कुछ टुकड़ों में

मंज़िल दूर होने से या नज़दीक होने से हासिल नहीं होती बल्कि होंसले और पाने की आग से , हासिल करने के ज़ज़्बे से मिलती है .एक कदम के फासले पर रखी हुई चीज़ भी जब तक उसे पाने का प्रयत्न न हो, उत्कंठा ना हो पायी नहीं जा सकती . सोचना, विचारना, स्वपन देखना जब तक कर्म में परिवर्तित नहीं होता कुछ भी हासिल नहीं हो सकता .
सुबोध- अप्रैल १३, २०१५




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नौकरी दीर्धकालीन पैसे की समस्या का अल्पकालीन समाधान है जिसे पाने के लिए बरसों स्कूली शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है ,
व्यवसाय ( BUSINESS ) दीर्धकालीन पैसे की समस्या का दीर्धकालीन समाधान है जिसे पाने के लिए बरसों सड़क से शिक्षा सीखनी पड़ती है .
सुबोध- अप्रैल ८ ,२०१५




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ज़िन्दगी हमेशा मेहरबान होती है , ज़रुरत सिर्फ अपनी आँखे खुली रखने की होती है और दिमाग का इस्तेमाल करने की होती है . कुछ लोग कचरे को संपत्ति में बदल लेते है और कुछ लोग संपत्ति को कचरे में बदल देते है .फर्क सोच-समझ और मानसिकता का होता है ,फर्क किसी अवसर को भाँपने और लपकने का होता है - स्थितियां हमेशा तटस्थ होती है वो आप होते है जो उसे अवसर बनाते है या सही वक्त के आने का इंतज़ार करते रहते है .
सुबोध -अप्रैल ५ , २०१५




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तुम बेशक अपनी भावनाएं बांटते हो दूसरों के साथ मगर हक़ीक़त में तुम्हारे दर्द सिर्फ तुम्हारे है और तुम्हारी खुशियां भी तुम्हारी है . भावनाएं हमेशा निजी होती है जिन्हे हम सार्वजनिक करना चाहते है लेकिन क्या वाकई में वे सार्वजनिक हो पाती है ?
सुबोध- अप्रैल ४,२०१५





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तैयारी का जब सम्भावना से मिलन होता है उसे ही नसीब या भाग्य कहते है .
-सुबोध मार्च 3, २०१५




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आपके ज्ञान का ,आपकी तैयारी का, आपकी मौजूदगी का, आपके कर्म का जब सम्भावना से मिलन होता है तो वो नसीब या भाग्य बन जाता है .
भाग्य आपका ज्ञान है, भाग्य आपकी तैयारी है भाग्य आपकी मौजूदगी है , भाग्य आपका कर्म है .
-सुबोध मार्च ३ , २०१५



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तुम्हारा सुकून तुम्हारे साथ था
और मेरी उलझने मेरे साथ
तुम दस्तरखान पर बैठे थे
और मैं रिज़क कमा रहा था
सुबोध- १४ जनवरी, २०१४


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सारे तीज-त्योंहार तुम्हारे थे ,
तुमने मनाये थे ,
मैं अपने घर से दूर था इतना
कि सिर्फ ख्याल मेरे पास थे
सुबोध- १४ जनवरी, २०१४



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मेरी जेब की खनखनाहट क्यों कर चुभती है तुम्हे ,
जिंदादिली के एवज़ में चंद सिक्के मिले है मुझे .
सुबोध- १४ जनवरी, २०१४



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 गिरकर संभलने वाले ही मंज़िल पाते है,
न संभलने वाले नाकामों में गिने जाते है .
तू हार मत, हारना तेरी फितरत नहीं,
मंज़िल पाने वाले ही विजेता कहलाते है
.

सुबोध- ४, सितम्बर , २०१४







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ज़माने की ठोकरों ने मजबूती दी है मुझे !
आज फिर एक ठोकर लगी है ,
लगता है अब मेरा वक्त आ गया !!!

सुबोध- ४ सितम्बर , २०१४







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 इंसान ज़िंदा रह गया
इंसानियत खो गई !!

ढूँढो उसे , शायद ज़िंदा हो
मुझमे या तुझमे !!! 


सुबोध- ४,सितम्बर,२०१४ 


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उनके देखने के अंदाज़ ने
हमे अपनों से गैर कर दिया !!!!


सुबोध- ४ सितम्बर, २०१४




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अनगिनित दिन, अनगिनित रातें
मेरे साथ चली है
मेरे साथ जली है
अश्कों से नहाईं है
तब निखरी है
गली-गली जिसकी चर्चा
हुई है, बिखरी है
तब कहीं जा के मोहब्बत कहलाई है
और मैं" दीवाना "

सुबोध ,- ४ सितम्बर, २०१४


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मुझे पता है मेरी खासियत मैं हूँ
और खासियत आम नहीं होती !!!
सुबोध - २ सितम्बर ,२०१४


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अब वो एहसास न रहे
जो पहली मुलाकात में थे !
कुसूरबार मैं अकेला तो नहीं !!!
सुबोध- १ सितम्बर ,२०१४ 




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मैं तो कल भी गैर न था ,आज भी तेरा हूँ
तुझे खुद पे ऐतबार नहीं तो खता मेरी क्या है ?
सुबोध- १ सितम्बर ,२०१४ 




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वो मासूम बच्चा पाँच साला जानता है अहमियत पैसे की
कि सिक्कों में कुछ नहीं मिलता नोट मांगता है भीख में.
- सुबोध
१९ जुलाई,२०१४





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  ज़िन्दगी में जब तुमको कोई रास्ता दिखाई न दे ,
कोई मंज़िल दिखाई न दे ,
कोई अपना दिखाई न दे ,
तब मेरे पास आना .
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और मेरी गोद में लेटना
तुम्हारा मन बिलकुल शांत हो जायेगा
माँ की गोद ऐसी ही होती है.
-सुबोध - २३ जुलाई , २०१४





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जो शिद्दत से गुजार  लोगो मोहब्बत का एक दिन
दावा है खुदा का गुनाह न कर पाओगे ताउम्र
सुबोध- २ जून,२०१४
 
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ज़िन्दगी में जब तुमको कोई रास्ता दिखाई न दे ,
कोई मंज़िल दिखाई न दे ,
कोई अपना दिखाई न दे ,
तब मेरे पास आना .
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और मेरी गोद में लेटना
तुम्हारा मन बिलकुल शांत हो जायेगा
माँ की गोद ऐसी ही होती है.


-सुबोध - २३ जुलाई , २०१४



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वो मासूम बच्चा पाँच साला जानता है अहमियत पैसे की
कि सिक्कों में कुछ नहीं मिलता नोट मांगता है भीख में.
- सुबोध
१९ जुलाई,२०१४




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याद आता है तुम्हारा मुस्कुराके समझाना
और मेरी कमियों का दोस्ती में दगा कर जाना
सुबोध -  २ जून, २०१४

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चुभती है तेरी बातें जब याद आते है वो दुश्मन
जो कभी दोस्त हुआ करते थे जान से भी प्यारे .
सुबोध - १ जून, २०१४


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जानना तो लाज़िम है किस राह से गुज़रोगी
ग़ुरबत को बुलाकर एक ख्वाब थमाना है.

ग़ुरबत = गरीबी

सुबोध - १,जून,२०१४


 













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हर रोज़ बदलते हो प्रोफाइल पिक्चर
तुम कहीं ठहरो तो कोई पहचान बने.
सुबोध- १ जून,२०१४


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लिखता हूँ मेरी बर्बादिया मैं शायरी में
और तुम हो कि वाह- वाह करते हो !!
सुबोध - १ जून ,२०१४



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कहीं कुछ कसकता है अंदर,
शब्द नहीं कि बयां कर सकूँ.
हाँ,लगता है बात मेरी हो रही है,
जिससे अलग तुम भी नहीं .

सुबोध- २२ मई , २०१४



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इश्क़ की नाकामी को बेवफाई का नाम न दो
मैं आज भी तन्हा हूँ ,क्या ये मेरी वफ़ा नहीं?

सुबोध - मई १, २०१४ 


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मेरे चुप रहने की सज़ा मुझको ये हुई
वो किसी ग़ैर की हो गई,मेरी न हुई .

 सुबोध  -- अप्रैल २०१४  
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दोस्ती आजकल क्या हो गई
आईना जो दिखाया खफ़ा हो गई
गलतियों की तारीफ़ क्योंकर करें
दोस्ती है कोई दुश्मनी तो नहीं.

 सुबोध  -- अप्रैल २०१४ 

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