हाँ , मैंने महसूस की है
तुम्हारी ऊंचाई
पहाड़ों में तैरते
मटमैले,काले बादलों को
छूती ऊंचाई....
सुनी है तुम्हारी बातें
सर्र-सर्र चलती
हवाओ में तैरती बातें....
महसूस की है मैंने महक
झरती हुई तुम्हारे बदन से
रमती हुई मेरे जिस्म में
टूटकर बिखरती पत्तियाँ
कुछ हरी, कुछ पीली पत्तियाँ
सुनहरी शाम के साये में
हाथ में हाथ डालके
टहलते हुए
रूक जाना वक्त का
और तुम्हारा खिलखिलाना....
आसमान जित्ते ऊँचे तुम
तुम पर प्रेम आता है,
और नीचे अतल गहराइयाँ
डर लगता है देखकर.
खुरदरे होकर भी बड़े स्नेहिल हो ,
चस्पां हो मेरी रूह से तुम .
तुम मुझे बहुत अपने से लगते हो
ए मेरे चीड़.....
सुबोध - ८ जून ,२०१४
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