Friday, October 31, 2014

गद्य

जानकारी का ताल्लुक उम्र से होता है ऐसा सोचनेवाले पाषाण युग के बचे हुए अवशेष है क्योंकि तब ज़िन्दगी और गुजरने वाली घटनाये प्रसारित करने के साधन नहीं थे ,आज सूचनाएं अबाध गति से हवाओं में तैरती रहती है और ज़रूरतमंद अगर टेक्नोलॉजी का सहारा लेता है तो स्थिति क्या होगी आप खुद ही समझ सकते है ,18 साल का लड़का 60 साल के बुजुर्ग पर सूचनाओं के मामले में भारी पड़ता है .

बुजुर्ग पीढ़ी के पास नयी पीढ़ी पर हावी होने के अमूनन दो तरीके होते थे ( शब्दों पर गौर करें "थे")

1 . बुजुर्ग पीढ़ी ज्यादा उम्रदराज है और इस नाते ज्यादा अनुभवी है .

2 . बुजुर्ग पीढ़ी ज्यादा कमाती है या उसने ज्यादा जोड़ रखा है .

आइये उनके दोनों तर्कों को समझ लेवे.

1 जैसाकि मैंने कहा है आज के ज़माने में ये कहना कि उम्र ज्यादा होने से आप ज्यादा जानकार है सत्य नहीं है ,माउस के एक क्लिक पर आपने अपनी पूरी ज़िन्दगी में जो जानकारी इक्कठा की है वो सारी बल्कि उससे ज्यादा जानकारी हाज़िर हो जाती है ! और उम्र होने के नाते आप अनुभवी है तो मैं कहना चाहूंगा कि अनुभव बिलकुल व्यक्तिगत क्रिया है - बिलकुल आस्था की तरह कि सालो-साल पूजा करनेवाला मंदिर का पुजारी कोरा ही रह जाता है और कभी कभार मंदिर के सामने से गुजरनेवाला भक्त प्रभु को पा जाता है . 55 साल का SHO जिन धाराओं के बारे में नहीं जानता उसी का 18 साल का लड़का नेट पर बैठता है और उन धाराओं का पूरा ब्यौरा बता देता है .

2 . 18 साल का लड़का एक START UP शुरू करता है लाइक माइंडेड ग्रुप्स और आधुनिक साधनों के दम पर डेढ़ से दो साल में अपने पिता से ज्यादा कमा कर अपनी काबिलियत साबित कर देता है .

बुजुर्ग पीढ़ी अपने अनुभव और कमाई के दम पर नयी पीढ़ी पर अगर हावी होना चाहती है तो निश्चित ही वो एक गलत राह पर है और यही शायद पारिवारिक विघटन और पिता-पुत्र के बीच के तनाव की सबसे बड़ी वजह है . भौतिकता के दम पर नयी पीढ़ी पर हावी होना आज संभव नहीं है क्योंकि आजका युग सूचना-प्रधान युग है और इस युग में विजेता वही है जिसने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि उसके पास ज्यादा सटीक और शीघ्र सूचना पहुंचे और वो इन सुचनों का प्रयोग अपने हित में कर सके .और ये व्यवस्था कोई भी खुले दिमाग का समझदार टेक्नोसेवी कर सकता है .

नयी पीढ़ी पर बुजुर्ग पीढ़ी सिर्फ अपने प्रेम ,अपने स्नेह,अपने वात्सल्य के दम पर हावी हो सकती है और मजे की बात ये है कि ये भावनाए हक़ नहीं मांगती ये सिर्फ देना जानती है !!
- सुबोध

Saturday, October 18, 2014

गद्य

उस से मेरी चंद दिनों की मुलाकात , साथ उठना, साथ बैठना , घुल-मिल कर बातें करना ,हंसी -मजाक करना इतना नागवार क्यों गुजर रहा है दुनिया पर कि मुझसे उसका सम्बन्ध क्या है ,पुछा जा रहा है !
ये दुनिया सहज होकर क्यों नहीं सोचती ,इसे क्या बीमारी है कि हर साधारण हरकत को कोम्प्लिकेटेड तरीके से सोचे-समझे !
क्या किसी से बात करने,हंसी-मजाक करने के लिए सम्बन्ध होना ज़रूरी है ?
क्या इतना काफी नहीं है कि मैं भी इंसान हूँ और वो भी इंसान है ,एक इंसान से दूसरे इंसान का क्या इंसानियत का सम्बन्ध नहीं हो सकता ?
बिलकुल वैसा ही सम्बन्ध कि किसी अंधे को आपने हाथ पकड़ कर सड़क पार करवाई ,किसी अपंग की कोई मदद की .
अपंगता क्या सिर्फ शारीरिक होती है मानसिक नहीं ?
अकेलापन दुनिया की सबसे खतरनाक पहेली है और इसका शिकार दुनिया का सबसे बड़ा अपंग .
अगर किसी मानसिक अपंग की अपंगता दूर करने के लिए मैंने उसका अकेलापन दूर कर दिया ,उसके साथ कुछ पल बिता लिए तो क्या गलत किया .
और यहाँ दुनिया सम्बन्धो की तलाश कर रही है !!!!
- सुबोध

Friday, October 17, 2014

गद्य

बड़ी अजीब है ख्वाइश पहचान की , घर-बाहर ,आस-पास,गाँव-शहर ,दूर-नज़दीक,देश-दुनिया हर तरफ हर शख्श एक जंग लड़ रहा है . अपनी पहचान की जंग !

कुछ अपनी पहचान दूसरों को उधार देकर बड़े ,बहुत बड़े बन जाते है , कुछ लोग दूसरों की पहचान उधार लेकर खुद को एक नाम देते है ,खुद की नज़र में बड़े बन जाते है उन्हें मुगालता ये भी होता है कि हम किंग मेकर है .

कुछ लोग चंद सिक्कों में खुद के हुनर को बेच देते है और उस हुनर को खरीददार की पहचान करार देते है , कुछ दूसरों की मेहनत को अपनी पहचान बना लेते है .

कुछ पैसों के बदले में या किसी दबाब में दूसरों को पहचानना बंद कर देते है और कुछ अनजान की पहचान भी क़ुबूल करते है .
क्या निराले खेल है पहचान के !

कुछ पहचान के लिए अजीब से कपडे पहनते है ,कुछ अजीब सी हरकतें करते है ,कुछ गाने का रिकॉर्ड बनाते है ,कुछ नाचने का ,कुछ बार -बार चुनाव लड़ने का ,कोई पढ़ने का !!जितने शख्स उतने तरीके .

चाहता हर कोई है कि मेरी पहचान हो ,तरीका चाहे अजीब हो या फिर ऐसा कुछ करना पड़े कि लोग कहे वाह भाई,वाह या गज़ब या बहुत खूब !!!

जंग पहचान की जो है !!!


सुबोध - अक्टूबर ३, २०१४









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अन्जान लोगों को की हुई मदद को उसने इस तरह लौटाया
कि मुसीबत के वक्त मेरे साथ जो खड़ा था उसे मैं ठीक से जानता भी नहीं था
शायद इसे ही उसकी रहमत कहते है ,शायद यही इंसानियत होती है !!!
सुबोध - २४ सितम्बर, २०१४



--------------


इस मुकाबले में
तुम्हे आगे बढ़ने की जगह दी है
और मैं पीछे हटा हूँ
इसका मतलब ये नहीं है कि
मैं हार रहा हूँ
मैं तो सिर्फ उस पोजीशन में आ रहा हूँ
जहाँ से तुम पर निशाना साध सकूँ
और विजेता बन सकूँ !!!!
सुबोध- २३ सितम्बर, २०१४

Thursday, October 16, 2014

तुम आओगे ..



वो लफ्ज़
जो तुम्हारी आँखों ने कहे थे मुझसे
आज भी सहेज रखे है मैंने
वो लफ्ज़
न दिखते है न मिटते है
एक फाँस की तरह सीने में चुभते है

तब जब
आँखों की कोरों से बहते अश्क
पोंछती है उंगलियाँ
एक दर्द अजीब सा
उँगलियों की पोरों में समां जाता है

वो लफ्ज़
जो कहे तुम्हारी आँखों ने
और मैंने उन लफ़्ज़ों से
बुन लिए सपने
और मेरे सपने
आज भी उघड़े बदन
तेरी बाट जोहते है
सुबह आरती में शीश नवाते है
और साँझ को संध्या करते है .

वो लफ्ज़
जिनमे तेरे कजरे की महक है
अँधेरे में दिये की मानिंद
रौशन है मेरी ज़िन्दगी में
मुझे एतबार है
तेरी आँखों की ज़ुबान पर
उस चाहत पर
जहाँ शरीर पीछे छूट जाते है
मन मिल जाते है
तुम आओगे ..तुम आओगे ...तुम आओगे ...

सुबोध - ११ अक्टूबर,२०१४

गद्य

बड़ी अजीब है ख्वाइश पहचान की , घर-बाहर ,आस-पास,गाँव-शहर ,दूर-नज़दीक,देश-दुनिया हर तरफ हर शख्श एक जंग लड़ रहा है . अपनी पहचान की जंग !

कुछ अपनी पहचान दूसरों को उधार देकर बड़े ,बहुत बड़े बन जाते है , कुछ लोग दूसरों की पहचान उधार लेकर खुद को एक नाम देते है ,खुद की नज़र में बड़े बन जाते है उन्हें मुगालता ये भी होता है कि हम किंग मेकर है .

कुछ लोग चंद सिक्कों में खुद के हुनर को बेच देते है और उस हुनर को खरीददार की पहचान करार देते है , कुछ दूसरों की मेहनत को अपनी पहचान बना लेते है .

कुछ पैसों के बदले में या किसी दबाब में दूसरों को पहचानना बंद कर देते है और कुछ अनजान की पहचान भी क़ुबूल करते है .
क्या निराले खेल है पहचान के !

कुछ पहचान के लिए अजीब से कपडे पहनते है ,कुछ अजीब सी हरकतें करते है ,कुछ गाने का रिकॉर्ड बनाते है ,कुछ नाचने का ,कुछ बार -बार चुनाव लड़ने का ,कोई पढ़ने का !!जितने शख्स उतने तरीके .

चाहता हर कोई है कि मेरी पहचान हो ,तरीका चाहे अजीब हो या फिर ऐसा कुछ करना पड़े कि लोग कहे वाह भाई,वाह या गज़ब या बहुत खूब !!!

जंग पहचान की जो है !!!
सुबोध - अक्टूबर ३, २०१४

गद्य

अन्जान लोगों को की हुई मदद को उसने इस तरह लौटाया
कि मुसीबत के वक्त मेरे साथ जो खड़ा था उसे मैं ठीक से जानता भी नहीं था
शायद इसे ही उसकी रहमत कहते है ,शायद यही इंसानियत होती है !!!
सुबोध - २४ सितम्बर, २०१४

Tuesday, October 14, 2014

गद्य

इस मुकाबले में
तुम्हे आगे बढ़ने की जगह दी है
और मैं पीछे हटा हूँ
इसका मतलब ये नहीं है कि
मैं हार रहा हूँ
मैं तो सिर्फ उस पोजीशन में आ रहा हूँ
जहाँ से तुम पर निशाना साध सकूँ
और विजेता बन सकूँ !!!!
सुबोध- २३ सितम्बर, २०१४

Monday, October 13, 2014

गद्य

जो सपने आपकी नींद उड़ा देते है और आपकी बेहतरीन जानकारी के अनुसार वो सही है तो उनकी आवाज़ सुनिए और उस रास्ते पर बढ़िए जो रास्ता वो बता रहे है .
हो सकता है आपको पहली बार में सफलता न मिले तो उस अस्थायी असफलता की परवाह मत कीजिये क्योंकि सफलता के महल तक पहुंचने के लिए हमेशा उस दरवाज़े से गुजरना पड़ता है जिस पर "असफलता" लिखा हुआ होता है. आपकी ताकत, आपका हौंसला हमेशा असफलताओं से बड़ा होता है !!
और हो सकता है जो काम आप कर रहे है उसके लिए आपको आलोचना सहन करनी पड़े तो उन आलोचकों की परवाह मत कीजिये जिन्होंने हर महान आदमी को अपनी कटुता से आहत किया होता है , अगर वो महान शख़्शियतें उनकी आलोचना सुनकर रुक जाती तो" महान " शब्द ही नहीं होता !
खुद पर भरोसा रखिये और अपने उस ख्वाब को साकार कीजिये जिसके लिए आपके अंदर ज्वाला धधक रही है !!!!
सुबोध- २३ सितम्बर,२०१४

Friday, October 10, 2014

113 . सही या गलत -निर्णय आपका !

अमीर यु हीं अमीर नहीं होता ( ३ )

 

आसान नहीं है

दायरे को तोडना
जो आरामदायक  क्षेत्र (comfort zone) है तुम्हारा
तब्दिल हो गया है आदत में .
-
चाहत तुम्हारी अमीर बनने की
कुछ नहीं भिखारी स्तर के अतिरिक्त .

-
चुनाव तुम्हारा अमीर बनने का
शामिल किये है अपने में
शर्तों का पुलिंदा ,
बेहतर है चाहत से
लेकिन सर्वश्रेष्ठ नहीं
क्योंकि तुम्हारी शर्तें
सुरक्षा देगी आदतों को .

-
समर्पण तुम्हारा अमीर बनने का
बनाएगा तुम्हें अमीर
क्योंकि यहाँ तुम कर रहे हो वो सब
जो ज़रूरी है अमीर बनने के लिए.
त्याग सारे आरामदायक   क्षेत्र का
बिना रुके,बिना थके.
केंद्रित प्रयास,
ज़ज़्बा सब कुछ झोंक देने का,
विशेषज्ञता आत्मविश्वास से भरी,
मानसिकता अमीरों वाली,
कोई अगर,कोई मगर
कोई बहाना, कोई शायद नहीं .
सिर्फ समर्पण,
और समर्पण
और विकल्परहित समर्पण
ज़िन्दगी के आखिरी  लम्हों तक....


सुबोध- मई २९, २०१४ 

www.saralservices.com

( one sim all recharge , MLM )

 

 

 

 

Saturday, October 4, 2014

गद्य

बड़ी अजीब है ख्वाइश पहचान की , घर-बाहर ,आस-पास,गाँव-शहर ,दूर-नज़दीक,देश-दुनिया हर तरफ हर शख्श एक जंग लड़ रहा है . अपनी पहचान की जंग !

कुछ अपनी पहचान दूसरों को उधार देकर बड़े ,बहुत बड़े बन जाते है , कुछ लोग दूसरों की पहचान उधार लेकर खुद को एक नाम देते है ,खुद की नज़र में बड़े बन जाते है उन्हें मुगालता ये भी होता है कि हम किंग मेकर है .

कुछ लोग चंद सिक्कों में खुद के हुनर को बेच देते है और उस हुनर को खरीददार की पहचान करार देते है , कुछ दूसरों की मेहनत को अपनी पहचान बना लेते है .

कुछ पैसों के बदले में या किसी दबाब में दूसरों को पहचानना बंद कर देते है और कुछ अनजान की पहचान भी क़ुबूल करते है .
क्या निराले खेल है पहचान के !

कुछ पहचान के लिए अजीब से कपडे पहनते है ,कुछ अजीब सी हरकतें करते है ,कुछ गाने का रिकॉर्ड बनाते है ,कुछ नाचने का ,कुछ बार -बार चुनाव लड़ने का ,कोई पढ़ने का !!जितने शख्स उतने तरीके .

चाहता हर कोई है कि मेरी पहचान हो ,तरीका चाहे अजीब हो या फिर ऐसा कुछ करना पड़े कि लोग कहे वाह भाई,वाह या गज़ब या बहुत खूब !!!

जंग पहचान की जो है !!!
सुबोध - अक्टूबर ३, २०१४

Thursday, October 2, 2014

बापू



जहाँ बादल इन्द्रधनुष बोते थे
वहां अब संगीनें बोई जाती है
मासूम बच्चे गुड्डे-गुड़िया से खेलने वाले
हथगोलों से खेलते है
पहाड़ी नदियों से बहा है इतना लहू
कि वहां के वाशिंदे
पानी की जगह लहू से मुँह धोते है
खेतों में खलिहानों में
सूनापन छाया है
मरे हुए ढोर-डांगर पड़े है
मोहब्बत का गीत गानेवाला मुल्क मेरा
किसी बुरी खबर पर रो भी नहीं पाता
कि एक हादसा और चला आता है
बापू, क्या यही
तुम्हारे सपनो का देश है ?

आज़ादी की कीमत में
तुमने तो हमें गुलामी खरीद दी
मालिकों के चेहरे भर बदले है
नीयत में तो खोट पहले से ज्यादा है
गावों से उसकी आत्मा निकाल कर
शहर के फूटपाथ पर
लावारिस बना कर लिटा दी गई है
गावों में भारत बसता है
अच्छा मजाक बन गया है
यहाँ मन की शांति
सोने की चिड़िया बन गई है
बापू, क्या यही
तुम्हारे सपनो का देश है ?

-सुबोध - अक्टूबर १,१९८५