Saturday, May 10, 2014

जब माँ तुम जैसी होती है ....

करता है मुझे आज़ाद
तुम्हारा विश्वास
अपने डर से
और तुम्हारा प्यार
उन बंदिशों से
जो डालती है पैरों में बेड़िया
बदल जाते है बेटी शब्द के मायने
जब माँ तुम जैसी होती है ....

जो सिखाती है
कसना मुठ्ठियों को
और वार करना
जरूरत होने पर
जो बताती है फर्क
बोझ और वरदान में
जिम्मेदारी और पलायन में
और करती है आज़ाद
बेटी होने के अभिशाप से
जब माँ तुम जैसी होती है .....

बेटियाँ
आंसू नहीं
अँधेरे लम्हों का नूर होती है
बिखरते लफ़्ज़ों को सम्हालती
चांदनी का समुन्दर होती है
जो रिश्तों को सहेजती है
परीकथाओ वाले इंद्रधनुषी ख्वाब बुनती है
सुन्दर वर्तमान के साथ
ख़ूबसूरत जिम्मेदार भविष्य होती है
जब माँ तुम जैसी होती है ....

सुबोध मई ४, २०१४



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