वक्त के आँसू
नहीं मिटा पाये है
विरह का ज़ख्म .
इश्क़ का शहर
उदास लेटा है
मन के आइने पर .
बाँसुरी की तान ,
खामोश वादियाँ,
बदन टटोलती हवा ,
ताज़ा खिला गुलाब
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
तुम्हारे बिना
सुबोध अगस्त १९८६
नहीं मिटा पाये है
विरह का ज़ख्म .
इश्क़ का शहर
उदास लेटा है
मन के आइने पर .
बाँसुरी की तान ,
खामोश वादियाँ,
बदन टटोलती हवा ,
ताज़ा खिला गुलाब
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
तुम्हारे बिना
सुबोध अगस्त १९८६
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