हाँ, मैं स्वीकार करता हूँ
अपनी हार ...
लेता हूँ पूरी जिम्मेदारी ...
नहीं देता किसीको भी दोष
तरफदारी नहीं करूँगा खुद की
कि मैं सही था
वक़्त गलत हो गया
नहीं करूँगा बेवजह की शिकायत
और ये सब कर रहा हूँ सिर्फ इसलिए
कि कल मेरी कोई हार न हो ...
...
मैं करता हूँ स्वीकार
मुझमे नहीं था वो जज़्बा
कि जीत होती मेरी
संपूर्ण समर्पण से ही हासिल होता है लक्ष्य ......
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मैं करता रहा शिकायत
कमियों की, खामियों की
भूल गया हासिल को
और सारा ध्यान रहा
कमियों,खामियों पर
कहते है
जिसके बारे में
शिद्दत से सोचते हो
वही मिलता है
सो मुझे
कमिया और खामिया मिल गयी
करता अगर प्रयास
लगा कर जान की बाज़ी
इन्हे दूर करने का
तो निश्चित ही
अलग होता परिणाम
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मेरा पूरा प्रयास था
बचूं हार से
शायद इसी लिए हार गया
क्योंकि
मेरे अवचेतन में लक्ष्य
हार से बचना भर था
जीत का तो कहीं ज़िक्र भी न था .
हाँ, में स्वीकार करता हूँ
अपनी हार
लेता हूँ पूरी जिम्मेदारी
ताकि कल जीत सकूँ ....
सुबोध- २१, मई २०१४
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