मेरी तोतली जुबान को समझना आसान न था
लेकिन तुम समझती थी
बिना कुछ कहे मेरे रोने की असली वजह
तुम समझती थी
मेरी खाली जेब और गुस्से की बातें
तुम समझती थी
आँखों में बसी इश्क़ की खुमारी को
तुम समझती थी
ज़माने की बदलती हवा को
तुम समझती थी
मेरे बदलते रिश्तों का बदलना
तुम समझती थी
और
और मैं तुम्हे कहता था
तुम कुछ नहीं समझती, माँ !!!
मैं कल भी नासमझ था
आज भी नासमझ हूँ
मैं शब्दों को लिखता,पढता,समझता हूँ
और तुम
माँ ,तुम सब कुछ समझती हो !!!
सुबोध- १५,सितम्बर,२०१४
1 comment:
प्यारी कविता ... माँ जैसा कोई नहीं
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