Saturday, September 6, 2014

गद्य

हम प्यार को हमेशा व्यापार क्यों बनाते है ? प्यार के बदले प्यार मिलेगा ये सोचकर प्यार करना खुद को तराजू के एक पलड़े में रखना नहीं तो क्या है ? कि आओ मैं तिज़ारत के लिए हाज़िर हूँ !!! कहते है प्यार किया नहीं जाता , हो जाता है - तो यहाँ तो हम सायास भाव-ताव कर रहे है कि मैं प्यार नामक शब्द तुम को दे रहा हूँ तुम बदले में क्या दोगे ? क्या " प्यार हो जाता है " कहावत गलत है , अब प्यार हो गया बदले में प्यार नहीं मिला तो ? क्या तराजू के एक पलड़े में रखा अपना मन वापिस उठा लोगे ? प्यार तो स्नेह का नाम है, त्याग का नाम है ,खुद की बर्बादी के बाद भी किसी को आबाद करने की चाहत का नाम है , उस बंदगी का नाम है जहाँ " मैं " पिघल कर बह जाता है , बह कर "तुम" में समां जाता है फिर उस से कोई फरक नहीं पड़ता वो तुम मेरा है या नहीं है !!
- सुबोध





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अगर आप गहराई में जाकर सोचे तो आप समझ पाएंगे कि हर आज़ादी खुद में एक बंधन ( इसे आप जिम्मेदारी पढ़े) होती है यह एक बंधन ही है कि आप अपनी संतान का भरण -पोषण कर पाते है तभी तो वो आपको संतान कहने का हक़ देती है .
यह भरण -पोषण एक बंधन है जिसके एवज में आपको संतान कहने का हक़ दिया गया है वो आपकी आज़ादी है - ये संसार के हर रिश्ते पर लागू होता है - इंसान और पैसे के रिश्ते पर भी !!!
- सुबोध

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