ख्वाइशें
काफी दिनों से ठहरी है
मेरे साथ मेरे घर में .
एक पुराने बिछड़े दोस्त की तरह
वक्त-बेवक्त
जगाती है मुझे
और पूछने लगती है
वही जाने- पहचाने सवाल
जो कभी चिढ़ाते है मुझे
और कभी लगते है खुद का वजूद
जब भी तन्हा होता हूँ
मेरे पास आकर बैठ जाती है
उसके आने से मन में उजाला
हो जाता है
तन्हाई उसकी बातों से
खिलखिलाने लगती है
एक नए सन्दर्भ के साथ
मुझे अहसास है
जब ये जुदा होगी मुझसे
मैं बिखरूँगा
और जब ये बन-संवरकर
आ जाएगी मेरी ज़िन्दगी में
मैं निखरूँगा.
सुबोध- ३० अगस्त, २०१४
काफी दिनों से ठहरी है
मेरे साथ मेरे घर में .
एक पुराने बिछड़े दोस्त की तरह
वक्त-बेवक्त
जगाती है मुझे
और पूछने लगती है
वही जाने- पहचाने सवाल
जो कभी चिढ़ाते है मुझे
और कभी लगते है खुद का वजूद
जब भी तन्हा होता हूँ
मेरे पास आकर बैठ जाती है
उसके आने से मन में उजाला
हो जाता है
तन्हाई उसकी बातों से
खिलखिलाने लगती है
एक नए सन्दर्भ के साथ
मुझे अहसास है
जब ये जुदा होगी मुझसे
मैं बिखरूँगा
और जब ये बन-संवरकर
आ जाएगी मेरी ज़िन्दगी में
मैं निखरूँगा.
सुबोध- ३० अगस्त, २०१४
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