सिर्फ एक प्रचलित मुहावरा है जिसे जन समर्थन प्राप्त है और वो भावनाओं से ओत -प्रोत है इसलिए वो सही नहीं हो जाता .
मैं किसी की भावनाएं आहत नहीं करना चाहता सिर्फ मेरा एक पक्ष रख रहा हूँ ,हो सकता है आप इससे सहमत न हो तो कृपया अपना पक्ष रखे -तर्क और शालीनता के साथ जिस तरह से मैं रख रहा हूँ !
लोग माँ-बाप को भगवान से भी ऊपर दर्ज़ा देते है - उनकी निगाह में सुख-दुःख भगवान उनके भाग्य में लिखता है ,जबकि माँ-बाप सिर्फ सुख ही लिखते है !!
फेसबुक पर डालने और लाइक लेने में इसका मुकाबला नहीं है - बिलकुल किसी लोकप्रिय टॉपिक की तरह !!
आइये थोड़ा इसका विश्लेषण करे !!
क्या वाकई भाग्य भगवान लिखता है ?
या इंसान के किये गए कर्म ही उसे सुख या दुःख देते है , सफलता और असफलता भगवान ने गढ़ी है या इंसान ने ?
दूसरा वाक्य माँ-बाप भाग्य में सिर्फ सुख ही लिखते है,क्या वाकई ?
मेरे कॉलोनी में रहने वाले रहीम भाई के घर पिछले महीने आठवाँ बच्चा पैदा हुआ है . रहीम भाई खुद साईकिल के पंचर बनाने का काम करते है उनकी शरीके हयात सबीना भाभी लाख की चूड़ियाँ बनाने का काम करती है ,ज़रुरत पर कॉलोनी वाले उनसे घरों में भी साधारण सी मजदूरी पर काम करवा लेते है . वाकई रहीम भाई और सबीना भाभी ने अपने बच्चे के भाग्य में सिर्फ सुख ही लिखा है !
मध्यम वर्गीय कपूर साहब के सिर्फ दो बच्चे है एक लड़का और एक लड़की , अगर डिटेल में उनसे बात की जाए तो उन्हें ये नहीं पता कि उनके उन्नीस वर्षीय बेटे का भविष्य क्या है ,वो जो पढाई कर रहा है आने वाले भविष्य में उससे क्या हासिल होगा. वे अपने बिज़नेस में इतने व्यस्त है कि उन्हें ढंग से अपने बेटे के साथ बैठे हुए हफ्ता-हफ्ता गुजर जाता है .
अधिकांश परिवारों में बच्चे की आमद बिना किसी ठोस प्लानिंग के होती है ,जहाँ माँ-बाप सब कुछ उपरवाले के भरोसे छोड़ देते है , बच्चे के ग्रेजुएट होने तक भी माँ-बाप को पता नहीं होता कि बेटा ज़िन्दगी किस तरह गुजारेगा, जीवनयापन के क्या साधन होंगे और फिर भी माँ-बाप नसीब में सिर्फ सुख ही लिखते है !!
बच्चे पैदा करना और उन्हें संस्कारों की, ज़िदगी की समझ देने की बजाय आदर्शों की खुराक दे दी जाती है ,रटे-रटाये जुमले याद करवा दिए जाते है कि भाग्य भगवान लिखता है , सुख और दुःख तो भगवान के बनाये हुए रात और दिन जैसे है ,माँ-बाप बेहतर होते है ,यही बेहतरी अधिकांश सामूहिक परिवारों में शादी के दुसरे-तीसरे साल बिखर जाती है . और भगवान और भाग्य के नाम पर उनको गैर-जिम्मेदार बनाया जाता है !!
कृपया नई पीढ़ी को इन बेवकूफी भरे जुमलों से ना बहकाये उसे नए ज़माने की नई हवा में सांस लेने दीजिये ,नए तरीके से चीज़ों को सोचना और समझना सीखने दीजिये .
मुझे पता है मैंने एक विवादित मुद्दे को उठाया है हो सकता है कुछ को ये नागवार गुजरे उनसे आग्रह सिर्फ इतना है कि भावुकता भरा जवाब न देकर अगर भौतिकता भरा जवाब दे तो बेहतर होगा .
- सुबोध
मैं किसी की भावनाएं आहत नहीं करना चाहता सिर्फ मेरा एक पक्ष रख रहा हूँ ,हो सकता है आप इससे सहमत न हो तो कृपया अपना पक्ष रखे -तर्क और शालीनता के साथ जिस तरह से मैं रख रहा हूँ !
लोग माँ-बाप को भगवान से भी ऊपर दर्ज़ा देते है - उनकी निगाह में सुख-दुःख भगवान उनके भाग्य में लिखता है ,जबकि माँ-बाप सिर्फ सुख ही लिखते है !!
फेसबुक पर डालने और लाइक लेने में इसका मुकाबला नहीं है - बिलकुल किसी लोकप्रिय टॉपिक की तरह !!
आइये थोड़ा इसका विश्लेषण करे !!
क्या वाकई भाग्य भगवान लिखता है ?
या इंसान के किये गए कर्म ही उसे सुख या दुःख देते है , सफलता और असफलता भगवान ने गढ़ी है या इंसान ने ?
दूसरा वाक्य माँ-बाप भाग्य में सिर्फ सुख ही लिखते है,क्या वाकई ?
मेरे कॉलोनी में रहने वाले रहीम भाई के घर पिछले महीने आठवाँ बच्चा पैदा हुआ है . रहीम भाई खुद साईकिल के पंचर बनाने का काम करते है उनकी शरीके हयात सबीना भाभी लाख की चूड़ियाँ बनाने का काम करती है ,ज़रुरत पर कॉलोनी वाले उनसे घरों में भी साधारण सी मजदूरी पर काम करवा लेते है . वाकई रहीम भाई और सबीना भाभी ने अपने बच्चे के भाग्य में सिर्फ सुख ही लिखा है !
मध्यम वर्गीय कपूर साहब के सिर्फ दो बच्चे है एक लड़का और एक लड़की , अगर डिटेल में उनसे बात की जाए तो उन्हें ये नहीं पता कि उनके उन्नीस वर्षीय बेटे का भविष्य क्या है ,वो जो पढाई कर रहा है आने वाले भविष्य में उससे क्या हासिल होगा. वे अपने बिज़नेस में इतने व्यस्त है कि उन्हें ढंग से अपने बेटे के साथ बैठे हुए हफ्ता-हफ्ता गुजर जाता है .
अधिकांश परिवारों में बच्चे की आमद बिना किसी ठोस प्लानिंग के होती है ,जहाँ माँ-बाप सब कुछ उपरवाले के भरोसे छोड़ देते है , बच्चे के ग्रेजुएट होने तक भी माँ-बाप को पता नहीं होता कि बेटा ज़िन्दगी किस तरह गुजारेगा, जीवनयापन के क्या साधन होंगे और फिर भी माँ-बाप नसीब में सिर्फ सुख ही लिखते है !!
बच्चे पैदा करना और उन्हें संस्कारों की, ज़िदगी की समझ देने की बजाय आदर्शों की खुराक दे दी जाती है ,रटे-रटाये जुमले याद करवा दिए जाते है कि भाग्य भगवान लिखता है , सुख और दुःख तो भगवान के बनाये हुए रात और दिन जैसे है ,माँ-बाप बेहतर होते है ,यही बेहतरी अधिकांश सामूहिक परिवारों में शादी के दुसरे-तीसरे साल बिखर जाती है . और भगवान और भाग्य के नाम पर उनको गैर-जिम्मेदार बनाया जाता है !!
कृपया नई पीढ़ी को इन बेवकूफी भरे जुमलों से ना बहकाये उसे नए ज़माने की नई हवा में सांस लेने दीजिये ,नए तरीके से चीज़ों को सोचना और समझना सीखने दीजिये .
मुझे पता है मैंने एक विवादित मुद्दे को उठाया है हो सकता है कुछ को ये नागवार गुजरे उनसे आग्रह सिर्फ इतना है कि भावुकता भरा जवाब न देकर अगर भौतिकता भरा जवाब दे तो बेहतर होगा .
- सुबोध
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