Thursday, June 12, 2014

जिजीविषा



मेरा बचपन
छुड़ाकर मेरा हाथ
खो गया है कहीं
हादसों की भीड़ में.

ख्वाबों के शहर में
सूरज की उंगली पकड़
खटखटाये
जो दरवाज़े
वहां पड़े मिले
सम्बन्धो के
मुर्दा जिस्म ...

डर नहीं लगता अब अंधेरों से
लगते है अपनों से
खौफ और सहमेपन पर
मुस्कान का नक़ाब
बन गया है आदत

वो लम्हा जो छिटक गया
वक्त के दरिया से
आज भी देता है दर्द
और तलाशता है
उस बचपन को
जो खो गया
हादसों की भीड़ में

मेरे दोस्त !
कहीं किसी मोड़ पर
टकरा जाये तुमसे
वो बचपन
चाहे मेरा हो या तुम्हारा
ले आना उसे मेरे पास
साथ बैठकर आइसक्रीम खाएंगे !!!!!

सुबोध- ९ जून २०१४

No comments: