दर्द
टुकड़ों में नहीं जिया जाता.
दर्द को जीना है अगर
पूरा जीना पड़ता है.
नहीं जीना है अगर
तो पाइए उस लक्ष्य को
जो किया है निर्धारित.
लेकिन क्या सफलता
संभव है बिना असफलता के ?
जीत संभव है बिना हार के ?
रौशनी की जरूरत
रौशनी में है या अँधेरे में ?
क्या ख़ुशी की कोई कीमत है
बिना ग़म के ?
आंसू क्यों छलक पड़ते है
खुशी में भी ?
क्या नहीं होती एक विचार की हत्या
सवालों को अनुत्तरित छोड़ने पर ?
और सम्भावनाओ को न तलाशने पर
हत्या एक अवसर की ?
घोड़ा संकट का
सवारी न करें आप पर
ऐसा अगर चाहते है आप
तो खुद सवारी करें
अधूरी नहीं - पूरी सवारी
क्योंकि
दर्द टुकड़ों में नहीं जिया जाता
सुबोध
टुकड़ों में नहीं जिया जाता.
दर्द को जीना है अगर
पूरा जीना पड़ता है.
नहीं जीना है अगर
तो पाइए उस लक्ष्य को
जो किया है निर्धारित.
लेकिन क्या सफलता
संभव है बिना असफलता के ?
जीत संभव है बिना हार के ?
रौशनी की जरूरत
रौशनी में है या अँधेरे में ?
क्या ख़ुशी की कोई कीमत है
बिना ग़म के ?
आंसू क्यों छलक पड़ते है
खुशी में भी ?
क्या नहीं होती एक विचार की हत्या
सवालों को अनुत्तरित छोड़ने पर ?
और सम्भावनाओ को न तलाशने पर
हत्या एक अवसर की ?
घोड़ा संकट का
सवारी न करें आप पर
ऐसा अगर चाहते है आप
तो खुद सवारी करें
अधूरी नहीं - पूरी सवारी
क्योंकि
दर्द टुकड़ों में नहीं जिया जाता
सुबोध
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