सारे अक्षर
खिलखिला कर
घेर लेते है मुझे
गाते हुए
एक अनजाना गीत
जिसकी धून
पहचानी सी लगती है
सूरज की किरणे
भीगी -भीगी शबनम का
माथा सहलाती है
एक चिड़िया आती है फुदकती हुई
मुंह में घास का तिनका लिए
बैठ जाती है
अलगनी पर टंगे कुर्ते पर
आम की भीनी -भीनी महक
भर देती है मेरे कमरे में हवा
एक तितली आती है
चुपके से गुनगुनाती है
सारे अक्षर
हंस पड़ते है जोर से
कहते हुए
चलो ,
नाचते है
गाते है
पार्टी करते है
तुझे इश्क़ जो हुआ है ............
सुबोध १० मई , २०१४
No comments:
Post a Comment