Saturday, November 8, 2014

कविता

उन्हें मुगालता ये हो गया
कि वे कवि हो गए
मैं उनको पढता हूँ
और हँसता हूँ !
अंदर से कोई कहता है
तुम कवि नाम के प्राणी
सिर्फ दूसरों की टांग खींचते हो
अनगढ़ शब्दों को

वाक्य विन्यासों को
पढ़ते हो ,देखते हो
व्याकरण की शुद्धि
जांचते हो, चर्चा करते हो
नाक मुंह सिकोड़ते हो
भावों को नहीं पढ़ते
दिल की आवाज़ नहीं सुनते
तुम जैसे कवि
तालाब के मेंढक होते है
कविता के नाम पर धब्बा होते है
क्या कविता सिर्फ शब्दों का जोड़-तोड़ है
तालियों की गड़गड़ाहट है
मूक संवेदना,
मूक भाव,
लडखडाती अभिव्यक्ति
लूले-लंगड़े,आधे-अधूरे शब्द
क्या किसी की कविता नहीं हो सकते ?
सोचना - सोचकर जवाब देना -
अन्यथा बेड़ियों में बंधी हुई
संस्कारों में जकड़ी हुई
तुम्हारी कविता
नए युग की आंधी में
दम तोड़ देगी
सिर्फ किताबों की शोभा बढ़ाएगी
तालिया पीटने के काम आएँगी
आम आदमी से दूर हो जाएगी
अँधे युग में
अँधो को लुभाएगी
पागलों को हँसाने और
गूंगे-बहरों से तालियां
पिटवाने के काम आएगी !!
सुबोध- ८ नवंबर ,२०१४

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