Friday, September 5, 2014

गद्य


शांति जिस कीमत पर भी मिले सस्ती होती है !!! हो सकता है हम आज इसे महसूस न करें , लेकिन जब जीवन में दौड़ते-दौड़ते थक जाएंगे , सत्ता हमारे हाथ से निकल कर नई पीढ़ी के हाथ में आ जाएगी और हमारे पास वक्त ही वक्त होगा - अपनी गुजरी यादों में जीने का ,की गई गलतियों को महसूसने का , पैसे के पीछे भागने का, थोपी हुई व्यस्तताओं के बारे में सोचने का , तब शायद , हाँ शायद तब हमे शांति अनमोल लगे ..हमे महसूस हो जिस के पीछे हम भागे क्या वो इतना महत्त्वपूर्ण था कि हमने पूरी ज़िन्दगी में अशांति पाल ली ..
सुबोध - ५ सितम्बर, २०१४




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तुम्हारा स्पर्श मुझे सहज कर देता है मेरा सारा गुस्सा, मेरी सारी नाराजगी काफूर हो जाती है ...ये कौनसी भाषा है कि गुस्सा हुए बेटे/ बेटी को सीने से लगाता हूँ और वे शांत हो जाते है , जाने कुछ हुआ ही नहीं हो !!! शब्दों से पैदा हुए विवाद / गलतफहमियां एक स्पर्श से दूर हो जाती है ....
सुबोध - ५ सितम्बर, २०१४

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