Tuesday, August 26, 2014

मेरा इश्क़ मेरा नसीब



इश्क़ का कुरता मैला हो गया
और मेरी जीभ में जख्म
इसकी पाकीज़गी बताते-बताते
मगर निगोड़ा ज़माना
मोहब्बत को
ज़िन्दगी की अमावस समझता है
रूह का नूर नहीं .

शायद खुद गुजरे है
उस नाकाम मोहब्बत के मकाम से
आग के तूफ़ान से
कि ज़माने को बचाने लगे है
मोहब्बत के नाम से .

ऐ ! मौला
तेरी छत के नीचे
वादों की छत बना रहा हूँ
ठिठुरते इश्क़ को आगोश की गर्मी
शायद कुछ सुकून दे
और सूरज सा हौंसला
मेरे ख्यालो को सच्चाई दे.

मेरे मौला !!
तू गवाह रहना
जो हारे है उनका भी
और मेरी जीत का भी
उनकी नाकामी मेरा नसीब क्यों बने
क्यों न मेरी जीत मेरी ज़िन्दगी बने ?

  सुबोध - २६ अगस्त ,२०१४

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