Saturday, May 10, 2014

चुप रहने की सज़ा

जिस्म में लगती है आग
गुजरता हूँ जब उसके ख्याल से..
अच्छी बोलचाल थी
अच्छी उठ-बैठ थी
अच्छी पहचान थी
और अच्छी तमीज़ थी, लिहाज़ था
कि कर न बैठूँ
कोई ऐसी हरकत
जो उसे नागवार गुजरे
और वो गुजरे दर्द से
बस ! यहीं भले होने ने
तबाह कर दिया मुझे
कोई ऐसा आया
जिसने न किया लिहाज़
न अपनाई तमीज़
और न सोचा उसके दर्द के बारे में
बल्कि कर बैठा
इज़हारे-मौहब्बत.
वो हो गई उसकी
और में
लिहाज़ और तमीज़
गले से लगाये रह गया. .

सुबोध अगस्त २००५

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