Saturday, May 10, 2014

क्या उसकी हत्यारी मैं हूँ ?

संस्कारों के अँधेरे में
पली हुई मैं
दिखा कर ससुराल का भय
क़त्ल करती रही
उसकी मासूमियत .
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झल्लाती उसके बचपने पर
थोपती रही उस पर
सलीके से उठना-बैठना
और बातचीत का अंदाज़ .
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उसकी निरीह आँखें
टपक पड़ती बेबसी में
खुद को खुद में जज्ब करती.
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उसके
खामोश मासूम चेहरे की
उष्णता सहेजने की चाहत
लगकर मेरी छाती से
बंद मुट्ठी का सपना बन गई .
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जवान होती बेटी के लिए
अपनी गरीबी में जोड़ती दहेज़
न चाहते हुए भी
कोसने लगती उसे.
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वह चुपचाप सुनती कोसने
छुपाती अपनी झल्लाहट
ढेरों काम में
और गुस्सा अपने होठों में .
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उसकी पैदाइश पर उठाती उंगली
बात-बेबात
डांटने लगती उसे
समझाने खुद को..
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मिलना -जुलना लड़कों से
हँसना या बातें करना जोर से
या घूमना - फिरना बाहर
बंद कर दिया उसका
सुना-सुना कर
अपने ज़माने की बातें --, बंदिशे .

लेकिन आज
कोहराम मचा है घर में
जवान बेटी जल मरी है
सबसे ऊँची चीख मेरी
कहती है मुझसे
'उसकी हत्यारी मैं हूँ '
क्या आप भी यही समझते है ?

सुबोध सितम्बर, १९८६

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