ख्वाइश इतनी सी
कि हालात बेहतर हो जाए
मेरा आरामदेह क्षेत्र (comfort zone ) रहे सुरक्षित
इस सोच की वजह से
कोशिशें होती है आधी-अधूरी.
शुभचिंतकों की
असफलता की फिक्र
फुला देती है हाथ-पाँव .
काम की शुरुआत
अकेले से होती है
ख़त्म २-४ पर होती है.
इस्तेमाल किये जाते है
औद्यौगिक युग के औज़ार,
पेड़ काटने के लिए कुल्हाड़ी .
हर काम /उपाय/कोशिश होते है छोटे
ज़ाहिर है सफल होने पर
सफलता भी
प्रयासों के अनुरूप ही परिणाम देगी
लिहाज़ा छोटे क़दमों की सफलता
किसी कोने में दुबकी रह जाती है
क्योंकि जो छोटा सोचते है
वो गरीब होते है .....
-
उन्हें झोंकना पड़ता है
अपना सब कुछ ,
सब कुछ माने सब कुछ -
समय,
ऊर्जा,
मेहनत,
पूँजी,
हार न मानने का ज़ज़्बा ,
काबिलियत.
नकारना होता है
समाज/दोस्तों का खौफ,
मज़ा आरामदेह क्षेत्र का.
शुरुआत होती है अकेले से
लेकिन जोड़ लेते है
पूरी टीम ,पूरा नेटवर्क.
इस्तेमाल किये जाते है
आधुनिक युग के औज़ार,
पेड़ काटने के लिए इलेक्ट्रिक आरी .
हार उनके दिमाग में
मौत की तरह होती है
लिहाज़ा तैयार होते है कई
वैकल्पिक रास्ते.
हारेंगे तो
शुरुआत करेंगे नए सिरे से.
जीतेंगे तो जश्न मनाएंगे....
और वो मानते है जश्न
क्योंकि जो बड़ा सोचते है
वो अमीर होते है .
सुबोध- ३० मई, २०१४
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