Tuesday, November 18, 2014

25 . ज़िंदगी – एक नज़रिया

कल का मेरा सच आज सच नहीं रहा ,जब मैं उस सच को आज झूठ बताता हूँ तो तुम आश्चर्य करते हो !

आज जिसे मैं सच मान रहा हूँ हो सकता है कल मैं उसे सच नहीं मानूं हो सकता है तुम मेरी बात नहीं समझ पाओ और फिर आश्चर्य करो.

बेहतर है तुम मेरे कल के सच को जो आज झूठ बन गया है , सच और झूठ के शब्दों में मत उलझाओ बल्कि उन तर्कों को सुनो और समझो जो मैंने तब दिए थे या जो अब दे रहा हूँ ,अगर मैं दोषी हूँ तो दोषी तुम भी हो जिसने मेरे तर्क सुने और माने और उन तर्कों को सच या झूठ का नाम दे दिया .

ज़माने की रफ़्तार इतनी बढ़ गई है कि कल के सच या झूठ आज सच या झूठ नहीं रहे , सारी धारणाये बदल गई ,सारे तर्क बदल गए .

दो सौ साल पहले का सच था शांति से बिना चीखे-चिल्लाये एक दुसरे की बात सुनना हो तो दोनों को आस-पास होना चाहिए लेकिन आज का सच है सात समुन्दर पार का इंसान भी बिना चीखे-चिल्लाये शांति से एक दूसरे की बात सुन सकता है सिर्फ उसे मोबाइल का इस्तेमाल करना है . एक अविष्कार कई सच झूठ बना देता है और कई झूठ सच हो जाते है .

सौ साल पहले महाभारत का संजय जो कुरुक्षेत्र का आँखों देखा हाल धृतराष्ट्र को बताता है कपोल कल्पना कहलाता था किस्से-कहानियों की बात था लेकिन आज तुम टी.व्ही पर आँखों देखा हाल देखते हो और स्वीकार करते हो : कल का झूठ आज सच बन गया है ".

दो सौ साल पहले औद्योगिक युग में " पढोगे-लिखोगे बनोगे नवाब " वाला मुहावरा आज क्या वही अर्थ रखता है ? तब नौकरी मिलना आसान था और आज नौकरी मिलना और नौकरी बने रहना मुश्किल है , कुछ सच या झूठ बदल गए है और कुछ बदलने के बहुत करीब है .

यह नया युग है जहाँ नए सच गढ़े जायेंगे और कल के सच खंडित किये जायेंगे और यही झूठ के साथ भी होगा , कुछ झूठ गढ़े जायेंगे और कुछ खंडित किये जाएंगे .

और भविष्य में -आने वाले सालों में, जब आज अतीत बन जायेगा यह प्रक्रिया तब भी जारी रहेगी.

हर युग के अपने सच होते है और अपने झूठ जो अगले युग में बेमानी हो जाते है ,वो युग अपने सच और अपने झूठ खुद गढ़ता है .

तो मेरे आज के सच को या झूठ को तुम सच या झूठ आज का मानो कल का पता नहीं कल वो रहेगा या बदल जायेगा !!!!

महत्त्वपूर्ण सच नहीं है और न हीं झूठ है बल्कि महत्त्वपूर्ण तुम्हारा मेरे तर्कों को मानना या नकारना है !!!!
- सुबोध

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