Saturday, July 19, 2014

मुलाकात



हाँ,
मैं मुलाकात करने जा रहा हूँ
पीछा करते हुए खुद के निशानों का
जो बने है नंगे पांव
करने है कुछ सवाल
उसकी पाक मोहब्बत के बारे में
उसकी क़तरा-क़तरा बेरुखी के बारे में
उन जख्मों के बारे में
जो वक्त ने भर दिए
और उस मरहम के बारे में
जो दिल के एक कोने में मौजूद रहा हमेशा
उनके लिए जिन्हे जरूरत थी इसकी
हाँ, ये भी पूछना है कि
कुछ रिश्ते क्यों बिक गए बाजार में
और क्यों कुछ अनजाने अपने बन गए
बुरी आदतें हादसा क्यों बन जाती है
और अच्छी आदते आशीर्वाद
खून कहीं सस्ता क्यों हो जाता है पानी से भी
और कहीं पानी अमृत हो जाता है
अधूरे ख्वाब दर्द क्यों देते है
और उम्मीदों की खुशबु चहकती क्यों है
बहुत से सवाल पूछने है मुझे
फेहरिस्त बना रहा हूँ मैं सवालों की
अगर तुम्हारे भी हो कोई सवाल
तो बताना मुझे
पूछुंगा तुम्हारे लिए भी
या फिर
तुम भी क्यों नहीं साथ हो लेते मेरे
दोनों मिलकर पूछेंगे
आओ पहनो अपने बूट
और चलो मेरे साथ
हाँ,
मैं मुलाकात करने जा रहा हूँ
पीछा करते हुए खुद के निशानों का
जो बने है नंगे पांव,
जो दुबकी बैठी है
यहीं-कहीं
उसी ज़िन्दगी से....

सुबोध- १५ जुलाई,२०१४

1 comment:

दिगम्बर नासवा said...

कहाँ मिलते हैं ऐसे प्रश्नों के जवाब ज़िन्दगी से ...
गहरे भाव लिए रचना ...