Thursday, October 2, 2014

बापू



जहाँ बादल इन्द्रधनुष बोते थे
वहां अब संगीनें बोई जाती है
मासूम बच्चे गुड्डे-गुड़िया से खेलने वाले
हथगोलों से खेलते है
पहाड़ी नदियों से बहा है इतना लहू
कि वहां के वाशिंदे
पानी की जगह लहू से मुँह धोते है
खेतों में खलिहानों में
सूनापन छाया है
मरे हुए ढोर-डांगर पड़े है
मोहब्बत का गीत गानेवाला मुल्क मेरा
किसी बुरी खबर पर रो भी नहीं पाता
कि एक हादसा और चला आता है
बापू, क्या यही
तुम्हारे सपनो का देश है ?

आज़ादी की कीमत में
तुमने तो हमें गुलामी खरीद दी
मालिकों के चेहरे भर बदले है
नीयत में तो खोट पहले से ज्यादा है
गावों से उसकी आत्मा निकाल कर
शहर के फूटपाथ पर
लावारिस बना कर लिटा दी गई है
गावों में भारत बसता है
अच्छा मजाक बन गया है
यहाँ मन की शांति
सोने की चिड़िया बन गई है
बापू, क्या यही
तुम्हारे सपनो का देश है ?

-सुबोध - अक्टूबर १,१९८५

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