Wednesday, November 19, 2014

26 . ज़िंदगी – एक नज़रिया

एक दिन तुम्हारे चेहरे की ख़ूबसूरती पुरानी पड़ जाएगी ,तुम्हारा कसा हुआ जिस्म झुर्रियों से भर जायेगा , चमड़ी का कसाव, उसकी चमक अतीत की बात हो जाएगी , घनी लहराती जुल्फे चांदी के तारों में बदल जाएगी ,तुम्हारी रौबीली खनकदार आवाज़ लड़खड़ाने लगेगी ,वो कदम जिनसे धरती हिलती है उठाये न उठेंगे , वो हाथ जो कइयों के लिए सहारा बनते है किसी सहारे की तलाश करेंगे - सब के साथ ऐसा होता है तुम्हारे साथ भी होगा लेकिन तुम एक भ्रम में जी रहे हो जैसे जवानी का अमृत पीकर आये हो !!

तुम्हारी जवानी तुम्हारे बचपन को कुचलकर आई है तो कोई तुम्हारी जवानी को भी कुचलेगा ,स्थायी कुछ भी नहीं होता और तुम हो कि अपनी जवानी के जोश में ज़माने को अपनी मुट्ठी में करने चले हो !!

बंधु,जमाना तो मुट्ठी में भिंची हुई रेत है जितना कसोगे तुम्हारी पकड़ से फिसलता जायेगा . आखिर में चंद जर्रे तुम्हारी हथेली से चिपके रह जायेंगे जो तुम्हारी अच्छाइयां ,तुम्हारी बुराइयां ,तुम्हारी खासियतें ,तुम्हारी कमियां तुम्हे याद दिलाएंगे .

मैं नहीं कहता कि तुम ये करो या वो करो - कोई उपदेश कोई नसीहत नहीं - निर्णय तुम्हारा है जो भी तुम करना चाहो करो क्योंकि जरूरी नहीं मेरा सच तुम्हारा भी सच हो - सच तो बिलकुल व्यक्तिगत होता है . मेरा सच तुम्हारा झूठ हो सकता है और तुम्हारा सच मेरा झूठ . मेरी रोशनी तुम्हारे लिए अंधकार हो सकती है या तुम्हारी रोशनी से मेरी आँखे चुँधिया सकती है . फर्क मानसिकता का हो सकता है ,वास्तविकता का हो सकता है .

हो सकता है मेरी निगाहों में मेरा बुढ़ापा पीड़ादायक हो जबकि तुम्हारी निगाहों में जन्नत की पहली सीढ़ी - सुकून के लम्हों की शुरुआत ; निर्भर इस पर है कि मैंने या तुमने अपनी जवानी के दिनों में अपने बुढ़ापे के लिए तैयारी कितनी और कैसी की है !!!
सुबोध- १९ नवंबर, २०१४

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