खून से लिखे इश्तहार थामे
नारों से हवाएँ गर्म करते
अनपाये को पाने के लिए
मुठ्ठियाँ जकड़े
तमतमाये चेहरे
हाँ,बरसों पहले देखे थे
और उपेक्षा से मुस्कुरा दिया था
परिवर्तन लाने के लिए
शक्ति भी चाहिए - रोष ही नहीं
लेकिन आज
हर मोहल्ले से
इश्तहारों का हुजूम निकला है
और हर्फ़
शाने से शाना मिलाकर
आगे बढ़ रहे हैं
जिससे पूरा शहर थर्रा रहा है
कल का बिखरा हुआ रोष
आज संगठित होकर
शक्ति बन गया है
और मैं
जिसे कल तक इनमें
आस्था न थी
आज पहले वार के लिए
आगे बढ़ आया हूँ.
सुबोध मार्च १९८३
नारों से हवाएँ गर्म करते
अनपाये को पाने के लिए
मुठ्ठियाँ जकड़े
तमतमाये चेहरे
हाँ,बरसों पहले देखे थे
और उपेक्षा से मुस्कुरा दिया था
परिवर्तन लाने के लिए
शक्ति भी चाहिए - रोष ही नहीं
लेकिन आज
हर मोहल्ले से
इश्तहारों का हुजूम निकला है
और हर्फ़
शाने से शाना मिलाकर
आगे बढ़ रहे हैं
जिससे पूरा शहर थर्रा रहा है
कल का बिखरा हुआ रोष
आज संगठित होकर
शक्ति बन गया है
और मैं
जिसे कल तक इनमें
आस्था न थी
आज पहले वार के लिए
आगे बढ़ आया हूँ.
सुबोध मार्च १९८३
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