दर्द की हदें
हवा में मत उछालो.
दर्द,
प्यास के शहर में
अकेलेपन की आग है दोस्त,
दुबका लो इसे सीने में.
दर्द एक जाम है
हसीन महबूब का,
रौशन ज़िन्दगी के लिये
उठाओ ये जाम
और अन्धेरें में भटकते
होठों को
नूर की बरात दो.
पहचान
जो कीचड़ के समंदर से गुज़र कर
उजला जाती है;
पहचान जो गंदली केंचुल को
जिस्म से उतार फेंकती है
दर्द भी वैसी ही एक पहचान है-
आदमी होने की.
नकारो न इसे .
पलकों के सीने पर मचलता दर्द
दूसरों के सीने में उतारना
हार है अपनी मेरे दोस्त.
आओ ,
दर्द उड़ेलने की नहीं
खुद झेलने की बात करें
एक अच्छी कविता के लिये.
सुबोध अगस्त १९८३.
हवा में मत उछालो.
दर्द,
प्यास के शहर में
अकेलेपन की आग है दोस्त,
दुबका लो इसे सीने में.
दर्द एक जाम है
हसीन महबूब का,
रौशन ज़िन्दगी के लिये
उठाओ ये जाम
और अन्धेरें में भटकते
होठों को
नूर की बरात दो.
पहचान
जो कीचड़ के समंदर से गुज़र कर
उजला जाती है;
पहचान जो गंदली केंचुल को
जिस्म से उतार फेंकती है
दर्द भी वैसी ही एक पहचान है-
आदमी होने की.
नकारो न इसे .
पलकों के सीने पर मचलता दर्द
दूसरों के सीने में उतारना
हार है अपनी मेरे दोस्त.
आओ ,
दर्द उड़ेलने की नहीं
खुद झेलने की बात करें
एक अच्छी कविता के लिये.
सुबोध अगस्त १९८३.
No comments:
Post a Comment