Saturday, May 10, 2014

मेरी हथेली पर किसी और की मेहंदी है .

मेरी हथेली पर
तेरे इश्क़ की मेहंदी नहीं
बेवफाई के अंगारे है
फिर भी न जाने क्यों
महकती है मेरे जिस्म की शाखें
एक तेरे जिक्र से.
-
भूले से सही
हिज़्र जब उतारता है
अपने कपड़े
एक सूरज आकर
चूम लेता है मेरा माथा
और मैं बालती हूँ चूल्हा
तेरे लिए सोंधी-सोंधी
रोटी जो पकानी है ,
हुलस कर साफ़ करती हूँ
चौबारे को
तलाशती हूँ दुपट्टे का साफ़ किनारा
नाक पोंछनी है तेरे बच्चो की..
-
वक्त का जंगल
जब छूता है मेरे वज़ूद को
एक ज़हर का घूंट
मेरे जिस्म में उतर जाता है
जैसे समाती है समुन्दर में कोई नदी
छितरा देता है
ख्यालों के सितारे
क्योंकि मेरे बच्चो का बाप तू नहीं
मेरी हथेली पर किसी और की मेहंदी है .

सुबोध ९ मई २०१४

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