Saturday, May 10, 2014

तुझे इश्क़ जो हुआ है



सारे अक्षर
खिलखिला कर
घेर लेते है मुझे
गाते हुए
एक अनजाना गीत
जिसकी धून
पहचानी सी लगती है
सूरज की किरणे
भीगी -भीगी शबनम का
माथा सहलाती है
एक चिड़िया आती है फुदकती हुई
मुंह में घास का तिनका लिए
बैठ जाती है
अलगनी पर टंगे कुर्ते पर
आम की भीनी -भीनी महक
भर देती है मेरे कमरे में हवा
एक तितली आती है
चुपके से गुनगुनाती है
सारे अक्षर
हंस पड़ते है जोर से
कहते हुए
चलो ,
नाचते है
गाते है
पार्टी करते है
तुझे इश्क़ जो हुआ है ............

सुबोध १० मई , २०१४

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