गिरकर संभलने वाले ही मंज़िल पाते है,
न संभलने वाले नाकामों में गिने जाते है .
तू हार मत, हारना तेरी फितरत नहीं,
मंज़िल पाने वाले ही विजेता कहलाते है .
सुबोध- ४, सितम्बर , २०१४
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ज़माने की ठोकरों ने मजबूती दी है मुझे !
आज फिर एक ठोकर लगी है ,
लगता है अब मेरा वक्त आ गया !!!
सुबोध- ४ सितम्बर , २०१४
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इंसान ज़िंदा रह गया
इंसानियत खो गई !!
ढूँढो उसे , शायद ज़िंदा हो
मुझमे या तुझमे !!!
सुबोध- ४,सितम्बर,२०१४
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उनके देखने के अंदाज़ ने
हमे अपनों से गैर कर दिया !!!!
सुबोध- ४ सितम्बर, २०१४
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अनगिनित दिन, अनगिनित रातें
मेरे साथ चली है
मेरे साथ जली है
अश्कों से नहाईं है
तब निखरी है
गली-गली जिसकी चर्चा
हुई है, बिखरी है
तब कहीं जा के मोहब्बत कहलाई है
और मैं" दीवाना "
सुबोध ,- ४ सितम्बर, २०१४
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