जिस रोज़ से
झुर्रियों की झोली वाले
बाप की आँखों में
अभाव की विभीषिका नहीं ममता मुस्कुरायेगी.
यौवन के चहकते बचपन पे खड़ी
खामोश बहन के बदन को
पैवन्दों की जालियाँ नहीं
साबित चुनरी दुलरायेगी .
नाबालिग भाई के हाथों को
याचना की नहीं
अधिकार की संतुष्टि सहलायेगी.
हाँ, उस रोज़ से
दुनिया मुझे
रोबोट से आदमी कहने लग जायेगी.
सुबोध - मार्च १९८३
झुर्रियों की झोली वाले
बाप की आँखों में
अभाव की विभीषिका नहीं ममता मुस्कुरायेगी.
यौवन के चहकते बचपन पे खड़ी
खामोश बहन के बदन को
पैवन्दों की जालियाँ नहीं
साबित चुनरी दुलरायेगी .
नाबालिग भाई के हाथों को
याचना की नहीं
अधिकार की संतुष्टि सहलायेगी.
हाँ, उस रोज़ से
दुनिया मुझे
रोबोट से आदमी कहने लग जायेगी.
सुबोध - मार्च १९८३
No comments:
Post a Comment