दायरा
जो बनाते है आप
निर्भर है उसकी उपलब्धि
आपके समर्पण पर ...
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दायरा
मेंढक का
होता है तालाब,
और
बाज़ का
आकाश,
सरहदों से आज़ाद आकाश .
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मेंढक
जब सोचता है
बाज़ बनने की,
रोकती है उसे
उसकी मानसिकता,
जहाँ मौजूद है
फ़ेहरिश्त खतरों की .
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त्याग है
आरामदेह दायरे का,
ख़ौफ है
अपनी वास्तविकता बदलने का ,
मेहनत है
अपनी काबिलियत के विस्तार की,
और जहाँ ज़रूरत है
एकाग्रता की ,
साहस की,
विशेषज्ञता की ,
शत प्रतिशत प्रयास की ,
और सबसे बड़ी
बाज़ की मानसिकता की.
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और देखकर
इस फ़ेहरिश्त को
कुछ मेंढक
मेंढक रह जाते है
और कुछ मेंढक
बाज़ बन जाते है .
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अपना-अपना दायरा है
चाहत का,
चुनाव का,
समर्पण का.
क्योंकि
दायरा
जो बनाते है आप
निर्भर है उसकी उपलब्धि
आपके समर्पण पर ..
सुबोध- २२ मई , २०१४
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