेशा विकल्प होते है ,सही चुनाव  ही आपको अमीर या गरीब बनाता है .
सुबोध



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63. सही या गलत -निर्णय आपका !
अमीर बनने के लिए आपके पास एक ठोस कारण  होना चाहिए जो आपमें इतनी आग पैदा कर सके कि आप मंज़िल पा सके . मंज़िल दूर नहीं है सिर्फ एक बेहतरीन प्लानिंग करकर शुरुआत भर करनी है, बाकि सब अपने आप होता जायेगा - आपका कारण,आपका सपना आपसे करवा लेगा . अगर आपके पास ऐसा कोई कारण नहीं है जो आपको अमीर बनने की  प्रेरणा दे सके तो आपको इतना बता दूँ  अमीर बनने में बहुत-बहुत ज्यादा मेहनत होती है , मंज़िल तक ले जाने वाली सड़क बहुत उबड़-खाबड़ है उसमें ढेरों गड्ढे है और सफलता की सम्भावना भी न के बराबर है. तो बेहतर है पहले एक कारण, एक सपना पैदा कीजिये जो आपको पागल कर सके ,जो आपके होश उड़ा सके , तब इस खेल में शामिल होइए.
-सुबोध





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62. सही या गलत -निर्णय आपका !
गरीबों को छत के हर कोने में छेद नज़र आते है  वे बहुत अच्छे शिकायती होते है ,आलोचक होते है ,उन्हें हर जगह कमी नज़र आती है सिवाय उस जगह के जहाँ उन्हें कमी नज़र आनी चाहिए . ध्यान रखें गरीबी एक मानसिकता है और दोषदर्शिता गरीब मानसिकता की पहचान है.अमीर दोषदर्शी नहीं होते,वे आगे बढ़कर जिम्मेदारी स्वीकारते है . वे जानते है कि सुधार तभी संभव है जब गलती की जिम्मेदारी ली जाती है .जबकि गरीब मानसिकता के लोग अपनी गलती को जायज़ ठहराने के लिए बहस करते है या बहाने बनाते है.
- सुबोध




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61. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर पैसे के लिए काम नहीं करते वे संपत्तियां बनाने के लिए काम करते है ,जिनसे उन्हें कैशफ्लो मिलता है . वे पूरी ज़िन्दगी अपने खर्चे के लिए कमाते रहने की बजाय ऐसी संपत्तियां खरीदते है जिनसे उन्हें ज़िन्दगी के खर्चे चलाने के लिए पैसे मिलते रहे.जबकि गरीब लोग संपत्ति बनाने के लिए मेहनत करने की बजाय ज़िन्दगी के खर्चे चलाने के लिए मेहनत करते है यानि गरीब लोग खुद मेहनत करते है जबकि अमीरों के लिए उनकी संपत्ति मेहनत करती है .
- सुबोध




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60. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर पैसे से मोहब्बत करते है, वे पैसा कैसे कमाया जाता है, बचाया जाता और बढ़ाया जाता है ये सीखने और समझने के लिए वक्त देते है , मेहनत करते है यानि फाइनेंसियल एजुकेशन सीखते है जो तीसरी तरह की शिक्षा पद्धति है .जबकि आम आदमी अमूनन पहली- अकादमिक एजुकेशन(साधारण पढाई-लिखाई) और दूसरी प्रोफेशनल एजुकेशन (व्यावसायिक शिक्षा - जैसे फर्नीचर बनाना, टाइपिंग सीखना वगैरह ) ही सीखता है वो फाइनेंसियल एजुकेशन के नाम पर पुराने ज़माने के कुंद पड़े हथियारों के बारे में जानकारी करता है -जैसे बैंक अफ/डी , आर/डी , सेविंग आदि . और मुद्रा स्फीति की बढ़ती दर के ज़माने में अधूरी जानकारी की वजह से वो अपनी पूँजी को फांसी का फंदा पहनाता रहता है. अमीर बनना है तो फाइनेंसियल एजुकेशन सीखें .
सुबोध-






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59. सही या गलत -निर्णय आपका !

इनकम लेने के चार तरीके होते है- 
१- एम्प्लोयी- नौकरी करना 
२- सेल्फ एम्प्लोयी- कोई ऐसा काम करना जिसमे आप किसी दूसरे के यहाँ नौकरी करने की बजाय खुद के लिए काम करते है अपने लिए आप सहायक भी रखते है और खुद भी काम करते है जिसमे आपको खुद को इन्वॉल्व होना पड़े वो बिज़नेस नहीं सेल्फ एम्प्लॉयमेंट है .
३- बिज़नेस - बिज़नेस में आप अलग अलग डिपार्टमेंट बनाते है उनके लिए समुचित स्टाफ रखते है , स्टाफ को मैनेज करने के लिए मैनेजर रखते है और मैनेजर्स को मैनेज करने के लिए जनरल मैनेजर , यानि बिजनेसमैन खुद साइड में हो जाता है ,सारे काम उसके लोग करते है.
४- इन्वेस्टमेंट- इसमें पैसा काम करता है , अमीर लोग इन्वेस्टमेंट करकर छोड़ देते है ,जिससे उनको इनकम होती रहती है ,जैसे प्रॉपर्टी में पैसा लगा दिया ,भाड़ा आ रहा है - प्रॉपर्टी का दाम बढ़ रहा है या शेयर मार्किट में कोई स्टेक लेकर छोड़ दिया - जिससे डिविडेंड आ रहा है- शेयर के प्राइस बढ़ रहे है वगैरह ...
कोई भी व्यक्ति इनमें से एक,दो,तीन या चारों तरीके से इनकम ले सकता है ,यह उसकी काबिलियत और क्षमता पर निर्भर है
सुबोध


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गलतियाँ पूर्ण बनाती है


इंसान होगा तो
कर्म करेगा ,
भेजा है
कर्म करने के लिए
ख़ुदा ने उसे.
और गलतियाँ होती है
कर्म करने वालों से
न कि मुर्दों से .
-
देखते है
आधी-अधूरी सोच वाले
किसने , कितनी गलतियाँ की
और पीटते है माथा
कोसने की शक्ल में
-
लेकिन ख़ुदा
ये देखता है
कि बजाय बहाने बनाने के
किसने स्वीकारी जिम्मेदारी.....
और वो ये देखता है
कि किसने , कितना सीखा
अपनी गलतियों से .
क्योंकि वो जानता है
मैंने इंसान को
पूर्ण बनाकर नहीं भेजा है
बल्कि भेजा है पूर्ण बनने के लिए..

सुबोध १२ मई,२०१४




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57. सही या गलत -निर्णय आपका !


विचारों की गहराई में जाकर ये बात समझे कि अमीर की अमीरी पैसे में नहीं खाली समय में होती है .वे जिस पर चाहे उस पर समय खर्च कर सकते है क्योंकि उनकी अधिकतर आमदनी रेजिड्यूअल होती है . और समय का खालीपन ही उन्हें नयासोचने ,समझने और करने की छूट देता है ,जिससे नए आय के स्त्रोत बनते है जिसे आधी तस्वीर देखने वाले लोग कहते है कि पैसे से पैसा बनता है जबकि ये उपलब्धि सिर्फ पैसे की नहीं खाली समय की भी होती है .जबकि आम आदमी रोज़ी-रोटी कमाने में ही उलझा रहता है क्योंकि उसकी सारी कमाई लीनियर होती है. अमीर बनने के लिए रेजिड्यूअल आमदनी के स्त्रोत बनाये.
-सुबोध





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56. सही या गलत -निर्णय आपका !

आमदनी दो तरह की होती है .एक वो कमाई होती है जिसके लिए आप एक बार बहुत-बहुत-बहुत जमकर मेहनत करते है और फिर उससे नियमित तौर पर महीनों ,सालों तक पैसा पाते रहते हैं , ऐसी कमाई को रेजिड्यूअल इनकम (लगातार मिलने वाली) कहते है जैसे आपने कोई बुक लिखी हो , कोई आविष्कार किया हो ,कोई बिज़नेस बनाया हो. दूसरी आमदनी लीनियर इनकम (एक बार मिलने वाली ) होती है जिसे कमाने के लिए आपको हर बार मेहनत करनी होती हैं , जैसे आप नौकरी कर रहे हो , या वकील हो ,डॉक्टर हो .ज़ाहिर सी बात है दोनों इनकम ग्रुप की अपनी-अपनी कमियाँ और खासियतें है . अमीरों की अधिकतर कमाई रेजिड्यूअल होती है .
सुबोध



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55. सही या गलत -निर्णय आपका ! 

आप जिस भी क्षेत्र में है उस क्षेत्र में जो कुछ भी नए बदलाव हो रहे है उन बदलावों की जानकारी रखें और खुद को उन बदलावों के अनुसार तैयार करें , दुनिया में इतने ज्यादा बदलाव हो रहे है कि अगर आप उनके अनुसार नहीं बदले तो अमीर बनना तो बहुत दूर की बात है , जल्द ही आपको अपने स्तर को कायम रख पाना मुश्किल हो जायेगा . अमीर लोगों की सबसे बड़ी खासियत यही होती है कि विभिन्न माध्यमों से वे अपने क्षेत्र की तकरीबन पूरी जानकारी रखते है और वक्त ज़रुरत बदलाव करते रहते है. वे खुद को अपडेट रखने के लिए हमेशा वक्त निकालते है क्योंकि उन्हें पता है मैंने आज जो खाली समय कमाया है ये अपडेटेशन की ही देन है.
सुबोध


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54. सही या गलत -निर्णय आपका ! 

अमीर बनने के लिए बदलाव लाएं . अब तक आपने जो किया है ,उसको दोहराने से अब तक जो मिला है उससे अलग परिणाम नहीं आएगा. अगर आपको कुछ अलग परिणाम चाहिए तो आपको कार्य भी अलग करने होंगें . आप दुनिया को तब तक नहीं बदल सकते जब तक आप के पास ऐसा कुछ नहीं है जिसके बिना उसका काम नहीं चले ( मोनोपोली टाइप कोई प्रोडक्ट,सर्विसेज ) . अगर आपके पास ऐसा कुछ नहीं है तो बेहतर है दुनिया की ज़रूरतों के अनुसार स्थितियों में बदलाव लाएं . अपनी नौकरी, अपने ग्राहक, अपने डीलर, अपने सहयोगियों, अपने कर्मचारियों को बदलना समस्या का समाधान नहीं है क्योंकि समस्या उनमें नहीं कहीं "और" है उस "और" की तलाश कीजिये और उसे बदलिये .
सुबोध


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ठहरा है मेरे कमरे में इन्द्रधनुष

मैंने लाने के लिए इन्द्रधनुष
पैदा की थी खुद में काबिलियत
कि मौजूद न रहे कोई वजह
इन्द्रधनुष न आने की.

सारे डर असफल होने के
छोड़ आया था उस कब्रगाह में
जहाँ दफन है अतीत मेरा
असफलता का .
और सफलता सिर्फ निर्भर थी
इस काबिलियत पर
कि असफलता के भय को
किस तरह करूँ प्रबंधित

मेरे कमरे में
इन्द्रधनुष लाया है
सुरमई उजाला
ईनाम के तौर पर
क्योंकि मेरी कोशिश का स्तर
उच्च था इतना
कि संभव ही नहीं था
असफल होना.

मैं क्यों डरूँ
इन्द्रधनुष और सुरमई उजाले के
मेरे कमरे में होने से ?
जानता हूँ मैं
इनकी वजह से
सौंपें जायेंगे मुझे कुछ
उत्तरदायित्व
जो हमेशा सौंपें जाते है
क्षमतावान को .

सुबोध ११ मई , २०१४


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52. सही या गलत -निर्णय आपका ! 

"बेईमान अमीर और ईमानदार गरीब " मुहावरा उन असफल लोगों द्वारा गढ़ा गया है जो अपनी गरीबी पर ईमानदारी का मुलम्मा चढ़ा कर खुद को संतुष्टि देना चाहते है . वास्तव में यह चरित्र का प्रश्न है, जो अमीर और गरीब दोनों का ही ईमानदार हो सकता है और बेईमान भी . असफल लोगों ने ,हारे हुए लोगों ने खुद को तसल्ली देने के लिए बहुत से ना- समझी भरे बयान गरीबी के समर्थन में और अमीरी के विरोध में गढ़ रखें है ( लोमड़ी के लिए अंगूर खट्टे होते है ) कृपया उनके बहकावे में ना आये . वे खुद अमीरी के मैदान से बाहर हो चुके है और आपको हारता हुआ नहीं देखना चाहते है -आपके तथाकथित शुभचिंतक जो है !! . कृपया अपने सुव्यवस्थित प्रयास जारी रखे .हक़ीक़त में अमीरी अर्थ के क्षेत्र में सफलता का नाम है ,ठीक वैसे ही जैसे ग्रेजुएट होना शिक्षा के क्षेत्र में ,नेता बन जाना राजनीति के क्षेत्र में , मठाधीश बन जाना धर्म के क्षेत्र में सफलता का नाम है . 

- सुबोध

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51. सही या गलत -निर्णय आपका ! 

बचपन से हमें गलतियों से बचने और एक सुरक्षित खेल खेलने को प्रोत्साहित किया जाता है यानि हमें भेड़ बनाने की कोशिश की जाती है . जबकि हमें नई चुनौतियों को स्वीकार करने और अपनी गलतियों से सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए .
दूसरों द्वारा की गई गलतियाँ एक रेफेरेंस बुक से अधिक नहीं होती क्योंकि जिन परिस्तिथियों में गलतियाँ की गई वो अलग थी ,गलती करने वाले की क्षमता,सोच,कार्य-पद्धिति ,तकनीक अलग थी.हम अमूनन अपने द्वारा की गई गलतियों से सीखते है ,गलतियाँ करने और उन गलतियों से सीखने के दौरान जो अनुभव होता है उस अनुभव का कोई जोड़ नहीं होता. अगर आप गलतिया नहीं कर रहे है तो आप निश्चित ही उस कम्फर्ट जोन में है जो तालाब के मेंढक का होता है.
अमीर बनने के लिए चुनौतियां स्वीकार कीजिये ,गलतियों को उपलब्धियों का हिस्सा मानिये."बनाना,बिगाड़ना,फिर से बनाना " प्रोसेस को आत्मसात कीजिये . भेड़ मत बनिये .

सुबोध -



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50. सही या गलत -निर्णय आपका ! 

अमीर बनने के लिए ज़रूरी है कि आपको अपनी इच्छाओं पर काबू करना आना चाहिए . वे इच्छाएं ही होती है जो आपकी पूरी प्लानिंग को तहस-नहस कर देती है . इच्छाओं को काबू करने का मूल मंत्र ये है कि तत्काल कभी कोई चीज़ नहीं ख़रीदे ,कम से कम एक हफ्ते बाद ख़रीदे ,कृपया मेरा यकीन कीजिये 80 से 90 % तक आपको उस खरीददारी की ज़रुरत ही नहीं रहेगी. मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि आप अपनी इच्छाओं को मार दे - बल्कि ये कह रहा हूँ कि इच्छाओं और ज़रुरत में फर्क करना जाने. ज़रूरतें पूरी करें - इच्छाएं नहीं -क्योंकि इच्छाएं अनंत होती है ,जिनको तो अरबपति और खरबपति भी पूरी नहीं कर पाते .चूँकि वे इस बात को जानते है इसलिए उनको इच्छाओं को कंट्रोल करना भी आता है . आप शुरू से ही खुद में यह गुण विकसित करें और इस तरीके से जो भी पैसे बचे उस पैसे से मेहनत करवाएं ,जिससे कमाई का अतिरिक्त स्रोत तैयार हो .

सुबोध -



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49. सही या गलत -निर्णय आपका ! 

अमीर बनने के लिए ज़रूरी है कि आप श्रेष्ठता को लक्ष्य बनाये - जिस भी व्यवसाय में हो . कार्य कोई छोटा या बड़ा नहीं होता है .विचार छोटे या बड़े होते है, प्रयत्न छोटे या बड़े होते है. यह आप पर निर्भर है कि आप उस कार्य में अपनी कितनी ऊर्जा लगाकर उसे किस मुकाम तक पहुँचाते है .चाय बेचने वाले बच्चे ने एक ख़ूबसूरत खुली आँखों वाला सपना देखा ,ऊर्जावान सोच रखी, बेहतरीन कोशिशें की,श्रेष्ठता को अपना मूल मंत्र बनाया और नतीजा आपके सामने है वो आज भारत का प्रधान मंत्री है . लिहाजा आप जहाँ भी हो जैसे भी हो अपना श्रेष्ठ दीजिये.---

सुबोध -




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48. सही या गलत -निर्णय आपका ! 

अमीर बनने के लिए आपको "बेचना " आना चाहिए. अपनी योग्यताएं बेचना , वस्तुएं बेचना,विचार बेचना ,सपने बेचना,हर वो चीज़ जो बिक सकती है, चाहे वो पानी हो, मिटटी हो ,हवा हो,आपको तर्क सहित बेचना आना चाहिए . आप बिना कुछ बेचे पैसे नहीं बना सकते .बेचना ही मुख्य कला है , जो आपको अमीरी तक ले जा सकती है .हर अमीर यह सच्चाई जानता है जबकि गरीब इसको हेय दृष्टि से देखता है .आप बेचने के लिए जो काबिलियत चाहिए -खुद में पैदा करे , अपनी मार्केटिंग करें,पैसा आप तक चलकर आएगा.

सुबोध -




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47. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीरी के लिए हार्ड वर्क नहीं स्मार्ट वर्क करना चाहिए . हार्ड वर्क का अर्थ बिना किसी समुचित योजना के मेहनत करना है ,जबकि स्मार्ट वर्क का अर्थ एक उचित योजना के साथ कार्य करना है .चूँकि हार्ड वर्क में कार्य योजना बिखरी हुई होती है सो परिणाम अपेक्षा अनुरूप नहीं आते है जबकि स्मार्ट वर्क में योजना स्पष्ट एवं केंद्रित होती है सो परिणाम अपेक्षा के अनुसार आते है .दूसरा जो फर्क होता है पुराने और नए तौर -तरीकों के इस्तेमाल का होता है जैसे आपको 50 क्लाइंट्स को ईमेल भेजना है तो हार्ड वर्क में आप इन्हे अलग-अलग भेजेंगे जबकि स्मार्ट वर्क में आप C.C. करकर एक साथ ही 50 ईमेल भेज देंगे . जो भी नई टेक्नोलॉजी का सर्वोत्तम प्रयोग करता है वह स्मार्ट वर्क की श्रेणी में आता है.

सुबोध -



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46. सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर पहले से तैयारी करते रहते है,अवसर आता है , अवसर पहचानते है , अंदर घुस जाते है . गरीब मौज-मज़ा करता रहता है, अवसर आता है उसे समस्या लगता है ,जब दूसरे लोग पैसा बनाने लगते है तो उसका दिमाग खुलता है वो अंदर घुसने की तैयारी करता है और मज़े की बात ये कि तब तक अमीर पैसा बनाकर बाहर निकल रहा होता है. यानि जब तक उस व्यवसाय में सुनहरा समय होता है अमीर तब तक ही उस व्यवसाय में रहता है जब छोटी सोच वाले लोग ( जो बहुत ज्यादा सुरक्षित खेल खेलते है )उस व्यवसाय में घुसते है अमीर उस व्यवसाय से बाहर निकल जाता है इसकी मुख्या वजह ये होती है कि छोटी सोच वाले लोग इतना कम्पटीशन पैदा कर देते है कि मुनाफे के नाम पर कुछ खास नहीं बचता है .अगर आपको अमीर बनना है तो भेड़ मत बनिये /छोटी सोच वाले मत बनिये.पहले से तैयारी रखिये.

सुबोध -

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45 .ज़िंदगी – एक नज़रिया


ज़िन्दगी का हर लम्हा हमें कुछ न कुछ सीखने का मौका देता है , ये हम पर है कि हम कुछ सीखते है या हमारे साथ या हमारे सामने होने वाली घटनाओं को यूँ ही जाने देते है .
मुझे याद है बरसों पहले मैं नैनीताल में घूमने गया था , मैं नौकुचिया ताल देखने गया था , मैं वहां बैठा था और वहां की खूबसूरती, शोरगुल ,टूरिस्ट्स की मस्तियों को एन्जॉय कर रहा था . एक घटना पर मैंने गौर किया - एक कुत्ता बार-बार वहां आता और पानी में अपनी परछाई देखता , डरता , पीछे हटता, भौंकता और वापिस चला जाता ,, अंततः वो आया और झील में कूद गया और पानी पीकर चला गया .
उस घटना से मैंने ये सीखा कि ज़िन्दगी भी इससे अलग नहीं है - कुछ इंसान अपने डर को देखकर रूक जाते है ,प्यासे रहते है ,लौट जाते है और कुछ लोग जिन्हे अपनी उन्नति की, चाहत की ,ख्वाइशों की प्यास ज्यादा होती है वो डर के बावजूद हिम्मत करते है और डर की झील में कूद कर अपनी प्यास बुझा लेते है, जो उन्हें चाहिए होता है वो हासिल कर लेते है .
अपने आस-पास , अपने इर्द-गिर्द होने वाली घटनाओं को यूँ ही ना जाने दे उन पर गौर करें और उन घटनाओं का सही अर्थ निकाले.अगर आपने अपने में ये आदत डाल ली तो खुद को मोटीवेटेड रखने के इतने ज्यादा अवसर आपको मिलेंगे कि आप का अाने वाला कल निश्चित ही आपके आज से बेहतर होगा .
सुबोध-अक्टूबर २१, २०१५ .


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44 .ज़िंदगी – एक नज़रिया


ज़िन्दगी हमेशा चुनौतीपूर्ण होती है और चुनौती में बने रहना भी चुनौतीपूर्ण होता है .
एक जैसी परिस्थितियाँ किसी के लिए आसान और सहज होती है और किसी के लिए कठिनाइयाँ बन जाती है, समस्या बन जाती है .
हर नई परिथिति हर एक के लिए शुरू में कठिनाई ही होती है ,मुश्किल ही होती है , मुसीबत ही होती है लेकिन कुछ लोग मुश्किल को,कठिनाई को, मुसीबत को हार की वजह नहीं बनना देना चाहते और पीछे हटने की बजाय चुनौती मान कर आगे बढ़ कर उस परिस्थिति  का सामना करते है .सिर्फ सोचने का एक तरीका कि कठिनाई को कठिनाई न मानकर अभ्यास की कमी मानना और चुनौती की तरह स्वीकार करना उन्हें विजयी बना देता है , परिस्थिति को आसान बना देता है .
जबकि कुछ लोगों के लिए हर परिस्थिति कठिनाई ही होती है चूँकि ये उनके सोचने का तरीका होता है., नजरिया होता है लिहाज़ा उनकी असफलता की, हार की संभावनाएं बढ़ जाती है आख़िरकार वे ज़िन्दगी को भी एक समस्या मानने लगते है;उन्हें सिर्फ अपने सोचने का तरीका बदलने की जरुरत है .
पीक ऑवर में लोकल ट्रेन पकड़ना क्या है?
कुछ लोगों के लिए ट्रेन पकड़ना मुसीबत है लेकिन कुछ लोगों के लिए ये सिर्फ एक चुनौती है ;जिनके लिए ये मुसीबत है वे अगली ट्रेन का इंतज़ार करते है और ऑफिस पहुंचने में लेट हो जाते है और जिनके लिए चुनौती है वे वक्त से ऑफिस पहुँच जाते है .जबकि हकीकत में ट्रेन पकड़ना सिर्फ एक परिस्थिति भर है.
ज़िन्दगी इसी तरह की ढेरों घटनाओं का समूह भर है -आपके लिए घटनाएँ मुसीबत रही है या अभ्यास करते-करते सहज हो गई है ये आपकी सोच पर आपके नज़रिये पर निर्भर है और इसी पर आपकी सफलता या असफलता भी निर्भर है .
ये आप पर है कि आप ज़िन्दगी की ट्रेन में अगली किसी घटना का इंतज़ार करते है या इसी घटना को चुनौती मानकर अनुकूल बना लेते है .मैं वापिस दोहरा दूँ कि पीक ऑवर में ट्रेन में चढ़ना हमेशा चुनौतीपूर्ण होता है और इस चुनौती में बने रहना भी एक चुनौती है .

सुबोध-अक्टूबर ४,२०१५

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43 . ज़िंदगी – एक नज़रिया

महत्त्वपूर्ण कहना नहीं , दिखना नहीं , बल्कि करना होता है और करने से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण होना होता है .
कहा बहुत कुछ जाता है लेकिन किया नहीं जाता , दिखता बहुत कुछ है कि ये किया जा रहा है लेकिन होता नहीं है ,रिजल्ट जो कहा जाता है वो नहीं आता है .

जब करना शुरू करते है तो करने के दरम्यान गलतियां करते हुए और उन गलतियों से सीखते हुए हम सफल होना शुरू कर देते है ,सफलता की शेप में ढलना शुरू कर देते है और उसे ही होना कहते है .

एक बार जब आप "हो" जाते है तो सफलता आप से दूर नहीं रहती .अपनी हार के बावजूद भी सफलता का फार्मूला आपके पास होने की वजह से आप सफल हो ही जाते है.

कहना नहीं, दिखना नहीं बल्कि करना शुरू करे ;सफलता की शुरुवात करने से होती है .

असफलता के डर को त्याग दे क्योंकि असफलता ही सफलता की कुँजी है .

सुबोध-अक्टूबर ३०, २०१५

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42 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


विकास या पतन हमेशा व्यक्तिगत होता है.
.इसके लिए किसी व्यक्ति,परिवार ,समाज,माहौल,संस्कार या परंपरा को दोष देना अपनी जिम्मेदारी से बचना भर है,जिम्मेदारी नकारना है.

एक शराबी बाप के दो बेटों में से एक शहर का गरीब मशहूर शराबी बनता है और दूसरा धनवान मशहूर उद्योगपति बनता है जबकि ज़िन्दगी की शुरुआत में दोनों के लिए ही एक समान सब कुछ था .

शराबी से पूछा गया तुम ऐसे क्यों हो ?

उसका जवाब था - मैंने अपने पिता को देखा कि वे शराब पीते है और किसी भी प्रकार के तनाव से मुक्त होकर मस्त हो जाते है .इसलिए मैं उनके जैसा बन गया.

दूसरे भाई से जब यही सवाल पूछा गया तो उसका जवाब था मैंने अपने शराबी पिता को देखा है कि किस तरह वे शराब पीकर अपनी जिम्मेदारी से मुँह चुराते थे, पलायन का रास्ता अपनाते थे और जिस दिन वे शराब पीकर आते थे उस दिन मेरी माँ को परेशान होते हुए और रोते हुए देखा है तभी मैंने सोच लिया था मुझे अपने पिता जैसा नहीं बनना है .

ये आप पर है कि आप किस घटना पर क्या सोचते है क्या रियेक्ट करते है इसके लिए किसी दुसरे को दोष देना गलत है .

अगर आप अच्छे है तो अपनी वजह से है,बुरे है तो अपनी वजह से है ,अमीर है तो अपनी वजह से है ,गरीब है तो अपनी वजह से है यानी जो कुछ भी जैसे भी आप है वो सिर्फ और सिर्फ अपनी वजह से है .

सुबोध-२८ अक्टूबर ,२०१५

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41 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


सच क्या सिर्फ वही है जो तुम देखते हो , महसूस करते हो , छूते हो, गले लगाते हो, जीते हो और ख़ुश होते हो कि तुम सच से रूबरू हो !!!
सच का एक दूसरा पहलू भी होता है जिसे तुम सब कुछ जाने के बाद भी नहीं जानते !!! एक अनदेखा ,अन्जाना, अचिन्हित सच !!
तुम्हारा आज का सच क्या पता कब सिक्के का दूसरा पहलु बन जाए !!
जिस सच को तुम पकड़ कर गौरवान्वित हो रहे हो,एक कोलंबस उसे तिरोहित कर देता है !!!
एक नई खोज , एक नया आविष्कार कितनी पुरानी धारणाएं, कितने पुराने सच बदल देता है सोच कर आश्चर्य है कि हम किस सच को ज़िन्दगी का सम्बल मान रहे है !! उस सच को - जिसके बारे में निश्चित नहीं कि कल वो सच सच रहेगा या नहीं !!!
तांगे का सच ' नया दौर ' के दिलीप कुमार का सच हो सकता है लेकिन ज़िन्दगी का सच नहीं हो सकता , अगर उस सच को , उस बदलाव को आप स्वीकार नहीं कर पा रहे है तो निश्चित ही आप ज़माने की रफ़्तार को रोकने की कोशिश कर रहे है , कोडक कैमरे के भरोसे मोबाइल के फोटो फीचर्स को रोकने का प्रयास कर रहे है !!
इस सूचना क्रांति युग में कोई भी सच कभी भी पुराना सच हो सकता है - एक रिकॉर्ड प्लेयर की तरह !!
पुराने सच का सम्मान कीजिये उसे प्रणाम कीजिये लेकिन उसे ज़िन्दगी नहीं बनाइये ज़िन्दगी कल में नहीं आज में जी जाती है और आज कल से इतर है , अलग है, नवीन है !!!
सुबोध -अगस्त-१५,२०१५

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40 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


मंज़िल दूर होने से या नज़दीक होने से हासिल नहीं होती बल्कि होंसले और पाने की आग से , हासिल करने के ज़ज़्बे से मिलती है .एक कदम के फासले पर रखी हुई चीज़ भी जब तक उसे पाने का प्रयत्न न हो, उत्कंठा ना हो पायी नहीं जा सकती . सोचना, विचारना, स्वपन देखना जब तक कर्म में परिवर्तित नहीं होता कुछ भी हासिल नहीं हो सकता .
सुबोध- अप्रैल १३, २०१५

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39 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


क्या करोगे जीत का सेहरा पहन कर ?
अपनों को दुखी कर उनके खिलाफ लड़ी हुई जंग में जीत भी गए तो क्या ,ये जंग किसी कौरव की नहीं,किसी पांडव की नहीं उनकी है जो कल भी तुम्हारे थे,आज भी तुम्हारे है और तुम चाहे जीतो या हारो तुम्हारे ही रहेंगे .

तुम खेल रहे हो अपने बच्चे के साथ और उसे खेल में हरा देते हो, खुश होते हो जबकि तुम्हारा उद्देश्य बच्चे को कंपनी देना था , उसके चेहरे पर मुस्कान की ताबीर लिखना था ! और तुमने अपनी चंद लम्हों की ख़ुशी के लिए उसे रोआंसा कर दिया जबकि तुम उसमे एक नूर तलाश रहे थे ,एक चपलता ,एक कोमलता ,एक खिलन्दड़ापन ,एक सहजता,एक सजगता और अपनापन तलाश रहे थे . वाह , क्या नशा है जीत का !!
विवाद होता है माँ-बाप से पत्नी से बच्चो से और तुम अपनी बात सही साबित करकर जीत जाते हो बिना पूरी तरह उनका पक्ष जाने और खुद खुश होते हो बिना उनकी खुशी की परवाह किये , जिस तरह तुमने अपनी जीत पक्की करकर अपने बच्चे की ख़ुशी की परवाह नहीं की जबकि तुम्हारा उद्देश्य बच्चे को खुश करना भर था ! उसे जीत का आनंद देना था ,बड़प्पन देना था !
तुम्हे आदत पड़ गई है जीत की, हार तुम्हे रास नहीं आती बौखला जाते हो हार का सामना होने से ,लेकिन क्या हमेशा तात्कालिक तौर पर निश्चित की गई जीत ही वास्तविक जीत होती है ?
जीत महवपूर्ण है लेकिन ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि तुम जानो किसके खिलाफ जीत रहे हो !
अपनों के खिलाफ जीत निश्चित करने से पहले सोचना वाकई में तुम जीत रहे हो या तुम्हारा सामर्थ्य जीत रहा है !
जिस दिन तुम्हारा सामर्थ्य चूक जायेगा उस दिन विगत में हासिल की गई जीत क्या वर्तमान की जीत या भविष्य की - सर्वकालिक जीत बनी रहेगी ?
अगर तुम्हारी एक हार से उनकी खुशियाँ बरक़रार रहती है ,चेहरे पर चाँदनी निखरती रहती है ,पैर ठुमकते रहते है, हाथों की लयबद्धता बाधित नहीं होती तो समझना तुम्हारी हार नहीं बल्कि जीत हुई है , ज़िन्दगी का उद्देश्य तुम्हारी व्यक्तिगत जीत नहीं ,अपनों की जीत में निहित है .तुम अकेले जीत भी गए और उस जीत के एवज में तुम अपनों को हार गए तो उस जीत का क्या स्वाद वही रहेगा ?
तुम्हारी ज़िन्दगी का गहरा उद्देश्य क्या है या तुम्हारे लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण क्या है ?तुम्हारी जीत या अपनों को ख़ुशी देना या हर हार से कुछ सीख हासिल करना ? 
अपनी चंद लम्हों (ये उथला उद्देश्य हो सकता है ) की ख़ुशी के लिए अपने मुख्य उद्देश्य से भटक जाना उचित नहीं !!!
सुबोध- अप्रैल १०, २०१५

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38 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


मुझे याद है बचपन में मैं खुद के बनाये हुए मिटटी के घरोंदे मन भर जाने पर या खेल ख़त्म होने पर बड़ी सहजता और बिना किसी तकलीफ या दर्द के एहसास के तोड़ दिया करता था , आज उतनी सहजता के कुछ भी नहीं कर पाता, यहाँ तक कि खाना खाते वक्त भी ध्यान रखता हूँ मुंह ज्यादा नहीं खोलना है ,कौर छोटे रखने है ,धीरे-धीरे चबा-चबा कर खाना है जबकि बचपन में बड़ा सा कौर मुंह में ठूंस कर भाग जाया करता था दोस्तों के साथ खेलने को ,बिना किसी बड़े की टोका-टाकी की परवाह किये. 
बड़े होने की कीमत हमने सहजता खोकर चुकाई है !!

चेहरे पर ओढ़ी हुई झूठी मुस्कान कभी-कभी बड़ी चुभती है -बचपन में जब किसी से नाराज़ होते थे खुलेआम उससे कुट्टी करते थे लेकिन आज ?
आज तो खुल कर रो भी नहीं पाते !!
और न ही खिलखिलाकर हंस पाते है !!
काश वो बचपन की मासूमियत ,वो सहजता ,वो खिलन्दड़ापन , वो मस्तियाँ, वो बेफिक्री , वो बेशर्मी ,वो निश्छलता , वो अपनापन और वो बेगानापन (जो भी था खुलेआम था ) वापिस जी पाते ,वापिस हासिल कर पाते !!
मैं आज मेरी कॉलोनी के बच्चे देखता हूँ और अपने बचपन से उनके बचपन की तुलना करता हूँ तो एहसास होता है माताएं बच्चे नहीं जनती वे बड़े ही जनती है -तमीज और तहजीब के पुतले .
न जाने इनकी सहजता कहाँ खो गई है ?
माँ-बाप द्वारा लादा गया करियर का बोझ उन्हें पैदा होने के साथ ही बड़ा बना देता है . टी.व्ही . ,वीडियो गेम्स,लैपटॉप और स्मार्टफोन से लदा हुआ इनका बचपन क्या हमारे बचपन से अलहदा नहीं ?
बचपन नाम का एहसास क्या इस पीढ़ी में भी वैसा ही है जैसा हममे हुआ करता था !!
या शायद उनका बचपन भी डिजिटल हो गया है ?
सुबोध- अप्रैल ९,२०१५

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37 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


ज़िन्दगी में असफल वही लोग है जो गलतियाँ नहीं करते क्योंकि गलती होने के डर से वे कभी भी अपने पूर्ण प्रयास नहीं करते ,ऐसे लोग अपनी स्कूली शिक्षा में अच्छे होते है क्योंकि स्कूली शिक्षा में गलतियों पर दण्डित किया जाता है ,गलतियों से बचा जाता है .
ऐसे लोग जब अपने दम पर ज़िन्दगी जीना शुरू करते है तो उन्हें एहसास होता है कि ज़िन्दगी जीने के लिए - एक ऊंचाई हासिल करने के लिए सड़क की शिक्षा महत्त्वपूर्ण है , स्कूल की शिक्षा ज़िन्दगी जीने में सहायक हो सकती है लेकिन ऊंचाई तक पहुंचने के लिए वो शिक्षा काम आती है जो सड़क से हासिल होती है. 

सड़क की शिक्षा आपको गलतियाँ करने ,उन गलतियों से सबक सीखने, पर्याप्त सुधार करने और फिर नए सिरे से प्रयास करने और सफलता हासिल करने से मिलती है वो शिक्षा आपको गलती होने के डर से आज़ाद करती है जबकि स्कूल की शिक्षा आपको गलतियों पर दण्डित करती है .
सोचिये अगर स्कूल में साईकल चलाना सिखाया जाता तो क्या होता ?
जो भी गिर जाता उसे दण्डित किया जाता और दंड के भय से अंततः वो साईकिल छूने से भी डरता जबकि सड़क की शिक्षा में साईकिल चलाना कितना आसान है !
सुबोध-अप्रैल ७ ,२०१५


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36 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


रोटी की कीमत एक भूखा इंसान ही समझ सकता है , नौकरी की कीमत उससे पूछे जिसकी अभी-अभी नौकरी छूटी हो .पैसे की कीमत उससे पूछे जिसने अपना सब कुछ गवाँ दिया हो !!
असफलता , टूटन , हताशा ज़िन्दगी का मकसद नहीं है लेकिन ये भावनाएं हमसे उसी तरह चिपकी हुई है जिस तरह जिस्म से चमड़ी.

इंसान की ज़िन्दगी उस खेल की तरह है जिसमे एक पल हम ऊपर होते है और दूसरे पल नीचे , मुसीबत ये है कि हम ज़िन्दगी के उन पलों में जीते है जब हम नीचे होते है हम ऊपर होकर भी नीचे होने के खौफ में जीते है .
जो इंसान भूखा रह चूका है- भूख की पीड़ा , दर्द , ऐंठन, उबकाई, जकड़न जैसे दौर से गुजर चूका है वो इंसान सामने भरपूर खाना होने के बाद भी उस भूख के एहसास को जीता रहता है और छप्पन भोग को भी एक दंड समझता है और उस दंड से बचने के लिए या तो वो संग्रह करता है या उसे बर्बाद करता है ;यहाँ संग्रह करने का अर्थ चीज़ होने के बाद भी उसका भरपूर उपयोग न करने से है और बर्बाद करने से अर्थ फ़िज़ूलखर्ची से है .
भूख सिर्फ खाने की ही नहीं होती , मान -सम्मान की होती है ,पहुँच की होती है, सुविधाओं की होती है , पैसे की होती है और भी ढेरों चीज़ों की होती है और मानवीय प्रकृति के अनुसार हम हर भूख के साथ यही करते है या तो उसे संग्रह करके सजा कर रखते है या उसे दोनों हाथों से लूटा देते है .
इसे थोड़ा पैसे के सन्दर्भ में सोचिये, समझिए और यकीन मानिये आपके सन्दर्भ का विस्तार होने लगेगा , अपनी उन गलतियों को याद कीजिये जो पैसे को लेकर आपने की है जहाँ इसे खुला छोड़ना चाहिए था वहां किस बुरी तरह जकड कर रखा था और जहाँ इसे सम्भालना चाहिए था वहां दोनों हाथों से लूटा दिया था .
जिन गलतियों को किया है उन गलतियों को अगर नहीं किया जाता तो क्या होता ?
जिन पलों में हम ऊपर थे उन पलों को हम नीचे के खौफ में क्यों गुजारते रहे है- क्यों उन पलों को, उन पलों की सोच को साकार होने दिया ?
मुझ से किसी जवाब की उम्मीद मत कीजिये , क्योंकि मेरा जवाब मेरे लिए है और आपका जवाब आपके लिए ,सवाल सबके लिए एक हो सकते है लेकिन जवाब हमेशा निजी होते है !!
सुबोध-मार्च २६, २०१५

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35 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


कुछ भी करते हो तुम तो ये न समझना कि उसके जिम्मेदार तुम ही हो और अच्छा या बुरा जो भी असर पड़ेगा वो तुम पर ही पड़ेगा. तुम कोई भी गलत काम करते हो तो क्या सिर्फ तुम अकेले ही उसका फल पाते हो ? और कोई अच्छा काम करने पर ?
सोचो तुम शराब पीकर घर आये हो बेसुध हो नशे में कुछ उल-जुलूल बक रहे हो ,परेशान कौन हो रहा है -तुम या तुम्हारा परिवार ?

तुम तो अपनी मस्ती में हो ,ये समझ कर कि मैं अपने गम गलत कर रहा हूँ पी लिए हो , तुम्हारा गम गलत हुआ या नहीं लेकिन तुमने अपना गम उनको दे दिया जिन्हे तुम बेहद प्यार करते हो और अपने होश में तुम उनके लिए कुछ भी करने को तैयार हो !
तुम सिगरेट पी रहे हो, धुआं वातावरण में छोड़ रहे हो अपना कलेजा फूँक रहे हो और बीमार पूरे वातावरण को कर रहे हो जिसमे परायों के साथ-साथ तुम्हारे अपने भी सांस लेते है , तुम्हारे शौक की कीमत तुम्हारे मासूम बच्चे चूका रहे है, तुम्हारी बीवी चूका रही है, तुम्हारे माँ-बाप , बहन भाई चूका रहे है क्योंकि तुम्हारा उगला हुआ गन्दा धुआं उनके फेफड़ो में समां रहा है !!
जिस तरह तुम्हारी खुशियां तुम्हारी अपनी नहीं है उसी तरह तुम्हारे गम ,तुम्हारे दर्द भी तुम्हारे अपने नहीं है तुम्हारा फ्रस्ट्रेशन सिर्फ तुम्हारा अपना नहीं है .हमेशा इस बात का ख्याल रखना हो सकता है दुनियाँ के लिए तुम एक व्यक्ति हो, हो सकता है खुद के लिए भी तुम एक व्यक्ति हो लेकिन तुम्हारे परिवार के लिए तुम पूरी दुनियां हो , तुम्हारा होना -सही सलामत होना उनके लिए उनकी खुशियों की चाबी है
सुबोध -फरवरी १२ , २०१५ 

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34 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


तुम्हे पता नहीं है क्या होगा जब तुम कुछ करने की कोशिश करोगे हो सकता है तुम असफल हो जाओ या हो सकता है सफलता तुम्हारे कदम चूमे लेकिन अगर तुम कुछ भी कोशिश नहीं करोगे तो ये निश्चित है तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं होगा न सफलता और न ही असफलता तुम जैसे हो वैसे ही रहोगे या तुम खुद ही पिछड़ जाओगे ज़माने की तेज चाल के मुकाबले लेकिन सोचना अपने खाली समय में कि क्या उपरवाले ने तुम्हे आगे बढ़ने के लिए भेजा है या ठहरकर सड़ने के लिए - ठहरा हुआ हर कुछ सड़ जाता है चाहे वो पानी हो या विचार हो या इंसान हो !!!!
सो ठहरो मत, रुको मत , मत बैठो शांत , करते रहो कुछ न कुछ सार्थक , चलते रहो, आगे बढते रहो और हर पल कुछ नया पाने का प्रयास करते रहो क्योंकि कुछ करना ही, कुछ पाना ही तुम्हे वहां पहुंचाएगा जहाँ तुम्हे होना चाहिए , अपने उस होने की तलाश कभी बंद मत करना , जिस दिन तुम ये तलाश छोड़ दोगे समझना उसी क्षण तुम्हारी मृत्यु हो गई है , ठहरना एक शून्यता है और शून्यता मृत्यु तुल्य है .या यूँ समझिए कोशिश ही जीवन है , .........
सुबोध- फरवरी १०, २०१५

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33 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


कुछ सम्बन्ध ऐसे भी होते है जिन्हे हम दिल और दिमाग से लगाये बैठे होते है जिन पर हमे गुमान होता है ,गौरव होता है उन संबंधों की कलई तब खुलती है जब आप तकलीफ में होते है. हम उस बेवक़ूफ़ बंदरिया से कुछ भी अलग नहीं होते जिसका छाती से चिपका हुआ बच्चा किसी सक्रमण से ग्रसित होकर मरा हुआ उसके सीने से चिपका रहता है और वो अपने सीने से उसे चिपकाये रहती है शायद उसे पता ही नहीं चलता कि ये बच्चा अब ज़िंदा नहीं है या उसे ये वहम रहता है कि ये वापिस ज़िंदा हो जायेगा या वो उस बच्चे के प्यार में इतनी पागल होती है या.....
इन पंक्त्तियों को लिखते वक्त हमारे दिल और दिमाग में दर्द की लहरें हैं या जैसे किसी ने बुरी तरह आँतड़िया निचोड़ दी है -एक दर्द और सूनेपन का एहसास !! इन पंक्त्तियों का अर्थ वहीं समझ सकता है जिसने अपने सम्बन्धो की टूटन को झेला है , कब कोई इतना दूर चला गया , कब इतने विरोध पैदा हो गए , कब स्वार्थ के पहाड़ इतने विशाल हो गए कि सम्बद्ध बौने हो गए इसका एहसास ही नहीं हुआ !!!!
आज हमारे दर्द की सर्द ठिठुरन में हम उन संबंधों में गर्माहट तलाश रहे हैं , जो सम्बन्ध रहे नहीं - उनके लिए ये ऐसा बोझ है जिसे ढोना समझदारी नहीं है , वो इतने समझदार हो गए और हम सम्बन्धो को ढोने वाले छोटे इंसान रह गए उफ़ , ये क्या हो गया ,कब हो गया सोच रहा हूँ कि उनकी महानता के सामने हम इतने नगण्य कैसे रह गए और हमे कहीं कोई जवाब नहीं मिल रहा , स्पष्टीकरण बेमानी हो जाते है ,और गुजरे हुए हलके फुल्के लम्हे दर्द के दरिया में छोड़ जाते है .
शायद सम्बद्ध खोना उतना दर्दीला नहीं है जितना विश्वास खोना या उस अहम को ठोकर लगना कि उन्होंने हमे उन लम्हों में छोड़ा जब हमें उनकी दरकार थी , उनके स्वार्थ हमारे त्याग से बड़े जो हो गए . निसंदेह वे बड़े समझदार थे जो फल रहित पेड़ के साये से दूर हो गए - उनकी निगाहों में हम फल देनेवाले पेड़ की जगह चुके हुए - ठूंठ हो गए थे. यानि कूल मिलाकर वे संबंधों में एक व्यापार की तलाश कर रहे थे और खुद को WIN और हमें LOOSE की स्थिति में रख रहे थे जबकि संबंधों का पैमाना हमेशा WIN - WIN होता है .
हम बेवकूफों की तरह जी रहे है और खुद को उन संबंधों की निरर्थकता आज भी नहीं समझा पा रहे है ,पता नहीं किस उम्मीद की डोर हमें थामे हुई है -उस बंदरियां की तरह !!! काश हम थोड़े समझदार होते थोड़ी दुनियादारी हमे भी आती !!!!
सुबोध, ७ फरवरी ,२०१५

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32 . ज़िंदगी – एक नज़रिया

काम (जिसे ज्यादातर लोग एक बोझ समझते है) की शक्ल में आने वाली उपलब्धियां जब गुजर जाती है और जो काम को इज्जत देता है उसे जब उपलब्धियां इज्जत देती है तब लोगों को समझ में आता है कि हमने गलती कहाँ की ! 
दरअसल उनकी असफलता की वजह उनकी मानसिकता होती है जो काम को बोझ समझते है . 

मानसिकता एक अदृश्य स्थिति है दिमाग के स्तर पर जबकि उपलब्धि एक भौतिक स्तर है , दिमाग के स्तर से भौतिक स्तर पर आने के लिए जिस पुल की जरूरत होती है उसी पुल का नाम काम है , लिहाजा सिर्फ और सिर्फ कर्म ही महत्त्वपूर्ण है, ज्ञान की बातें कोई महत्व नहीं रखती अगर उन पर काम नहीं किया गया हो - गौर करें ज्ञान भी दिमाग का एक स्तर है . 
विद्वान की विद्वता ज्ञान हासिल करने में है उनका लक्ष्य ज्ञान को हासिल करना है उस ज्ञान का उपयोग वे नहीं करते , सिर्फ और सिर्फ ज्ञान का संग्रह करते रहते है अंततः वे समाज में एक बड़े और प्रसिद्ध विद्वान के रूप में स्थापित हो जाते है लेकिन ज्ञान हासिल करने के इतर कर्म न करने की वजह से भौतिक स्तर पर उन्हें ढंग से दो वक्त की रोटी भी नहीं मिलती .
इसे एक उदाहरण से समझे - गुलज़ार साहब फिल्म इंडस्ट्री के नामी गीतकार है वे बड़े ज्ञानी भी है- एक विद्वान शख्सियत है , अगर उन्होंने सिर्फ ज्ञान हासिल किया होता उस ज्ञान की मार्केटिंग का कर्म न किया होता तो ? जाहिर सी बात है हज़ारों गुमनाम शख्सियतों की तरह वे भी गुमनाम ही रहते , उन्होंने इस बात को समझा, और फिल्म इंडस्ट्रीज के बेहतरीन स्ट्रगलर बने , आज वे जिस मुकाम पर है बहुत से प्रतिभाशाली लोगों के लिए वो स्वप्न है .
आपकी जानकारी आपका ज्ञान कोई महत्व नहीं रखता अगर उसके साथ कर्म नहीं जुड़ा है. जैसे ढेरों लोग कहते है कि आज अमुक शेयर ऊपर जायेगा वो अपने तरीके से इसकी गणना करते है मार्किट को समझते है यह उनका ज्ञान है तब वे ऐसी बात करते है लेकिन उनको तब तक कोई फायदा नहीं होता जब तक वे उस तथाकथित शेयर का लेन- देन नहीं करते .
लिहाजा इस बात को समझ लेवे ज्ञान से भी अधिक महत्त्वपूर्ण कर्म है .काम को बोझ मत समझिए बल्कि एक उपलब्धि का द्वार समझिए !
क्या पता कौन सा कर्म एक अवसर की तरह आपके सामने आ जाये ;अवसर हमेशा काम की शक्ल में ही आता है अगर आपने काम किया है तो अवसर आपका है नहीं तो अवसर आकर चला भी जायेगा और आपको पता भी नहीं चलेगा आप सिर्फ उसका इंतज़ार करते रहेंगे !!!!
सुबोध- फरबरी ६, २०१५ 

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31 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


अँधेरा नकारा पक्ष नहीं है रोशनी का वो तो सिर्फ ये बताता है कि यहाँ रोशनी नहीं है इसी तरह समस्या ये बताती है कि वर्तमान में आपके पास ऐसा विचार नहीं है जो तथाकथित समस्या का समाधान दे सके . समस्या कभी ये नहीं कहती कि मेरा समाधान नहीं है बल्कि ये तो आप स्वयं है जो किसी तटस्थ परिस्थिति को समस्या का नाम देते है .
हो सकता है किसी अन्य के लिए आपकी समस्या कोई समस्या ही नहीं हो ठीक वैसे ही जैसे आपका अँधेरा उल्लू के लिए अँधेरा नहीं होता - उस बेचारे की तो रोशनी से आँखे चुंधिया जाती है यानि आपका अँधेरा किसी के लिए सुकून हो सकता है और किसी की रोशनी आपके लिए दर्दनाक अनुभव - ठीक उसी उल्लू की तरह .

ज़िन्दगी कभी भी किसी की भी सीधी और सपाट नहीं होती फिर वो चाहे कोई भी क्यों न हो , हर एक को अपने हिस्से की गलतियाँ ,असफलता , अपमान , हताशा और अस्वीकार्यता झेलनी ही पड़ती है - कोई भी इस दौर से बच नहीं सकता . वो आप ही है जो इसे आसान बनाते है या मुश्किल , वो आप ही है जो इन मुश्किलों से गुजरकर निखरते है या बिखरते है , वो आप ही है जो खड़े होकर हर उलटे-सीधे वार को झेलते है और विजयी बन कर निकलते है या पीठ दिखा कर तहस -नहस हो जाते है , वो आप ही है जो अब तक ज़िंदा है - सारी परेशानियों के बावजूद - यानि आपने अपने हिस्से की अब तक की सारी मुसीबतें झेल ली है और आप जानते है कि वो मुसीबतें छोटी नहीं थी फिर भी आप ज़िंदा है . यकीन मानिये आपके ज़िंदा होने में किसी और से ज्यादा आपकी जिजीविषा का हाथ है,आपके सुदृढ़ विचारों का हाथ है जो अँधेरे में रोशनी की तलाश भर है ,फिर वो चाहे अँधेरी ऊंघती सुरंग के पार के दूसरे सिरे पर मौजूद रोशनी का एहसास ही क्यों न हो या विचारों में दादी- अम्मा से सुनी हुई वर्षों पुरानी कहानियों में हर विकट परिस्थिति का सफलतापूर्वक सामना करने का कौशल - अँधेरे पलों में जलती हुई टोर्च .
जिन्हे आप समस्याएं मानते है दरअसल वो आपकी दिमागी खुराफात के अलावा कुछ नहीं है. आइये एक अलग तरीके से सोचे , जिसे आप समस्या कहते है उसे चुनौती कहकर देखे - आपका सोचने का, समझने का और खेलने का नजरिया बदल जायेगा और फिर चुनौती का सामना करना , एक लक्ष्य को पूरा करना टास्क बन जाता है जबकि समस्या आपके हाथ-पैर फुला देती है इसी तरह अँधेरे को समस्या के तरीके से देखने पर हताशा होती है जबकि अँधेरे को चुनौती के तौर पर देखने पर दीपक याद आता है , मोमबत्ती याद आती है, लालटेन याद आती है , बिजली याद आती है ,आग याद आती है और बंद अँधेरी गुफा में दो पत्थरों की तलाश की जाती है - चकमक पत्थर की .
ज़िन्दगी आसान नहीं है लेकिन मुश्किल भी नहीं है , परिस्थिति आसान नहीं है लेकिन समस्या भी नहीं है - वो आप है और आपके सोचने का तरीका जो चीज़ों को आसान बनाता है या मुश्किल , बदलाव अंदर से शुरू होता है -जड़ों से ,तभी तो बाहर अच्छे फल आते है - आइये अच्छे फल पाने के लिए अंदर से बदले ,हमारे सोचने के तरीके को बदले !!!
सुबोध -फरबरी १, २०१५

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30 . ज़िंदगी – एक नज़रिया

तुम्हारा सच जड़ हो गया है , वक्त के चक्के में कहीं जाम हो गया है , उम्र तुम्हारी बढ़ी है लेकिन तुम्हारी सोच समय के किसी कालखण्ड में फंसी रह गयी है और उस दौर के तत्कालीन सच में ही अटकी हुई है तभी तो तुम कल जिन आशीर्वादों के कुछ अर्थ हुआ करते थे वही आशीर्वाद दोहराते जा रहे हो, जबकि आज वो आशीर्वाद एक बेवकूफी के बराबर हो गए है जैसे पूतों फलों या शतायु हो . 
कहते है बहता हुआ सब शुद्ध होता है , नदी की तरह- जहाँ रूक गया ,ठहर गया वहीँ गंदलापन हावी होने लगता है फिर वो चाहे विचारों का बहाव ही क्यों न हो या कस कर पकड़ा हुआ सच ही क्यों न हो !!! जिन्होंने ये कहा है कि सच स्थायी होता है, हो सकता है उनका सच स्थायी हो लेकिन मेरी निगाहों में सब कुछ अस्थायी होता है , हाँ, कुछ सच दिनों में बदलते है, कुछ सालों में , कुछ सदियों में और कुछ युगों में - स्थायी कुछ नहीं होता ;उनकी सच की तासीर उन्हें मुबारक- तब तक उन्हें मुबारक जब तक मेरे सच से उनका सामना न हो .

मुझे तुम्हारे इस पकडे हुए सच से ,ठहरे हुए सच से ,जड़ हो चुके सच से,अपना औचित्य खो चुके सच से कोई दिक्कत नहीं है ,जब तक तुम मुझ से ये उम्मीद नहीं करते कि मैं तुम्हारे सच को स्वीकार करूँ - अपने सच को छोड़ कर ,त्याग कर,भूल कर - जो मैंने मेरे अनुभव से हासिल किया है !!
अगर तुम,मेरे सच को स्वीकार नहीं कर सकते तो कृपया मुझसे अपने सच को स्वीकार करने की मत कहो क्योंकि तुम्हारा सच तुम्हारा अनुभूत सच है और मेरा सच मेरे अपने अनुभव की देन है -- तुम्हारा सच तुम्हे मुबारक और मेरा सच मेरे पास रहने दो . अगर तुम मेरा सच स्वीकार करने को तैयार हो तो मैं भी तुम्हारा सच स्वीकार करने को तैयार हूँ इस शर्त पर कि फिर उन दोनों सचों को आपस में गलबहियां करने दो और जो पटखनी दे दूसरे को उस सच को तुम भी मानो और मैं भी - निर्णायक आज के युग के हो , वर्तमान के हो क्योंकि सबसे अहम सिर्फ वर्तमान होता है .
तुम राजा राम मोहन राय के ज़माने से पहले के सच को आज भी पकड़ कर बैठे हो और मैं औरत की संपूर्ण स्वतंत्रता की बात करता हूँ और मजे की बात ये है कि हम दोनों एक ही प्लेटफार्म पर खड़े है- हंसी भी आती है और अफ़सोस भी होता है हंसी इसलिए कि तुम जैसी मानसिकता के लोग आज भी ज़िंदा है और अफ़सोस इसलिए कि मंगल ग्रह तक जाने की बात करने वाले लोग तुम्हारे दिमाग की उलझी हुई तहों तक नहीं पहुँच पा रहे है !!!! उन तहों तक जो ज़माने को ,प्रगति को,इंसानियत को आगे बढ़ने से रोके हुए है !!!
सुबोध-जनवरी १३,२०१५ 

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29 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


हो सकता है ये छोटा सा नज़र आने वाला अवसर ही बड़ा अवसर हो और आप इस ताक में बैठे हो कि कोई बड़ा अवसर मिले और मेरे वारे- न्यारे हो जाये .

अगर गौर करें तो अवसर सिर्फ एक तटस्थता भरी परिस्थिति है वे आपके प्रयास है जो इनमे रंग भरते है या इन्हे बदरंग करते है जिस तरह एग्जामिनेशन हॉल में मिला हुआ पेपर एक तटस्थता भर है आपके प्रयास अगर उचित स्तर के है तो आपके सामने ये बेहतरीन अवसर है अन्यथा ये एक छोटा अवसर था जिसे आपने कोई ईज्जत नहीं दी और बदले में आपकी बेईज्जती हो गई !!

क्या ज़िन्दगी में आपकी हर समस्या के साथ यही नहीं हो रहा है ? आप बाहर को सुधारने की कोशिश कर रहे है ,या ये उम्मीद कर रहे है कि बाहर सुधर जायेगा और आपके लिए बेहतरीन अवसर पैदा करेगा - आपके अंदर क्या है आप इसे जानना और समझना ही नहीं चाहते . ये जानिये और समझिए जब तक आप अंदर से काबिल नहीं बनेंगे बाहर चाहे जितने बड़े अवसर हो आप नाकाम ही रहेंगे .

सचिन तेंदुलकर के लिए जो शॉट आसान है आपके लिए वो मुश्किल है इसकी वजह "बॉल मुश्किल थी" नहीं है बल्कि ये है कि सचिन की तैयारी अंदर से है जिसे उसने लगातार के अभ्यास से हासिल किया है और आपने तैयारी न करकर एक आसान बॉल की उम्मीद पाल रखी है . अगर सचिन भी आपकी तरह ही सोचता कि आसान बॉल आने पर शॉट मारूंगा तो क्या वो सचिन होता ? उसने प्रत्येक बॉल को- चाहे वो आसान हो या मुश्किल ,चाहे वो हलकी हो या भारी,चाहे वो छोटी हो या बड़ी एक अवसर की तरह देखा है और खुद को अंदर से मजबूत किया है तो सचिन बाहर से मजबूत है .उसने हर फैंकी हुई बॉल को एक अवसर माना है - छोटा अवसर या बड़ा अवसर नहीं - सिर्फ अवसर और यही उसकी खासियत उसे सचिन बनाती है .
कृपया ध्यान देवे -अवसर छोटा या बड़ा नहीं होता बल्कि आप छोटे या बड़े होते है -ज़िन्दगी को गलत नंबर के चश्मे से मत देखिये .
सुबोध - दिसंबर २२,२०१४ 

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28 . ज़िंदगी – एक नज़रिया



ज़िन्दगी जब मुश्किल हो जाये ,इतनी मुश्किल कि तुम हौंसला हारने लगो तो गौर करना और देखना डूबते हुए सूरज को कल वो वापिस लौटेगा कुछ सुस्ताने के बाद ,नए सिरे से इस संसार को रोशन करने ; तो गौर करना और महसूस करना जिस्म से छूटती हुई सांस को , वो छोड़ी इसलिए जाती है कि कार्बन डाई ऑक्साइड निकाल सके और नई ऊर्जा के लिए ऑक्सीजन ले सके . ज़माने में कुछ ऐसे लोग थे जिन पर तुम्हे अटूट भरोसा था और वे तुम्हारे इस मुश्किल दौर में तुम्हारे साथ नहीं थे ( अच्छा हुआ कार्बन डाई ऑक्साइड निकल गई - वे तुम्हारी ज़िन्दगी के बैरियर थे ) लेकिन कुछ ऐसे लोग भी थे जिनसे तुम्हे कोई उम्मीद नहीं थी फिर भी वे जाने- अनजाने तुम्हारे साथ खड़े थे . और शुक्रिया अदा करना नीली छतरी वाले का कि उसने तुम्हे मौका दिया अपने पंख पसारने का, तुम्हारे अनुभव के संसार को समृद्ध करने का , असली और नकली की पहचान करने का ,बंद अँधेरे विश्वास की गलियों में भटकते मन में उजाला भरने का ,और शुक्रिया अदा करना उन साथियों के लिए जो मुश्किलों के दौर में तुम्हारे साथ खड़े थे कुछ पुराने और कुछ नए साथी . 
तुम अपनी ज़िन्दगी की मुश्किलें मत देखना वो उपलब्धियां देखना जिन्होंने तुम्हे कभी गौरव दिया था किसी ने आशीष में तुम्हारे सर पर हाथ रखा था किसी ने स्नेह से तुम्हारा माथा चूमा था और अपनी उस सोच को विस्तार देना जो तुममे ऊर्जा भरती थी ,अपने उन ख्वाबों को याद करना जो तुम्हारे बचपन जितने ही मासूम थे ,निश्छल थे यकीन मानो तब तुम्हे अपनी मुश्किलें छोटी लगेगी और विश्वास होने लगेगा कि मैं अब भी जीत सकता हूँ -बड़ा और आसान लगेगा .

सुबोध
९ दिसंबर , २०१४



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27 . ज़िंदगी – एक नज़रिया




गलतियां हर इंसान करता है - अगर वो ज़िंदा है तो !
लेकिन फर्क इससे पड़ता है कि आपने उन गलतियों पर प्रतिक्रिया क्या और कैसे की है ,आपने गलती होने के बाद अपना माथा पीटा है या उन गलतियों से सबक लिया है .आपने आगे से कोई गलती न हो जाए इस डर से चलना ही बंद कर दिया है या बार-बार गलती कर कर, गिर-गिर कर साईकिल चलाना सीख लिया है .

अगर आपने साईकिल चलाना सीख लिया है तो जाहिर सी बात है उन दिनों आपके अंदर कोई एक आग जल रही थी ,कोई एक लगन लगी थी जो बार-बार गिरने ,चोट लगने के डर से ज्यादा ताकतवर थी . और अगर आपने नहीं सीखा है तो इसकी वजह ये नहीं थी कि साइकिल लम्बी थी या पेडल तक आपके पैर नहीं पहुँच पा रहे थे या पीछे से पकड़ने वाला सही नहीं था या आपको सिखानेवाला कोई भी नहीं था बल्कि असली वजह ये थी कि आपमें वो आग ही नहीं थी ,वो लगन ही नहीं थी जो आपको साइकिल चलाना सिखवा दे .

तीन साल पुरानी घटना याद आती है ,रात को एक बजे ठक -ठक  की आवाज़ आ रही थी मैंने जानकारी की तो पता चला कपूर साहब का लड़का क्रिकेट सीख रहा है ,रात को एक बजे अपने किसी दोस्त के साथ वो डिफेन्स की प्रैक्टिस कर रहा था ,इस साल वो अपने स्टेट की तरफ से खेल रहा है -इसे आग कहते है ,इसे लगन कहते है ,इसे ज़ज़्बा कहते है - उसने अपनी कमी देखी, समझी कि उसकी बैटिंग कमजोर है ,बैटिंग करते वक्त वो बार-बार गलती कर जाता है ,कंसंट्रेट नहीं कर पाता है -उसने अपनी गलती को समझा और उसे दूर किया ,अपनी गलतियों पर उसकी प्रतिक्रिया  सकारात्मक थी लिहाजा एक आग उसके अंदर पैदा हुई और उसने अपने घरवालों को गौरवान्वित किया .

जिन दिनों आपने साइकिल चलाना सीखा था उन दिनों वाली आग , उन दिनों वाली लगन आपमें आज भी ज़िंदा है ?

अगर है तो गलतियाँ आपका इंतज़ार कर रही है - सफलता भी !!

और अगर नहीं है तो अपने ख्वाबों को इतना बड़ा कीजिये कि आपकी रातों की नींद उड़ जाए और आप अपने किसी दोस्त के साथ रात को एक बजे डिफेन्स सीखने के लिए ठक -ठक  करने लगे !!! ( कृपया पड़ोसियों के प्रति विनम्र रहे और उनकी सुविधा का ख्याल रखे ! )
सुबोध - २२ नवंबर,२०१४






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26 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 
एक दिन तुम्हारे चेहरे की ख़ूबसूरती पुरानी पड़ जाएगी ,तुम्हारा कसा हुआ जिस्म झुर्रियों से भर जायेगा , चमड़ी का कसाव, उसकी चमक अतीत की बात हो जाएगी , घनी लहराती जुल्फे चांदी के तारों में बदल जाएगी ,तुम्हारी रौबीली खनकदार आवाज़ लड़खड़ाने लगेगी ,वो कदम जिनसे धरती हिलती है उठाये न उठेंगे , वो हाथ जो कइयों के लिए सहारा बनते है किसी सहारे की तलाश करेंगे - सब के साथ ऐसा होता है तुम्हारे साथ भी होगा लेकिन तुम एक भ्रम में जी रहे हो जैसे जवानी का अमृत पीकर आये हो !!

तुम्हारी जवानी तुम्हारे बचपन को कुचलकर आई है तो कोई तुम्हारी जवानी को भी कुचलेगा ,स्थायी कुछ भी नहीं होता और तुम हो कि अपनी जवानी के जोश में ज़माने को अपनी मुट्ठी में करने चले हो !!

बंधु,जमाना तो मुट्ठी में भिंची हुई रेत है जितना कसोगे तुम्हारी पकड़ से फिसलता जायेगा . आखिर में चंद जर्रे तुम्हारी हथेली से चिपके रह जायेंगे जो तुम्हारी अच्छाइयां ,तुम्हारी बुराइयां ,तुम्हारी खासियतें ,तुम्हारी कमियां तुम्हे याद दिलाएंगे .

मैं नहीं कहता कि तुम ये करो या वो करो - कोई उपदेश कोई नसीहत नहीं - निर्णय तुम्हारा है जो भी तुम करना चाहो करो क्योंकि जरूरी नहीं मेरा सच तुम्हारा भी सच हो - सच तो बिलकुल व्यक्तिगत होता है . मेरा सच तुम्हारा झूठ हो सकता है और तुम्हारा सच मेरा झूठ . मेरी रोशनी तुम्हारे लिए अंधकार हो सकती है या तुम्हारी रोशनी से मेरी आँखे चुँधिया सकती है . फर्क मानसिकता का हो सकता है ,वास्तविकता का हो सकता है .

हो सकता है मेरी निगाहों में मेरा बुढ़ापा पीड़ादायक हो जबकि तुम्हारी निगाहों में जन्नत की पहली सीढ़ी - सुकून के लम्हों की शुरुआत ; निर्भर इस पर है कि मैंने या तुमने अपनी जवानी के दिनों में अपने बुढ़ापे के लिए तैयारी कितनी और कैसी की है !!!
सुबोध- १९ नवंबर, २०१४






















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25 . ज़िंदगी  – एक नज़रिया 

कल का मेरा सच आज सच नहीं रहा ,जब मैं उस सच को आज झूठ बताता हूँ तो तुम आश्चर्य करते हो !

आज जिसे मैं सच मान रहा हूँ हो सकता है कल मैं उसे सच नहीं मानूं हो सकता है तुम मेरी बात नहीं समझ पाओ और फिर आश्चर्य करो.

बेहतर है तुम मेरे कल के सच को जो आज झूठ बन गया है , सच और झूठ के शब्दों में मत उलझाओ बल्कि उन तर्कों को सुनो और समझो जो मैंने तब दिए थे या जो अब दे रहा हूँ ,अगर मैं दोषी हूँ तो दोषी तुम भी हो जिसने मेरे तर्क सुने और माने और उन तर्कों को सच या झूठ का नाम दे दिया .

ज़माने की रफ़्तार इतनी बढ़ गई है कि कल के सच या झूठ आज सच या झूठ नहीं रहे , सारी धारणाये बदल गई ,सारे तर्क बदल गए .

दो सौ साल पहले का सच था शांति से बिना चीखे-चिल्लाये एक दुसरे की बात सुनना हो तो दोनों को आस-पास होना चाहिए लेकिन आज का सच है सात समुन्दर पार का इंसान भी बिना चीखे-चिल्लाये शांति से एक दूसरे की बात सुन सकता है सिर्फ उसे मोबाइल का इस्तेमाल करना है . एक अविष्कार कई सच झूठ बना देता है और कई झूठ सच हो जाते है .

सौ साल पहले महाभारत का संजय जो कुरुक्षेत्र का आँखों देखा हाल धृतराष्ट्र को बताता है कपोल कल्पना कहलाता था किस्से-कहानियों की बात था लेकिन आज तुम टी.व्ही पर आँखों देखा हाल देखते हो और स्वीकार करते हो : कल का झूठ आज सच बन गया है ".

दो सौ साल पहले औद्योगिक युग में " पढोगे-लिखोगे बनोगे नवाब " वाला मुहावरा आज क्या वही अर्थ रखता है ? तब नौकरी मिलना आसान था और आज नौकरी मिलना और नौकरी बने रहना मुश्किल है , कुछ सच या झूठ बदल गए है और कुछ बदलने के बहुत करीब है .

यह नया युग है जहाँ नए सच गढ़े जायेंगे और कल के सच खंडित किये जायेंगे और यही झूठ के साथ भी होगा , कुछ झूठ गढ़े जायेंगे और कुछ खंडित किये जाएंगे .

और भविष्य में -आने वाले सालों में, जब आज अतीत बन जायेगा यह प्रक्रिया तब भी जारी रहेगी.

हर युग के अपने सच होते है और अपने झूठ जो अगले युग में बेमानी हो जाते है ,वो युग अपने सच और अपने झूठ खुद गढ़ता है .

तो मेरे आज के सच को या झूठ को तुम सच या झूठ आज का मानो कल का पता नहीं कल वो रहेगा या बदल जायेगा !!!!

महत्त्वपूर्ण सच नहीं है और न हीं झूठ है बल्कि महत्त्वपूर्ण तुम्हारा मेरे तर्कों को मानना या नकारना है !!!!
- सुबोध













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24 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 

सिर्फ एक प्रचलित मुहावरा है जिसे जन समर्थन प्राप्त है और वो भावनाओं से ओत -प्रोत है इसलिए वो सही नहीं हो जाता .

मैं किसी की भावनाएं आहत नहीं करना चाहता सिर्फ मेरा एक पक्ष रख रहा हूँ ,हो सकता है आप इससे सहमत न हो तो कृपया अपना पक्ष रखे -तर्क और शालीनता के साथ जिस तरह से मैं रख रहा हूँ !

लोग माँ-बाप को भगवान से भी ऊपर दर्ज़ा देते है - उनकी निगाह में सुख-दुःख भगवान उनके भाग्य में लिखता है ,जबकि माँ-बाप सिर्फ सुख ही लिखते है !!

फेसबुक पर डालने और लाइक लेने में इसका मुकाबला नहीं है - बिलकुल किसी लोकप्रिय टॉपिक की तरह !!

आइये थोड़ा इसका विश्लेषण करे !!

क्या वाकई भाग्य भगवान लिखता है ?

या इंसान के किये गए कर्म ही उसे सुख या दुःख देते है , सफलता और असफलता भगवान ने गढ़ी है या इंसान ने ?

दूसरा वाक्य माँ-बाप भाग्य में सिर्फ सुख ही लिखते है,क्या वाकई ?

मेरे कॉलोनी में रहने वाले रहीम भाई के घर पिछले महीने आठवाँ बच्चा पैदा हुआ है . रहीम भाई खुद साईकिल के पंचर बनाने का काम करते है उनकी शरीके हयात सबीना भाभी लाख की चूड़ियाँ बनाने का काम करती है ,ज़रुरत पर कॉलोनी वाले उनसे घरों में भी साधारण सी मजदूरी पर काम करवा लेते है . वाकई रहीम भाई और सबीना भाभी ने अपने बच्चे के भाग्य में सिर्फ सुख ही लिखा है !

मध्यम वर्गीय कपूर साहब के सिर्फ दो बच्चे है एक लड़का और एक लड़की , अगर डिटेल में उनसे बात की जाए तो उन्हें ये नहीं पता कि उनके उन्नीस वर्षीय बेटे का भविष्य क्या है ,वो जो पढाई कर रहा है आने वाले भविष्य में उससे क्या हासिल होगा. वे अपने बिज़नेस में इतने व्यस्त है कि उन्हें ढंग से अपने बेटे के साथ बैठे हुए हफ्ता-हफ्ता गुजर जाता है .

अधिकांश परिवारों में बच्चे की आमद बिना किसी ठोस प्लानिंग के होती है ,जहाँ माँ-बाप सब कुछ उपरवाले के भरोसे छोड़ देते है , बच्चे के ग्रेजुएट होने तक भी माँ-बाप को पता नहीं होता कि बेटा ज़िन्दगी किस तरह गुजारेगा, जीवनयापन के क्या साधन होंगे और फिर भी माँ-बाप नसीब में सिर्फ सुख ही लिखते है !!

बच्चे पैदा करना और उन्हें संस्कारों की, ज़िदगी की समझ देने की बजाय आदर्शों की खुराक दे दी जाती है ,रटे-रटाये जुमले याद करवा दिए जाते है कि भाग्य भगवान लिखता है , सुख और दुःख तो भगवान के बनाये हुए रात और दिन जैसे है ,माँ-बाप बेहतर होते है ,यही बेहतरी अधिकांश सामूहिक परिवारों में शादी के दुसरे-तीसरे साल बिखर जाती है . और भगवान और भाग्य के नाम पर उनको गैर-जिम्मेदार बनाया जाता है !!

कृपया नई पीढ़ी को इन बेवकूफी भरे जुमलों से ना बहकाये उसे नए ज़माने की नई हवा में सांस लेने दीजिये ,नए तरीके से चीज़ों को सोचना और समझना सीखने दीजिये .

मुझे पता है मैंने एक विवादित मुद्दे को उठाया है हो सकता है कुछ को ये नागवार गुजरे उनसे आग्रह सिर्फ इतना है कि भावुकता भरा जवाब न देकर अगर भौतिकता भरा जवाब दे तो बेहतर होगा .
- सुबोध







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23.  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 

 कुछ ऐसे शानदार दोस्त जिनके बारे में कल्पना तक न की थी कि ज़िन्दगी में कभी बिछुड़ जाएंगे, होली दिवाली भी याद न करे तो उनके ख्याल से ही सारी खुशियां दर्द में बदल जाती है- सब कुछ पाकर भी कुछ भी न बचा पाने का दर्द , संबंधों को अपनी आँखों के सामने मरते हुए देखने का दर्द , जानी पहचानी रूह में उतरती आवाज़ों को खो देने का दर्द !!

उफ़ ! ये दर्द ,ये खामोशी ,ये चाहत ,ये कशमकश , ये लम्हों को जीने की आग सिर्फ मेरे सीने में धड़क रही है या उस तरफ भी कोई तड़फ ज़िंदा है ?

क्या मैं मेरे गुरुर को,मेरे अहंकार को ,मेरी ईगो को ,मेरे घमंड को अपनी पूरी नकारात्मकता के साथ छोड़कर मोबाइल पर उसके नंबर डायल कर सकता हूँ?

अगर " हाँ " तो करता क्यों नहीं ?

अगर " नहीं " तो झूठे विलाप , झूठे प्रपंच और एक नकाब को क्यों ढ़ो रहा हूँ ?

हे मेरे अराध्य ! मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं किसी और में दोष न देखुं और अपने दोष स्वीकार कर सकूँ ,सुधार सकूँ !!!!
- सुबोध , २५ अक्टूबर, २०१४





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22 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 

तुम्हारी आज की बर्बादी कल किये गए कार्यों का परिणाम है ,तुम्हारी कामचोरी ,तुम्हारे गलत निर्णय ,आधी-अधूरी सोच और सबसे बड़ा एक गलत चुनाव जो परिणाम दे सकता है वही तुम्हे मिला है ! अब तो जागो , अब तो समझो,ये मत कहो दिवाली ख़राब थी ,दिवाली ख़राब नहीं थी बल्कि कुछ और ख़राब था ; उसे समझो ,गलती स्वीकार करो ,जिम्मेदारी लो और अपनी अगली दिवाली खूबसूरत करो !
मेरी निगाह में इससे बड़ी शुभकामना तुम्हारे लिए नहीं हो सकती !!!
सुबोध- २४ अक्टूबर,२०१४





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21 . ज़िंदगी  – एक नज़रिया  


विश्वासघात वहां होता है जहाँ विश्वास होता है ,दुश्मनो के साथ पता होता है कि वार हो सकता है तो हमारी मानसिकता जाने-अनजाने चौकन्नी रहती है लेकिन अपनों के बीच हम खुद को सेफ महसूस करते है और सुरक्षा के प्रति लापरवाह हो जाते है और यही हमारे लिए घातक होती है.
- सुबोध




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20 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 

मध्यमवर्गीय बुजुर्ग पीढ़ी औद्योगिक युग के संस्कार और तकरीबन मज़दूरों वाली स्थिति से गुजरी है और वो अपनी पीड़ा आज की पीढ़ी को देना चाहती है कि ज़िन्दगी आसान नहीं है ,बड़े पापड़ बेलने पड़ते है,बड़ी मेहनत करनी पड़ती है ,दिन-रात एक करते है तो दो वक्त की रोटी जुटा पाते है .सारी दुश्वारियां,सारी मुसीबतें उनकी जुबां पर होती है लेकिन वे शायद समझ नहीं पाते है कि आज का युग पहलेवाला नहीं है ,आज बैलगाड़ी की जगह गाड़ियां आ गई है ,लालटेन की रोशनी में टिमटिमानेवाली रातें रोशनी से जगमगाती है .उनका वक़्त ,उनकी सोच,उनके साधन सब कुछ बदल गया है ,आज सूचना क्रांति के युग में पैसे पेड़ पर नहीं लगते वाली कहावत गलत हो गई है अब इस युग में पैसे पेड़ पर लगते है ,बस लगाने की काबिलियत और ज़ज्बा होना चाहिए .
मानवीय मूल्य उस युग में भी कीमती थे लेकिन उस युग में ईमानदारी और संस्कारों वाली जनरेशन का आपसी कम्पीटीशन होने की वजह से सफलता के उतने मौके नहीं थे ,लेकिन आज की पीढ़ी में ज्यादातर मूल्यहीन और क्विक फिक्स वाली मानसिकता के लोग होने की वजह से सफलता के चांस बहुत-बहुत ज्यादा है बशर्ते आप टुच्ची मानसिकता वाले न हो और अपने उद्देश्यों के लिए समर्पित हो !!
- सुबोध





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19 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 


जानकारी का ताल्लुक उम्र से होता है ऐसा सोचनेवाले पाषाण युग के बचे हुए अवशेष है क्योंकि तब ज़िन्दगी और गुजरने वाली घटनाये प्रसारित करने के साधन नहीं थे ,आज सूचनाएं अबाध गति से हवाओं में तैरती रहती है और ज़रूरतमंद अगर टेक्नोलॉजी का सहारा लेता है तो स्थिति क्या होगी आप खुद ही समझ सकते है ,18 साल का लड़का 60 साल के बुजुर्ग पर सूचनाओं के मामले में भारी पड़ता है .

बुजुर्ग पीढ़ी के पास नयी पीढ़ी पर हावी होने के अमूनन दो तरीके होते थे ( शब्दों पर गौर करें "थे")

1 . बुजुर्ग पीढ़ी ज्यादा उम्रदराज है और इस नाते ज्यादा अनुभवी है .

2 . बुजुर्ग पीढ़ी ज्यादा कमाती है या उसने ज्यादा जोड़ रखा है .

आइये उनके दोनों तर्कों को समझ लेवे.

1 जैसाकि मैंने कहा है आज के ज़माने में ये कहना कि उम्र ज्यादा होने से आप ज्यादा जानकार है सत्य नहीं है ,माउस के एक क्लिक पर आपने अपनी पूरी ज़िन्दगी में जो जानकारी इक्कठा की है वो सारी बल्कि उससे ज्यादा जानकारी हाज़िर हो जाती है ! और उम्र होने के नाते आप अनुभवी है तो मैं कहना चाहूंगा कि अनुभव बिलकुल व्यक्तिगत क्रिया है - बिलकुल आस्था की तरह कि सालो-साल पूजा करनेवाला मंदिर का पुजारी कोरा ही रह जाता है और कभी कभार मंदिर के सामने से गुजरनेवाला भक्त प्रभु को पा जाता है . 55 साल का SHO जिन धाराओं के बारे में नहीं जानता उसी का 18 साल का लड़का नेट पर बैठता है और उन धाराओं का पूरा ब्यौरा बता देता है .

2 . 18 साल का लड़का एक START UP शुरू करता है लाइक माइंडेड ग्रुप्स और आधुनिक साधनों के दम पर डेढ़ से दो साल में अपने पिता से ज्यादा कमा कर अपनी काबिलियत साबित कर देता है .

बुजुर्ग पीढ़ी अपने अनुभव और कमाई के दम पर नयी पीढ़ी पर अगर हावी होना चाहती है तो निश्चित ही वो एक गलत राह पर है और यही शायद पारिवारिक विघटन और पिता-पुत्र के बीच के तनाव की सबसे बड़ी वजह है . भौतिकता के दम पर नयी पीढ़ी पर हावी होना आज संभव नहीं है क्योंकि आजका युग सूचना-प्रधान युग है और इस युग में विजेता वही है जिसने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि उसके पास ज्यादा सटीक और शीघ्र सूचना पहुंचे और वो इन सुचनों का प्रयोग अपने हित में कर सके .और ये व्यवस्था कोई भी खुले दिमाग का समझदार टेक्नोसेवी कर सकता है .

नयी पीढ़ी पर बुजुर्ग पीढ़ी सिर्फ अपने प्रेम ,अपने स्नेह,अपने वात्सल्य के दम पर हावी हो सकती है और मजे की बात ये है कि ये भावनाए हक़ नहीं मांगती ये सिर्फ देना जानती है !!
- सुबोध


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18 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 

 उस से मेरी चंद दिनों की मुलाकात , साथ उठना, साथ बैठना , घुल-मिल कर बातें करना ,हंसी -मजाक करना इतना नागवार क्यों गुजर रहा है दुनिया पर कि मुझसे उसका सम्बन्ध क्या है ,पुछा जा रहा है !
ये दुनिया सहज होकर क्यों नहीं सोचती ,इसे क्या बीमारी है कि हर साधारण हरकत को कोम्प्लिकेटेड तरीके से सोचे-समझे !
क्या किसी से बात करने,हंसी-मजाक करने के लिए सम्बन्ध होना ज़रूरी है ?
क्या इतना काफी नहीं है कि मैं भी इंसान हूँ और वो भी इंसान है ,एक इंसान से दूसरे इंसान का क्या इंसानियत का सम्बन्ध नहीं हो सकता ?
बिलकुल वैसा ही सम्बन्ध कि किसी अंधे को आपने हाथ पकड़ कर सड़क पार करवाई ,किसी अपंग की कोई मदद की .
अपंगता क्या सिर्फ शारीरिक होती है मानसिक नहीं ?
अकेलापन दुनिया की सबसे खतरनाक पहेली है और इसका शिकार दुनिया का सबसे बड़ा अपंग .
अगर किसी मानसिक अपंग की अपंगता दूर करने के लिए मैंने उसका अकेलापन दूर कर दिया ,उसके साथ कुछ पल बिता लिए तो क्या गलत किया .
और यहाँ दुनिया सम्बन्धो की तलाश कर रही है !!!!
- सुबोध





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17 . ज़िंदगी  – एक नज़रिया 

बड़ी अजीब है ख्वाइश पहचान की , घर-बाहर ,आस-पास,गाँव-शहर ,दूर-नज़दीक,देश-दुनिया हर तरफ हर शख्श एक जंग लड़ रहा है . अपनी पहचान की जंग !

कुछ अपनी पहचान दूसरों को उधार देकर बड़े ,बहुत बड़े बन जाते है , कुछ लोग दूसरों की पहचान उधार लेकर खुद को एक नाम देते है ,खुद की नज़र में बड़े बन जाते है उन्हें मुगालता ये भी होता है कि हम किंग मेकर है .

कुछ लोग चंद सिक्कों में खुद के हुनर को बेच देते है और उस हुनर को खरीददार की पहचान करार देते है , कुछ दूसरों की मेहनत को अपनी पहचान बना लेते है .

कुछ पैसों के बदले में या किसी दबाब में दूसरों को पहचानना बंद कर देते है और कुछ अनजान की पहचान भी क़ुबूल करते है .
क्या निराले खेल है पहचान के !

कुछ पहचान के लिए अजीब से कपडे पहनते है ,कुछ अजीब सी हरकतें करते है ,कुछ गाने का रिकॉर्ड बनाते है ,कुछ नाचने का ,कुछ बार -बार चुनाव लड़ने का ,कोई पढ़ने का !!जितने शख्स उतने तरीके .

चाहता हर कोई है कि मेरी पहचान हो ,तरीका चाहे अजीब हो या फिर ऐसा कुछ करना पड़े कि लोग कहे वाह भाई,वाह या गज़ब या बहुत खूब !!!

जंग पहचान की जो है !!!


सुबोध - अक्टूबर ३, २०१४


 
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16 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 


 अन्जान लोगों को की हुई मदद को उसने इस तरह लौटाया
कि मुसीबत के वक्त मेरे साथ जो खड़ा था उसे मैं ठीक से जानता भी नहीं था
शायद इसे ही उसकी रहमत कहते है ,शायद यही इंसानियत होती है !!!
सुबोध - २४ सितम्बर, २०१४






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15 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 


इस मुकाबले में
तुम्हे आगे बढ़ने की जगह दी है
और मैं पीछे हटा हूँ
इसका मतलब ये नहीं है कि
मैं हार रहा हूँ
मैं तो सिर्फ उस पोजीशन में आ रहा हूँ
जहाँ से तुम पर निशाना साध सकूँ
और विजेता बन सकूँ !!!!
सुबोध- २३ सितम्बर, २०१४





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14 . ज़िंदगी  – एक नज़रिया  

जो सपने आपकी नींद उड़ा देते है और आपकी बेहतरीन जानकारी के अनुसार वो सही है तो उनकी आवाज़ सुनिए और उस रास्ते पर बढ़िए जो रास्ता वो बता रहे है .
हो सकता है आपको पहली बार में सफलता न मिले तो उस अस्थायी असफलता की परवाह मत कीजिये क्योंकि सफलता के महल तक पहुंचने के लिए हमेशा उस दरवाज़े से गुजरना पड़ता है जिस पर "असफलता" लिखा हुआ होता है. आपकी ताकत, आपका हौंसला हमेशा असफलताओं से बड़ा होता है !!
और हो सकता है जो काम आप कर रहे है उसके लिए आपको आलोचना सहन करनी पड़े तो उन आलोचकों की परवाह मत कीजिये जिन्होंने हर महान आदमी को अपनी कटुता से आहत किया होता है , अगर वो महान शख़्शियतें उनकी आलोचना सुनकर रुक जाती तो" महान " शब्द ही नहीं होता !
खुद पर भरोसा रखिये और अपने उस ख्वाब को साकार कीजिये जिसके लिए आपके अंदर ज्वाला धधक रही है !!!!
सुबोध- २३ सितम्बर,२०१४














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13 . ज़िंदगी  – एक नज़रिया 

धन्यवाद, उन दोस्तों का जिन्होंने मुझे अपनी गलतियों से रूबरू करवाया ,बिना इस बात से डरे कि वो मेरी दोस्ती खो सकते है !!
पक्के दोस्त अच्छे हो ,सच्चे हो ये ज़रूरी नहीं !!
पक्के दोस्त आपकी हर बात का समर्थन करेंगे लेकिन अच्छे और सच्चे दोस्त आपका
सिर्फ वही समर्थन करेंगे जहाँ उन्हें आपकी भलाई नज़र आएगी.
दोस्ती जब चुनने की बारी आये तो पक्के नहीं अच्छे और सच्चे दोस्त चुनिए !
और हाँ, ध्यान रखियेगा आपके अच्छे और सच्चे दोस्त आपकी दोस्ती की परवाह नहीं करेंगे बल्कि उन्हें आपकी अच्छाई की, आपकी भलाई की परवाह होगी , इस दोस्ती के मूल में " दोस्ती जाए लेकिन दोस्त रहे " वाली भावना होती है क्योंकि उन्हें भरोसा होता है कि जिस दिन आप अपना अच्छा और बुरा समझने लगेंगे उस दिन दूरियां ख़त्म करकर वापिस लौट आएंगे !!!

सुबोध - १९ सितम्बर,२०१४














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12 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 


ज़िन्दगी हमेशा वादा करती है कि मैं कभी भी आसान नहीं रहूंगी .मैं तुम्हारे सुख में चुनौती बनकर उभरूंगी कि आओ मुझे बरकरार रखो ,और तुम्हारे दुःख में तो संघर्षपूर्ण रहूंगी ही .

अब ये तुम पर है कि तुम आलोचना,हताशा ,निराशा ,पराजय को अपनी ताकत बनाकर उभरते हो -एक ज्वालमुखी की तरह या इन नकारात्मक भावों के नीचे दबकर अपने आप को बर्बाद कर लेते हो !!!

चाकू से सब्ज़ी भी काटी जाती है और आत्महत्या करने के लिए हाथ की नसें भी !

फर्क इस्तेमाल करने वाले की सोच और ताकत में होता है !!!!

सुबोध- १८ सितम्बर, २०१४




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11 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 

काश!!
कुछ अनलिखे शब्दों को हम पहचान पाते !!!
मीरा ने पहचाना ,पंचतत्व में विलीन हो गई !!
हीर ने पहचाना फ़ना हो गई !!
माँ ने पहचाना वृद्धाश्रम पहुँच गई !!
प्रकृति ने पहचाना , रौद्र हो गई !!!!
और...
और...
और....
एक लम्बी लिस्ट और हम भावनाहीन इंसान !!
शब्दों को ओढ़ते है, शब्दों को बिछाते है,शब्दों को पहनते है
लेकिन शब्दों का अनलिखा नहीं समझते !!!!

 सुबोध- १७ सितम्बर , २०१४ 



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10.  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 



कुछ लम्हे ज़िन्दगी में हताशा देते है और हम उन नकारात्मक लम्हों के बहाव में बहते हुए खुद को नकारा मान लेते है ,हार स्वीकार कर लेते है ,सुनहरी ख्वाबों से खुद को दरकिनार कर लेते है . क्या उन लम्हों पर हम कुछ अलग तरीके से प्रतिक्रिया नहीं दे सकते ?

एक आईना जब टूटता है कुछ कहते है इसे कचरे में फेंक दो और कुछ कहते है आओ एक नया रॉक गार्डन बनाये !!!!

परिस्थितियां आपके बस में नहीं है लेकिन परिस्थितियों पर आप क्या प्रतिक्रिया करते है यह पूरी तरह आपके बस में है .

सुबोध- १७ सितम्बर , २०१४




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9 . ज़िंदगी  – एक नज़रिया  

मैं गिर रहा हूँ बार-बार
उस मासूम बच्चे की मानिंद जो चलना सीखने के वक्त गिरता है ,उठता है,कदम बढ़ाता है ,गिरता है, उठता है , कदम बढ़ाता है और अंततः चलना सीख जाता है ,तब उस बच्चे को कोई नहीं कहता कि ये गिर रहा है बल्कि कहते है कि ये चलना सीख रहा है !!!
आज जब मैं गिर रहा हूँ बार-बार
लोग मुझे हारा हुआ ,चुका हुआ ,पराजित क्यों मान रहे है ?

  सुबोध- १६ सितम्बर ,२०१४



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8 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 

महंगाई का असर जिंसों पर होता है ,वस्तुओं पर होता है ,चीज़ों पर होता है ; भावनाओं पर नहीं,जज्बातों पर नहीं -अगर उन पर भी महंगाई का असर होता तो क्या-क्या होता सोचकर रूह काँपने लगती है !!! या रब तू बड़ा रहम दिल है इंसान की मजबूरियां भी समझता है और नादानियां भी !!!
सुबोध- १५ सितम्बर, २०१४






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7 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 

हम प्यार को हमेशा व्यापार क्यों बनाते है ? प्यार के बदले प्यार मिलेगा ये सोचकर प्यार करना खुद को तराजू के एक पलड़े में रखना नहीं तो क्या है ? कि आओ मैं तिज़ारत के लिए हाज़िर हूँ !!! कहते है प्यार किया नहीं जाता , हो जाता है - तो यहाँ तो हम सायास भाव-ताव कर रहे है कि मैं प्यार नामक शब्द तुम को दे रहा हूँ तुम बदले में क्या दोगे ? क्या " प्यार हो जाता है " कहावत गलत है , अब प्यार हो गया बदले में प्यार नहीं मिला तो ? क्या तराजू के एक पलड़े में रखा अपना मन वापिस उठा लोगे ? प्यार तो स्नेह का नाम है, त्याग का नाम है ,खुद की बर्बादी के बाद भी किसी को आबाद करने की चाहत का नाम है , उस बंदगी का नाम है जहाँ " मैं " पिघल कर बह जाता है , बह कर "तुम" में समां जाता है फिर उस से कोई फरक नहीं पड़ता वो तुम मेरा है या नहीं है !!
- सुबोध





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6 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया


अगर आप गहराई में जाकर सोचे तो आप समझ पाएंगे कि हर आज़ादी खुद में एक बंधन ( इसे आप जिम्मेदारी पढ़े) होती है यह एक बंधन ही है कि आप अपनी संतान का भरण -पोषण कर पाते है तभी तो वो आपको संतान कहने का हक़ देती है .
यह भरण -पोषण एक बंधन है जिसके एवज में आपको संतान कहने का हक़ दिया गया है वो आपकी आज़ादी है - ये संसार के हर रिश्ते पर लागू होता है - इंसान और पैसे के रिश्ते पर भी !!!
- सुबोध





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5.  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 

शांति जिस कीमत पर भी मिले सस्ती होती है !!! हो सकता है हम आज इसे महसूस न करें , लेकिन जब जीवन में दौड़ते-दौड़ते थक जाएंगे , सत्ता हमारे हाथ से निकल कर नई पीढ़ी के हाथ में आ जाएगी और हमारे पास वक्त ही वक्त होगा - अपनी गुजरी यादों में जीने का ,की गई गलतियों को महसूसने का , पैसे के पीछे भागने का, थोपी हुई व्यस्तताओं के बारे में सोचने का , तब शायद , हाँ शायद तब हमे शांति अनमोल लगे ..हमे महसूस हो जिस के पीछे हम भागे क्या वो इतना महत्त्वपूर्ण था कि हमने पूरी ज़िन्दगी में अशांति पाल ली ..
सुबोध - ५ सितम्बर, २०१४




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4 . ज़िंदगी  – एक नज़रिया 

तुम्हारा स्पर्श मुझे सहज कर देता है मेरा सारा गुस्सा, मेरी सारी नाराजगी काफूर हो जाती है ...ये कौनसी भाषा है कि गुस्सा हुए बेटे/ बेटी को सीने से लगाता हूँ और वे शांत हो जाते है , जाने कुछ हुआ ही नहीं हो !!! शब्दों से पैदा हुए विवाद / गलतफहमियां एक स्पर्श से दूर हो जाती है ....
सुबोध - ५ सितम्बर, २०१४


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3 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 
 सफलता

सफलता  के   लिए  असफलता  उतनी ही ज़रूरी है  जितनी रौशनी के  लिए अँधेरा . असफलता सही मायने में हार  तब बनती है जब व्यक्ति अपनी असफलता से सबक न लेकर सफलता के लिए प्रयास  करना ही बंद कर देता है . हार गिरना नहीं है,गिरने के बाद उठने की कोशिश न करना है . अगर बच्चा गिरेगा नहीं तो खड़ा होना नहीं सीख पायेगा , जिस तरह खड़ा होना सीखने के लिए गिरना पहली शर्त है उसी तरह सफलता के लिए असफलता पहली शर्त है.

सफलता की पहली सीढ़ी यह है कि हमें ज़िन्दगी के हर पल को एक अवसर की तरह लपकना होगा , उसे सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए अपना सब कुछ झोंक देना होगा . जब तक हमारे कर्म में उत्कृष्टता नहीं आती तब तक हमें छोटी सफलता ही मिल सकती है ,बड़ी सफलता के लिए हमें उत्कृष्ट होना ही पड़ेगा ;निरंतर उत्कृष्ट क्योंकि ज़िन्दगी में रिहर्सल   नहीं हुआ करते .

सफलता की यात्रा में उतार-चढ़ाव और चुनौतियाँ हमेशा विद्यमान रहती है . इस यात्रा में मंज़िल नहीं पड़ाव होते है और पड़ावों पर बसेरा नहीं बनाया जाता . चूँकि ये यात्रा सतत है इसलिए उतार-चढाव और चुनौतियों को इसका ( सफलता का) हिस्सा समझने की सहजता अपनाएंगे तो हम सही मायने में ज़िन्दगी जिएंगे .

सुबोध  ३० जुलाई २००७ 




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2 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया
विकल्परहित विश्वास

एक दिन आपको 1440 मिनट देता है. इन मिनटों में आप कितने अवसरों का निर्माण कर पाते है , आपकी सफलता इसी पर निर्भर है.

ज़िन्दगी आपको गुज़ारने के लिए नहीं जीने के लिए मिली है- एक सफल जीवन जीने के लिए . सफलता मंज़िल नहीं , यात्रा है- निरंतर जारी रहने वाली यात्रा ; जिसमे जोखिम और आकर्षण होता है,संघर्ष होता है- हर पल.
समन्दर में बड़ी मछली को तेज तैरना पड़ता है छोटी मछली को खाने के लिए. अगर वो तेज नहीं तैरेगी तो भूखी मर जाएगी . और छोटी मछली को तेज तैरना
पड़ता है बड़ी मछली से बचने के लिए नहीं तो बड़ी मछली उसे खा जाएगी .
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप बड़ी मछली है या छोटी मछली . तैरने में तेजी लाना आपकी ज़रुरत भी है और मज़बूरी भी क्योंकि इसी पर आपकी ज़िन्दगी निर्भर है.

आप चाहकर भी उतना तेज नहीं दौड़ पाते जितना कुत्ता आपको दौड़ा लेता है या चाहकर भी उतना तेज नहीं तैर पाते जितना शार्क द्वारा पीछा करने पर तैरते है.अनंत संभावनाएं आपमें है . विश्वास कीजिये - विकल्परहित होने पर आप वो सब हासिल कर सकते है जो चाहते है.आपको अपने व्यक्तित्व से शंका रुपी गर्द
झाड़नी है , आप सक्षम है - विश्वास कीजिये

सुबोध

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1 .   ज़िंदगी  – एक नज़रिया

विकल्प

ज़िन्दगी आपसे कोई वादा नहीं करती सिवाय इसके कि यह चुनौतीपूर्ण होगी.यह विकल्प आपके पास है कि आप रोने का चुनाव करें या हँसने का , गाली का चुनाव करें या कविता का,बुराई का चुनाव करें या तारीफ़ का,परिस्थितियों द्वारा नियंत्रित होने का चुनाव करें या परिस्थितियों को नियंत्रित करने का.

स्तिथियाँ बिना प्रयासों के कभी अनुकूल नहीं होती, उनको अनुकूल बनाना विकल्प है,जिसे आप स्वीकारे या नकारे यह आपकी स्वतंत्रता है. यदि आप स्थितियों को अनुकूल बनाने का विकल्प चुनते है तो आप वह बनेंगे जो आप बनना चाहते हैं , नहीं तो वह बनेंगे जो शायद आप बनना नहीं चाहें - बनेंगे कुछ न कुछ जरूर क्योंकि घटनाएँ बिना परिवर्तन किये नहीं गुज़रती.

सौभाग्य या दुर्भाग्य आप पर निर्भर है . अगर आप आज आराम का विकल्प चुनते है तो कल आपके दुर्भाग्य का सूरज उगेगा यानि आज का सुख , कल का दुःख और मेहनत का विकल्प चुनते हैं तो हो सकता है आज आपके हाथों में छाले पड़े, जिनमें असह्य पीड़ा हो रही हो लेकिन यह कल आपका सौभाग्य बनेगा यानि आज का दुःख कल का सुख.

यह आप पर निर्भर है आप कौनसा विकल्प चुनते है , कृपया दूसरों को दोष न दें.
सुबोध

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