हाथ में पकडे
कॉफ़ी के मग में
गरम-गरम कॉफ़ी के मग में
क्यों उतर आती हो
चेहरे पर वही चिर-परिचित मुस्कान
आँखों में जुदाई के लम्हों का दर्द
नथुनों में बस जाती है
" ट्रुथ वीमेन " की महक
झरती हुई तुम्हारे बदन से .
कुछ कसक भरे पलों में
टपक पड़ते है अश्क मेरे.
गरम कॉफ़ी का मग
जलाने लगता है अंगुलियाँ
टेबल पर रखता हूँ मग
और खुद को टिकाता हूँ
कुर्सी की पुश्त से
माथे पर उभरती है शिकन
मींच लेता हूँ आँखें
और अजनबी हो जाते है कुछ क्षण
जब आखिरी बार देखा था तुम्हे
अपने शौहर के साथ
खिलखिलाते हुए
मुझे लगा
तुम्हारी मोतियों जैसी दन्तपंक्तियों से
टपक रहा है लहू
शायद मेरी उम्मीदों का लहू
या उन वादों का जो किये थे
एक-दूसरे से ..
और तुम्हारी खिलखिलाहट
लगने लगती है
वैम्पायर की हँसी ..
कॉफ़ी ठंडी हो जाती है
किचन में जाकर
उलट देता हूँ सिंक में
और घुस जाता हूँ
बाथरूम में .
उफ़ !
तुम यहाँ भी
साथ चली आती हो !!!!!
तुम कहा करती थी
मैं मेच्योर नहीं हूँ
हाँ,तुम सही हो
मैं आज भी खोया रहता हूँ
तुम्हारे ख्यालों मैं
और तुम सहज हो गई हो
अपनी ज़िन्दगी के साथ !!!!
सुबोध-
१७,जुलाई , २०१४
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