Monday, June 2, 2014

क्या सही है , क्यों सही है ???




तुम क्या जानो
भूख की मजबूरियाँ
तुम क्या जानो
भूख मरोड़कर रख देती है आँतड़िया
हीक सी उठती है
गले को जलाती हुई
निकाल देती है पेट से बाहर
घिनौना ,बदबूदार,बासी
थूक का गोला
हल्का पनियाया हुआ .
भूखा जो है पेट .
पीड़ा कुछ तो समझो मेरी !!!!
नीली छतरीवाले के नाम पर 
लाखो,करोड़ों,अरबों के बनाये
मंदिर,मस्जिद,गुरूद्वारे,गिरिजाघर
और उनके रखवालों को चढ़ते चढ़ावे
और उसी के बनाये मुझ जैसे प्राणी
तड़फते,
रोते ,
बिलखते,
और तलाशते रोटी के टुकड़े
भूखे रह जाते है ...
जिसे देखा नहीं वो सच हो गया
मैं देखा हुआ भी झूठ ......
सोचो क्या सही है , क्यों सही है ???

सुबोध - २ जून, २०१४ 



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