Saturday, November 22, 2014

27 . ज़िंदगी – एक नज़रिया



गलतियां हर इंसान करता है - अगर वो ज़िंदा है तो !

लेकिन फर्क इससे पड़ता है कि आपने उन गलतियों पर प्रतिक्रिया क्या और कैसे की है ,आपने गलती होने के बाद अपना माथा पीटा है या उन गलतियों से सबक लिया है .आपने आगे से कोई गलती न हो जाए इस डर से चलना ही बंद कर दिया है या बार-बार गलती कर कर, गिर-गिर कर साईकिल चलाना सीख लिया है .

अगर आपने साईकिल चलाना सीख लिया है तो जाहिर सी बात है उन दिनों आपके अंदर कोई एक आग जल रही थी ,कोई एक लगन लगी थी जो बार-बार गिरने ,चोट लगने के डर से ज्यादा ताकतवर थी . और अगर आपने नहीं सीखा है तो इसकी वजह ये नहीं थी कि साइकिल लम्बी थी या पेडल तक आपके पैर नहीं पहुँच पा रहे थे या पीछे से पकड़ने वाला सही नहीं था या आपको सिखानेवाला कोई भी नहीं था बल्कि असली वजह ये थी कि आपमें वो आग ही नहीं थी ,वो लगन ही नहीं थी जो आपको साइकिल चलाना सिखवा दे .

तीन साल पुरानी घटना याद आती है ,रात को एक बजे ठक -ठक  की आवाज़ आ रही थी मैंने जानकारी की तो पता चला कपूर साहब का लड़का क्रिकेट सीख रहा है ,रात को एक बजे अपने किसी दोस्त के साथ वो डिफेन्स की प्रैक्टिस कर रहा था ,इस साल वो अपने स्टेट की तरफ से खेल रहा है -इसे आग कहते है ,इसे लगन कहते है ,इसे ज़ज़्बा कहते है - उसने अपनी कमी देखी, समझी कि उसकी बैटिंग कमजोर है ,बैटिंग करते वक्त वो बार-बार गलती कर जाता है ,कंसंट्रेट नहीं कर पाता है -उसने अपनी गलती को समझा और उसे दूर किया ,अपनी गलतियों पर उसकी प्रतिक्रिया  सकारात्मक थी लिहाजा एक आग उसके अंदर पैदा हुई और उसने अपने घरवालों को गौरवान्वित किया .

जिन दिनों आपने साइकिल चलाना सीखा था उन दिनों वाली आग , उन दिनों वाली लगन आपमें आज भी ज़िंदा है ?

अगर है तो गलतियाँ आपका इंतज़ार कर रही है - सफलता भी !!

और अगर नहीं है तो अपने ख्वाबों को इतना बड़ा कीजिये कि आपकी रातों की नींद उड़ जाए और आप अपने किसी दोस्त के साथ रात को एक बजे डिफेन्स सीखने के लिए ठक -ठक  करने लगे !!! ( कृपया पड़ोसियों के प्रति विनम्र रहे और उनकी सुविधा का ख्याल रखे ! )

सुबोध - २२ नवंबर,२०१४

Wednesday, November 19, 2014

26 . ज़िंदगी – एक नज़रिया

एक दिन तुम्हारे चेहरे की ख़ूबसूरती पुरानी पड़ जाएगी ,तुम्हारा कसा हुआ जिस्म झुर्रियों से भर जायेगा , चमड़ी का कसाव, उसकी चमक अतीत की बात हो जाएगी , घनी लहराती जुल्फे चांदी के तारों में बदल जाएगी ,तुम्हारी रौबीली खनकदार आवाज़ लड़खड़ाने लगेगी ,वो कदम जिनसे धरती हिलती है उठाये न उठेंगे , वो हाथ जो कइयों के लिए सहारा बनते है किसी सहारे की तलाश करेंगे - सब के साथ ऐसा होता है तुम्हारे साथ भी होगा लेकिन तुम एक भ्रम में जी रहे हो जैसे जवानी का अमृत पीकर आये हो !!

तुम्हारी जवानी तुम्हारे बचपन को कुचलकर आई है तो कोई तुम्हारी जवानी को भी कुचलेगा ,स्थायी कुछ भी नहीं होता और तुम हो कि अपनी जवानी के जोश में ज़माने को अपनी मुट्ठी में करने चले हो !!

बंधु,जमाना तो मुट्ठी में भिंची हुई रेत है जितना कसोगे तुम्हारी पकड़ से फिसलता जायेगा . आखिर में चंद जर्रे तुम्हारी हथेली से चिपके रह जायेंगे जो तुम्हारी अच्छाइयां ,तुम्हारी बुराइयां ,तुम्हारी खासियतें ,तुम्हारी कमियां तुम्हे याद दिलाएंगे .

मैं नहीं कहता कि तुम ये करो या वो करो - कोई उपदेश कोई नसीहत नहीं - निर्णय तुम्हारा है जो भी तुम करना चाहो करो क्योंकि जरूरी नहीं मेरा सच तुम्हारा भी सच हो - सच तो बिलकुल व्यक्तिगत होता है . मेरा सच तुम्हारा झूठ हो सकता है और तुम्हारा सच मेरा झूठ . मेरी रोशनी तुम्हारे लिए अंधकार हो सकती है या तुम्हारी रोशनी से मेरी आँखे चुँधिया सकती है . फर्क मानसिकता का हो सकता है ,वास्तविकता का हो सकता है .

हो सकता है मेरी निगाहों में मेरा बुढ़ापा पीड़ादायक हो जबकि तुम्हारी निगाहों में जन्नत की पहली सीढ़ी - सुकून के लम्हों की शुरुआत ; निर्भर इस पर है कि मैंने या तुमने अपनी जवानी के दिनों में अपने बुढ़ापे के लिए तैयारी कितनी और कैसी की है !!!
सुबोध- १९ नवंबर, २०१४

Tuesday, November 18, 2014

25 . ज़िंदगी – एक नज़रिया

कल का मेरा सच आज सच नहीं रहा ,जब मैं उस सच को आज झूठ बताता हूँ तो तुम आश्चर्य करते हो !

आज जिसे मैं सच मान रहा हूँ हो सकता है कल मैं उसे सच नहीं मानूं हो सकता है तुम मेरी बात नहीं समझ पाओ और फिर आश्चर्य करो.

बेहतर है तुम मेरे कल के सच को जो आज झूठ बन गया है , सच और झूठ के शब्दों में मत उलझाओ बल्कि उन तर्कों को सुनो और समझो जो मैंने तब दिए थे या जो अब दे रहा हूँ ,अगर मैं दोषी हूँ तो दोषी तुम भी हो जिसने मेरे तर्क सुने और माने और उन तर्कों को सच या झूठ का नाम दे दिया .

ज़माने की रफ़्तार इतनी बढ़ गई है कि कल के सच या झूठ आज सच या झूठ नहीं रहे , सारी धारणाये बदल गई ,सारे तर्क बदल गए .

दो सौ साल पहले का सच था शांति से बिना चीखे-चिल्लाये एक दुसरे की बात सुनना हो तो दोनों को आस-पास होना चाहिए लेकिन आज का सच है सात समुन्दर पार का इंसान भी बिना चीखे-चिल्लाये शांति से एक दूसरे की बात सुन सकता है सिर्फ उसे मोबाइल का इस्तेमाल करना है . एक अविष्कार कई सच झूठ बना देता है और कई झूठ सच हो जाते है .

सौ साल पहले महाभारत का संजय जो कुरुक्षेत्र का आँखों देखा हाल धृतराष्ट्र को बताता है कपोल कल्पना कहलाता था किस्से-कहानियों की बात था लेकिन आज तुम टी.व्ही पर आँखों देखा हाल देखते हो और स्वीकार करते हो : कल का झूठ आज सच बन गया है ".

दो सौ साल पहले औद्योगिक युग में " पढोगे-लिखोगे बनोगे नवाब " वाला मुहावरा आज क्या वही अर्थ रखता है ? तब नौकरी मिलना आसान था और आज नौकरी मिलना और नौकरी बने रहना मुश्किल है , कुछ सच या झूठ बदल गए है और कुछ बदलने के बहुत करीब है .

यह नया युग है जहाँ नए सच गढ़े जायेंगे और कल के सच खंडित किये जायेंगे और यही झूठ के साथ भी होगा , कुछ झूठ गढ़े जायेंगे और कुछ खंडित किये जाएंगे .

और भविष्य में -आने वाले सालों में, जब आज अतीत बन जायेगा यह प्रक्रिया तब भी जारी रहेगी.

हर युग के अपने सच होते है और अपने झूठ जो अगले युग में बेमानी हो जाते है ,वो युग अपने सच और अपने झूठ खुद गढ़ता है .

तो मेरे आज के सच को या झूठ को तुम सच या झूठ आज का मानो कल का पता नहीं कल वो रहेगा या बदल जायेगा !!!!

महत्त्वपूर्ण सच नहीं है और न हीं झूठ है बल्कि महत्त्वपूर्ण तुम्हारा मेरे तर्कों को मानना या नकारना है !!!!
- सुबोध

Saturday, November 15, 2014

एक कोशिश और

मुझे याद नहीं
कितनी बार गिरा हूँ मैं
कितने ज़ख्म बने मेरे जिस्म पर
कितनी बार दिल चीरती हँसी
हँसी गई मुझ पर
मगर रूका नहीं मैं
गिर-गिर कर उठा मैं
झाड़ी अपनी धूल

मुस्कुराया हल्का सा
कसी अपनी मुट्ठियाँ
और डाल कर आँखों में आँखे
कहा ज़िन्दगी से -

मैंने हार से बचने का
एक तरीका और सीखा है ,
सफलता इंतज़ार कर रही है मेरा
आ, एक कोशिश और करें !


- सुबोध १३ नवंबर, २०१४

Saturday, November 8, 2014

कविता

उन्हें मुगालता ये हो गया
कि वे कवि हो गए
मैं उनको पढता हूँ
और हँसता हूँ !
अंदर से कोई कहता है
तुम कवि नाम के प्राणी
सिर्फ दूसरों की टांग खींचते हो
अनगढ़ शब्दों को

वाक्य विन्यासों को
पढ़ते हो ,देखते हो
व्याकरण की शुद्धि
जांचते हो, चर्चा करते हो
नाक मुंह सिकोड़ते हो
भावों को नहीं पढ़ते
दिल की आवाज़ नहीं सुनते
तुम जैसे कवि
तालाब के मेंढक होते है
कविता के नाम पर धब्बा होते है
क्या कविता सिर्फ शब्दों का जोड़-तोड़ है
तालियों की गड़गड़ाहट है
मूक संवेदना,
मूक भाव,
लडखडाती अभिव्यक्ति
लूले-लंगड़े,आधे-अधूरे शब्द
क्या किसी की कविता नहीं हो सकते ?
सोचना - सोचकर जवाब देना -
अन्यथा बेड़ियों में बंधी हुई
संस्कारों में जकड़ी हुई
तुम्हारी कविता
नए युग की आंधी में
दम तोड़ देगी
सिर्फ किताबों की शोभा बढ़ाएगी
तालिया पीटने के काम आएँगी
आम आदमी से दूर हो जाएगी
अँधे युग में
अँधो को लुभाएगी
पागलों को हँसाने और
गूंगे-बहरों से तालियां
पिटवाने के काम आएगी !!
सुबोध- ८ नवंबर ,२०१४

Friday, November 7, 2014

गद्य

सिर्फ एक प्रचलित मुहावरा है जिसे जन समर्थन प्राप्त है और वो भावनाओं से ओत -प्रोत है इसलिए वो सही नहीं हो जाता .

मैं किसी की भावनाएं आहत नहीं करना चाहता सिर्फ मेरा एक पक्ष रख रहा हूँ ,हो सकता है आप इससे सहमत न हो तो कृपया अपना पक्ष रखे -तर्क और शालीनता के साथ जिस तरह से मैं रख रहा हूँ !

लोग माँ-बाप को भगवान से भी ऊपर दर्ज़ा देते है - उनकी निगाह में सुख-दुःख भगवान उनके भाग्य में लिखता है ,जबकि माँ-बाप सिर्फ सुख ही लिखते है !!

फेसबुक पर डालने और लाइक लेने में इसका मुकाबला नहीं है - बिलकुल किसी लोकप्रिय टॉपिक की तरह !!

आइये थोड़ा इसका विश्लेषण करे !!

क्या वाकई भाग्य भगवान लिखता है ?

या इंसान के किये गए कर्म ही उसे सुख या दुःख देते है , सफलता और असफलता भगवान ने गढ़ी है या इंसान ने ?

दूसरा वाक्य माँ-बाप भाग्य में सिर्फ सुख ही लिखते है,क्या वाकई ?

मेरे कॉलोनी में रहने वाले रहीम भाई के घर पिछले महीने आठवाँ बच्चा पैदा हुआ है . रहीम भाई खुद साईकिल के पंचर बनाने का काम करते है उनकी शरीके हयात सबीना भाभी लाख की चूड़ियाँ बनाने का काम करती है ,ज़रुरत पर कॉलोनी वाले उनसे घरों में भी साधारण सी मजदूरी पर काम करवा लेते है . वाकई रहीम भाई और सबीना भाभी ने अपने बच्चे के भाग्य में सिर्फ सुख ही लिखा है !

मध्यम वर्गीय कपूर साहब के सिर्फ दो बच्चे है एक लड़का और एक लड़की , अगर डिटेल में उनसे बात की जाए तो उन्हें ये नहीं पता कि उनके उन्नीस वर्षीय बेटे का भविष्य क्या है ,वो जो पढाई कर रहा है आने वाले भविष्य में उससे क्या हासिल होगा. वे अपने बिज़नेस में इतने व्यस्त है कि उन्हें ढंग से अपने बेटे के साथ बैठे हुए हफ्ता-हफ्ता गुजर जाता है .

अधिकांश परिवारों में बच्चे की आमद बिना किसी ठोस प्लानिंग के होती है ,जहाँ माँ-बाप सब कुछ उपरवाले के भरोसे छोड़ देते है , बच्चे के ग्रेजुएट होने तक भी माँ-बाप को पता नहीं होता कि बेटा ज़िन्दगी किस तरह गुजारेगा, जीवनयापन के क्या साधन होंगे और फिर भी माँ-बाप नसीब में सिर्फ सुख ही लिखते है !!

बच्चे पैदा करना और उन्हें संस्कारों की, ज़िदगी की समझ देने की बजाय आदर्शों की खुराक दे दी जाती है ,रटे-रटाये जुमले याद करवा दिए जाते है कि भाग्य भगवान लिखता है , सुख और दुःख तो भगवान के बनाये हुए रात और दिन जैसे है ,माँ-बाप बेहतर होते है ,यही बेहतरी अधिकांश सामूहिक परिवारों में शादी के दुसरे-तीसरे साल बिखर जाती है . और भगवान और भाग्य के नाम पर उनको गैर-जिम्मेदार बनाया जाता है !!

कृपया नई पीढ़ी को इन बेवकूफी भरे जुमलों से ना बहकाये उसे नए ज़माने की नई हवा में सांस लेने दीजिये ,नए तरीके से चीज़ों को सोचना और समझना सीखने दीजिये .

मुझे पता है मैंने एक विवादित मुद्दे को उठाया है हो सकता है कुछ को ये नागवार गुजरे उनसे आग्रह सिर्फ इतना है कि भावुकता भरा जवाब न देकर अगर भौतिकता भरा जवाब दे तो बेहतर होगा .
- सुबोध








Thursday, November 6, 2014

गद्य


कुछ ऐसे शानदार दोस्त जिनके बारे में कल्पना तक न की थी कि ज़िन्दगी में कभी बिछुड़ जाएंगे, होली दिवाली भी याद न करे तो उनके ख्याल से ही सारी खुशियां दर्द में बदल जाती है- सब कुछ पाकर भी कुछ भी न बचा पाने का दर्द , संबंधों को अपनी आँखों के सामने मरते हुए देखने का दर्द , जानी पहचानी रूह में उतरती आवाज़ों को खो देने का दर्द !!

उफ़ ! ये दर्द ,ये खामोशी ,ये चाहत ,ये कशमकश , ये लम्हों को जीने की आग सिर्फ मेरे सीने में धड़क रही है या उस तरफ भी कोई तड़फ ज़िंदा है ?

क्या मैं मेरे गुरुर को,मेरे अहंकार को ,मेरी ईगो को ,मेरे घमंड को अपनी पूरी नकारात्मकता के साथ छोड़कर मोबाइल पर उसके नंबर डायल कर सकता हूँ?

अगर " हाँ " तो करता क्यों नहीं ?

अगर " नहीं " तो झूठे विलाप , झूठे प्रपंच और एक नकाब को क्यों ढ़ो रहा हूँ ?

हे मेरे अराध्य ! मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं किसी और में दोष न देखुं और अपने दोष स्वीकार कर सकूँ ,सुधार सकूँ !!!!
- सुबोध , २५ अक्टूबर, २०१४





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 तुम्हारी आज की बर्बादी कल किये गए कार्यों का परिणाम है ,तुम्हारी कामचोरी ,तुम्हारे गलत निर्णय ,आधी-अधूरी सोच और सबसे बड़ा एक गलत चुनाव जो परिणाम दे सकता है वही तुम्हे मिला है ! अब तो जागो , अब तो समझो,ये मत कहो दिवाली ख़राब थी ,दिवाली ख़राब नहीं थी बल्कि कुछ और ख़राब था ; उसे समझो ,गलती स्वीकार करो ,जिम्मेदारी लो और अपनी अगली दिवाली खूबसूरत करो !
मेरी निगाह में इससे बड़ी शुभकामना तुम्हारे लिए नहीं हो सकती !!!
सुबोध- २४ अक्टूबर,२०१४






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विश्वासघात वहां होता है जहाँ विश्वास होता है ,दुश्मनो के साथ पता होता है कि वार हो सकता है तो हमारी मानसिकता जाने-अनजाने चौकन्नी रहती है लेकिन अपनों के बीच हम खुद को सेफ महसूस करते है और सुरक्षा के प्रति लापरवाह हो जाते है और यही हमारे लिए घातक होती है.
- सुबोध

Monday, November 3, 2014

गद्य

मध्यमवर्गीय बुजुर्ग पीढ़ी औद्योगिक युग के संस्कार और तकरीबन मज़दूरों वाली स्थिति से गुजरी है और वो अपनी पीड़ा आज की पीढ़ी को देना चाहती है कि ज़िन्दगी आसान नहीं है ,बड़े पापड़ बेलने पड़ते है,बड़ी मेहनत करनी पड़ती है ,दिन-रात एक करते है तो दो वक्त की रोटी जुटा पाते है .सारी दुश्वारियां,सारी मुसीबतें उनकी जुबां पर होती है लेकिन वे शायद समझ नहीं पाते है कि आज का युग पहलेवाला नहीं है ,आज बैलगाड़ी की जगह गाड़ियां आ गई है ,लालटेन की रोशनी में टिमटिमानेवाली रातें रोशनी से जगमगाती है .उनका वक़्त ,उनकी सोच,उनके साधन सब कुछ बदल गया है ,आज सूचना क्रांति के युग में पैसे पेड़ पर नहीं लगते वाली कहावत गलत हो गई है अब इस युग में पैसे पेड़ पर लगते है ,बस लगाने की काबिलियत और ज़ज्बा होना चाहिए .
मानवीय मूल्य उस युग में भी कीमती थे लेकिन उस युग में ईमानदारी और संस्कारों वाली जनरेशन का आपसी कम्पीटीशन होने की वजह से सफलता के उतने मौके नहीं थे ,लेकिन आज की पीढ़ी में ज्यादातर मूल्यहीन और क्विक फिक्स वाली मानसिकता के लोग होने की वजह से सफलता के चांस बहुत-बहुत ज्यादा है बशर्ते आप टुच्ची मानसिकता वाले न हो और अपने उद्देश्यों के लिए समर्पित हो !!
- सुबोध