दो अनजान परिंदों की तरह
मिले हम
बचपन के आखिरी छोर पर
जहाँ से शुरू हुआ
काफ़िला सितारों का
झूमना आसमान का
संगीत हवाओं का
दे कर हाथों में हाथ
देखे हमने इंद्रधनुषी ख़्वाब
चुने अक्षर हमने
ख़ामोशी के पेड़ से
क़तरा-क़तरा रूह में
चाहत के फूल खिले
रौशनी के चमन में
केसर की महक में
चांदनी खिलखिला कर बोली
जा मेहंदी
लग जा हथेली पर
तक़दीर बनके महबूब की.
सुबोध १२ मई २०१४
No comments:
Post a Comment