Saturday, May 10, 2014

हारते वो हैं, जो मैदान छोड़ते हैं.



जब तक तुम मैदान में हो,
गिर रहे हो चाहे बार-बार,
हो गए हो थकान से चूर,
लेकिन न टेके हो घुटने ,
न किया हो समर्पण,
न मांगी हो जीत की भीख;
विश्वास करो , हारे नहीं हो तुम ..
क्योंकि हारते वो हैं ,जो मैदान छोड़ते हैं.

करो मेरा विश्वास
कि जिसने निर्माण किया है तुम्हारा,
नहीं है वो कोई सनकी- पागल
कि दौरा पड़ा अचानक ,
और उसने बना दिया तुम्हें.
बड़ी लगन से,बड़ी मेहनत से, बड़ी विद्वता से
निर्माण किया है उसने तुम्हारा,
एक अनोखे काम के लिए
और वो सिर्फ तुम्हीं कर सकते हो -
"हमेशा विजेता बनो"
सो मत मानो हार , मत छोड़ो मैदान
क्योंकि हारते वो हैं ,जो मैदान छोड़ते हैं.

उसने दिए है तुम्हें,
हार से बचने के लिए ढेरों हथियार ,
उठाओ उन्हें, करो उनका इस्तेमाल,
वरना पड़े -पड़े सड़ जायेंगें वे शस्त्रागार में.
उसने दिया है तुम्हें--
विचार का हथियार,
भावना का हथियार,
चुनाव का हथियार,
कर्म का हथियार,
और भी ढेरों हथियार,
जो अलग करते है तुम्हें जानवरों से,
बनाते हैं तुम्हें इंसान,

और तुम हो कि उसके सारे वरदान ठुकरा कर,
बनने चले हो इंसान से जानवर.
मत करो उसके वरदानों का अपमान,
मत मानो हार,मत छोडो मैदान
क्योंकि हारते वो हैं , जो मैदान छोड़ते हैं.

सुबोध

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