Monday, May 12, 2014

इश्क़


दो अनजान परिंदों की तरह 
मिले  हम
बचपन  के आखिरी  छोर पर
जहाँ से शुरू हुआ 
काफ़िला सितारों का
झूमना आसमान  का
संगीत हवाओं का 

दे कर  हाथों  में हाथ
देखे  हमने  इंद्रधनुषी ख़्वाब
चुने  अक्षर हमने
ख़ामोशी के पेड़ से
क़तरा-क़तरा रूह में
चाहत  के फूल खिले
 
रौशनी के चमन में
केसर की महक में
चांदनी  खिलखिला कर बोली
जा मेहंदी
लग जा हथेली पर
तक़दीर बनके महबूब की.

सुबोध  १२ मई २०१४

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