Sunday, August 17, 2014

आओ कान्हा ,आओ !!



तंग न करो कान्हा
न बजाओ बांसुरी
मैं बहुत दुखी हूँ
अभी हरे है
कई घाव
दर्द से कराहती आत्मा के साथ
कैसे नाचूँ
कैसे झूमूँ
तुम्हारी बांसुरी की तान पर ...

कुछ करो कान्हा
अब झूट-मूट का
तुम्हारा जन्मदिन मनाने का नहीं
सच में तुम्हारा
अवतार का वक्त आ गया है .
आओ कान्हा ,
आओ !!
जन्मों नहीं
अवतार लो !!!
अब तो
पीड़ित मानवता के दर्द हरो !!!

सुबोध- अगस्त १७, २०१४ जन्माष्टमी पर


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