Saturday, May 10, 2014

अस्तित्व

शिराओं में
खून की जगह
दौड़ने लगा है दर्द .
जब रिश्ते
सहलाते है सर
खिंच जाती है
एक आग की लकीर
जिस्म के आर-पार.
शोषण पर - एक सच पर
परदा डालने की कोशिश
भर देती है
एक खौफ मुझ में .
नहीं चाहता
नकार दूँ उस शोषण को
जिसमे से गुजरकर
स्थापित करना है मुझे
अपना अस्तित्व ........

सुबोध जुलाई १९८३

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